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सार्थक प्रार्थना! SC 67

तुम पूर्ण हुए क्लेशों में पिस,
क्रूश चढ़ हो गए महान्।
नहीं दू:खी, रोगी निपीड़ित,
जिसका तुमने न किया त्रागा।
निराश, पंगु, रोगी, अंधों के हे त्राता। दू:ख सहे जितने,
व्यर्थ नहीं तुम दयावान। उनको तुम कर तो परित्राण,
सब हुए भले और प्रभायुक्त, जो चाह रहें स्वरोगमुक्ति
तेरे सदृश करुणा निधान। उनके चिकित्सक तुम महान।
मेरे अन्तर के पाप रोग
का कर दो हे त्राता। निदान।
जीवन सुखमय कर दो मेरे
गाऊँ अनन्त तव यश:गान। SC 67.2