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सन्तों को छुटकारा मिला 1SG 175

ईश्वर ने आधी रात को अपने लोगों को छुड़ाना चाहा। जब दुष्ट लोग सन्तों का मजाक उड़ा रहे थे उसी वक्त अचानक सूर्य अपनी तेज रोशनी के साथ दिखाई दिया और चाँद आकाश में था। दुष्टों ने ताज्जुब के साथ यह दृश्य देखा। जल्दी-जल्दी आश्चर्यजनक चिन्ह दिखाई देने लगे। ऐसा लग रहा था कि सब काम अपने दैनिक स्वभाव से उल्टा चल रहे थे। छोटी नदियों का बहना बन्द हो गया। घोर अंधकार का बादल छा गया और एक दूसरे से टकराने लगे। बादलों के बीच में से ईश्वर की आवाज ऐसी निकली जैसे बहुत से पानी के गिरने का शब्द होता है अर्थात् जलप्रपात। इस आवाज से स्वर्ग और पृथ्वी काँप उठी। इसके बाद एक भयंकर भूकम्प हुआ। कब्रें हिलने लगीं और जो लोग तीसरा दूत के समाचार ग्रहण कर चुके थे और सब्त मानते थे वे महिमा से भर कर ईश्वर की शान्ति का वाचा सुनने के लिए जी उठे। 1SG 175.1

आकाश कभी खुलता था और कभी बन्द होता था। इससे सनसनी घबड़ाहट फैल गई थी। पहाड़, छोटी नदी के घास (सरकंडों) के समान हिलने लगे और चट्टानें टूट कर चारों ओर छिटकने लगीं। समुद्र का पानी भी खौलने लगा और वहाँ से पत्थर निकल कर जमीन में फैलने लगे। ईश्वर ने यीशु के आने की बात कही और सदा का वाचानुसार अपने लोगों को छुड़ाया। उसने सिर्फ एक बात कही। इसके बाद वह रूक गया। उसकी बातें पृथ्वी की छोर तक फैलने लगी। परमेश्वर के लोग अपनी आँखों को उठा कर स्वर्ग की ओर ताक रहे थे। ईश्वर की बातों को सुनने में ध्यान लगाए हुए थे। ईश्वर की आवाज बादल के गर्जन के समान सारी पृथ्वी को दहला दे रही थी। यह बहुत ही गम्भीर था। हर वाक्य के अन्त में सन्त लोग ‘ग्लोरी हल्लेल्लूयाह’ बोल कर चिल्ला रहे थे। उनके चेहरे महिमा की रोशनी से भर गये थे। उनके चेहरे ऐसे ही चमक रहे थे जैसा मूसा का चेहरा, जब वह सिनाई पर्वत से लौट रहा था तो चमक रहा था। यीशु के चमकीले चेहरे को दुष्ट लोग नहीं देख सक रहे थे। न अन्त होने वाला आशीर्वाद उनको जो ईश्वर का आदर करते थे, उसका सब्त को मानते थे, दिया गया तो वे पशु पर विजय पाने और उसकी मूरत को न पूजने के कारण खुशी से जयघोष करने लगे। 1SG 175.2

इसके बाद जुबिली का आरम्भ हुआ जिस में पृथ्वी को विश्राम देना था। मुझे दिखाया गया कि धर्मीदास (गुलाम) लोग जय का गीत गाते हुए जी उठे। उन्होंने अपने क्रूर मालिकों का बंधन को तोड़ फेंका। वे (मालिक) अकबका गये। क्या करना है उसे भूल गए। इसके बाद एक छोटा बादल जो मनुष्य के हाथ के बराबर लम्बा था दिखाई दिया। उस पर मनुष्य का पुत्र (यीशु) बैठा था। 1SG 176.1

