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पाठ २७ - पवित्र स्थान GCH 128

मुझे ईश्वर के लोगों की अत्यधिक निराशा को दिखाया गया। उन्होंने ठीक समय पर यीशु के आने का दिन को नहीं देखा था। उन्हें मालूम नहीं था कि क्यों यीशु उस दिन (२२ अक्टूबर १८४४ ई०) को नहीं आया। उनको यह भी समझना कठिन हो रहा था कि क्यों भविष्यवाणी का वह दिन, उस दिन को अन्त नहीं हुआ। दूत ने कहा क्या ईश्वर का वचन पूरा नहीं हुआ ? क्या ईश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं की ? नहीं! उसने तो अपनी सब प्रतिज्ञाओं की पूर्ति की। यीशु जी उठा। उसने स्वर्ग का पवित्र स्थान का दरवाजा भी बन्द कर दिया था। उसने स्वर्ग का महापवित्र स्थान का दरवाजा खोल कर उस दिन प्रवेश किया था। क्यों कि उसको जगत का महापवित्र स्थान के समान शुद्ध करना था। इस प्रकार स्वर्गदूत ने उनको बताया। जो लोग धीरज से प्रतीक्षा करेंगे वे इस रहस्य को समझेंगे। मनुष्य से गलती हुई पर ईश्वर की ओर से नहीं हुई। है। ईश्वर ने जो प्रतिज्ञा की थी सब पूरी हो गई। मनुष्य गलती से पृथ्वी की ओर देख कर कहने लगा था कि भविष्यवाणी का अन्त अर्थात् यीशु का स्वर्ग छोड़ कर पृथ्वी पर आना होगा। ईश्वर की प्रतिज्ञा असफल नहीं पर मनुष्य की आशा निराशा में बदल गई। यीशु ने निरूत्साही लोगों को अगुवाई करने के लिये अपने दूतों को भेजा। उन लोगों को महापवित्र स्थान दिखाएँ जहाँ यीशु प्रवेश कर उसको माफ करेगा। इस्त्राएलियों के लिए उद्धार का विशेष काम करेगा। यीशु ने दूतों को बताया कि जिन्होंने उस पर विश्वास किया है वे उसके इस काम को समझेंगे। मैंने देखा कि जब यीशु महापवित्र स्थान में विचवाई का काम करता रहेगा तो वह नया यरूशलेम से शादी करेगा। जब उसका काम महापवित्र स्थान में पूरा होगा तो वह पृथ्वी पर लौट आवेगा और उनको जो उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, उन्हें अपने साथ स्वर्ग में उठा लेगा, जब भविष्यवाणी का समय पूरा हुआ तो क्या घटना हुई, उसे दिखायी गई। तब मैंने देखा कि पवित्र स्थान में यीशु का काम समाप्त हो जायेगा। GCH 128.1