यह बादल दूर पर था इसलिये छोटा दिखाई दिया था। दूतों ने बताया कि यह तो यीशु के आने का चिन्ह है। जैसे ही यह बदल नजदीक आता गया तो हमने इसको बहुत ही गौरवपूर्ण देखा जिसमें यीशु सवार होकर आ रहा था। उज्जवल, चमकदार मुकुट पहने हुए स्र्गदूतों का बड़ा समूह यीशु के साथ आ रहा था। इस दृश्य की सुन्दरता का वर्णन करने के लिये कोई शब्द नहीं मिल रहे थे। महिमा का जीवित बादल और अपूर्व ऐश्वर्य जब नजदीक आता गया तो हमने उसकी छवि को स्पष्ट देखा। उसने काँटों का ताज नहीं पर महिमा का ताज पहिना था। उसके कपाल और जाँघ पर “राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु” लिखा हुआ था। उसकी आँखें आग की ज्वाला के समान और पाँव चोखा तम्बा के समान और आवाज, बाजा की आवाज के समान सुन्दर थी। उसके चेहरे तो दिन दोपहर का सूर्य की रोशनी के समान थे। उसके सामने पृथ्वी काँप उठी और स्वर्ग कागज की नाई लपेट दिया गया। हरेक पहाड़ और टापू अपनी-अपनी जगह से हट कर दूर चले गए। पृथ्वी के राजा, बड़े आदमी, धनी आदमी, प्रधान कप्तान, महान लोग हरेक गुलाम और बन्धुए और स्वतन्त्र लोग अपने को पहाड़ों की गुफाओं और चट्टानों की खोह में छिपाने लगे। उनसे ये लोग कहने लगे कि हम पर गिर पड़ो और जो गद्दी पर बैठ कर आ रहा है उसके चेहरे से और उसके क्रोध से बचा लो। क्योंकि उसका भयानक क्रोध का दिन आ गया है और कौन उसके सामने खड़ा रह सकता है? 1SG 176.2

इसके पहले जिन्होंने ईश्वर के विश्वासी लोगों को नाश किया था, उनके चेहरों में अभी ईश्वर की महिमा को देख रहे थे। उन्होंने उन्हें महिमा से भरा हुआ देखा। इस भयंकर और डरावना दृश्य के बीच सन्तों की यह आवाज सुनने को मिली कि देखो यही हमारा प्रभु है जिसको बहुत दिनों से देखना चाह रहे थे (यशा:२५:९) वह आ गया। जब ईश्वर का पुत्र बड़े जोर से सोये हुउ सन्तों को जगाने के लिये पुकारा तो धरती हिल गई। इसका जवाब स्वरूप वे अमरता की महिमा का वस्त्र पहने हुए अपनी-अपनी कब्रों से उठ खड़े हुए। वे चिल्ला कर कहने लगे - जय, जय, हे मृत्यु तेरी जय कहाँ, हे मृत्यु तेरा डंक कहाँ रहा? इसके बाद जीवित सन्त और जी उठे सन्तों ने एक साथ अपनी आवाज बुलन्द कर कहा ‘जय’! जो रूग्न शरीर कमजोर होकर मर गया था वह अब पूर्ण स्वस्थ और तन्दरूस्त अमर शरीर लेकर जी उठा। जीवित सन्त लोग तुरन्त क्षण भर में बदल गए। वे जी उठे सन्तों के साथ स्वर्ग चले गए। वहाँ बादलों में वे प्रभु से मिल गए। यह क्या ही महिमा पूर्ण भेंट और मुलाकात थी। जिन मित्रों को मृत्यु ने अलग किया था वे फिर एक साथ मिल गए। अब उन्हें जुदाई होनी न पड़ेगी। 1SG 177.1

अग्निरथ के दोनों तरफ चक्के थे। जैसे ही यह अग्निरथ ऊपर की ओर उठने लगा, तब पहिया से आवाज निकली ‘पवित्र’ और डैने जैसे उड़ने लगे तो आवाज आई ‘पवित्र’ और अग्निरथ के चारों ओर दूतों का समूह से आवाज आई - पवित्र, पवित्र, पवित्र सर्व-शक्तिमान प्रभु ईश्वर। जो सन्त बादल से होकर स्वर्ग की ओर जा रहे थे वे कहने लगे - महिमा हल्लेलूय्याह। रथ स्वर्ग की ओर पवित्र नगर को जा रहा था। पवित्र नगर में प्रवेश करने के पहिले सन्तों को एक वर्गाकार में जमा किया गया और बीच में यीशु था। वह सब का प्रधान था। लोगों की ऊँचाई यीशु के कंधे बराबर थी। उसका गौरव और सुन्दर सलोना चेहरा सब को दिखाई दे रहा था। 1SG 178.1