इसके बाद मुझे १८४४ ई०, जब भविष्यवाणी का समय पूरा हुआ तो क्या घटनाएँ हुईं, उसे दिखायी गईं। जब मैंने देखा कि पवित्र स्थान में यीशु का काम समाप्त हुआ तब उसने उसका दरवाजा बन्द कर दिया। तब एक बड़ा अंधकार उन लोगों को आकर घेरा जो उसके विषय सूने थे पर उस के आगमन का संवाद को नहीं माने थे, वे खो गए। इसके बाद यीशु ने दामी वस्त्र पहन लिया। उसके वस्त्र के नीचे चारों ओर घन्टी और अनार के समान बेल-बूटे लगे हुए थे। अपने कन्धे से छाती तक चंगाई के काम करने का एक पटुका लटकाया हुआ था। जैसे वह चलता था तो हीरा के समान चमकता था। अक्षरों को बड़ा करके दिखाता था। जो लिखित नाम के समान दिखाई देता था या पटुका पर खोदा हुआ सा लगता था। जब वह अपने सिर को पूर्ण रूप से सजाता था तो ऐसा लगता था कि मुकुट पहना है। दूत लोग उसके चारों ओर घेरे हुए थे। एक जलता हुआ रथ गाड़ी से वह पवित्र स्थान का दूसरा खाना (भाग) में जा पहुँचा। तब मुझे कहा गया कि इस पवित्र स्थान के दोनों भागों को गौर से देखने को परदा और दरवाजा खोल दिये गए और मुझे वह प्रवेश करने कहा गया। पहिला भाग में मैंने सात मोमबत्तियों को टेबल पर रखी हुई देखी। यह तो बहुत ही गौरवपूर्ण थीं। वहाँ पर मैंने दिखावे या भेंट की रोटी देखी और धूप जलाने की बेदी और धूप-धुवान चमक रही थी। वे सब उसकी परछाईं को दिखा रहीं थी जो वहाँ घुसा था। इन दो भागों के बीच का परदा भी बहुत ही गौरवमय था। यह विभिन्न रंगों और द्रव्यों से मढ़ा हुआ किनारे का पाड़ भी बहुत ही सुन्दर था। पाड़ पर सोने का काढ़ा हुआ दूतों को दिखाती थी। परदा खोला गया तो मैंने दूसरा भाग की ओर झांका। मैंने वहाँ सोने से बना हुआ बहुत सुन्दर सन्दूक को रखा देखा। सन्दूक के ऊपर से नीचे छोर तक ऐसा सोना की कारीगरी थी कि यह एक मुकुट जैसा दीख रहा था। हाँ! यह तो चोखा सोना से बनाया गया था। सन्दूक के अन्दर इस आज्ञा की दो पट्टियाँ रखी हुई थीं। इसकी दोनों छोर पर एक-एक कारूब थे जो अपने एक-एक डैने उसके ऊपर पसारे हुए थे। उनके डैने ऊपर की ओर उठे हुए थे और जैसे ही यीशु सन्दूक के नजदीक आया तो उनके दो डैने उस के सिर को ऊपर से स्पर्श कर रहे थे। वे कारूब आमने-सामने खड़े होकर नीचे सन्दूक को देख रहे थे। इससे यह प्रगट हो रहा था कि सब स्वर्गदूत दस आज्ञा को बडी रूचि के साथ देख रहे थे। दोनों कारूब के बीच में एक सोना का बर्तन था। जैसे ही विश्वासी सन्तों की प्रार्थना यीशु के पास पहुँचती है तो यीशु उन्हें अपने पिता के पास पहुँचा देता है और उस बर्तन से मधुर सुगन्ध ऊपर उठने लगती है। वह खूब सुन्दर धुवाँ के सादृश्य दिखाई देता था। यीशु जिस जगह पर खड़ा था, उसके सामने सन्दूक था और वहाँ से बहुत तेज जलती हुई बत्ती निकलती थी जिसको मैं देख न सकी क्योंकि आँखें चौंधिया जाती थी। यह ईश्वर का सिंहासन जैसा दिखाई दिया। जैसे ही यह सुंगध धुवाँ ईश्वर पिता के पास पहुँचा तो पिता ने तुरन्त इसे यीशु के पास भेज दिया। फिर यीशु ने इसे प्रार्थना करने वालों तक पहुँचा दिया जो मधुर सुंगध के समान थी। प्रकाशमय महिमा यीशु के ऊपर अत्यधिक रूप से पड़ी। यह दया का सिंहासन के ऊपर छा कर सारा पवित्र स्थान को महिमा की ज्योति से भर दिया। मैं इस महिमा की ज्योति को देखने से अपने को रोक ली। इस महिमा का वर्णन करना कठिन है। इसके लिये कोई भाषा में शब्द नहीं मिलेंगे। मैं इस सौन्दर्य में घिर गयी और इस दृश्य की महानता और महिमा से अलग कर दी गई। GCH 129.1

मैंने पृथ्वी का पवित्र स्थान को भी देख पाया जिसमें दो भाग थे। मैंने इसका स्वर्ग का पवित्र स्थान से तुलना कर देखा तो एक सा था। मुझे बताया गया कि पृथ्वी का पवित्र स्थान या पवित्र तम्बू तो स्वर्ग का पवित्र स्थान के स्वरूप में ही बनाया गया था। पृथ्वी का पवित्र स्थान में जो समान रखे गए थे ठीक वैसा ही स्वर्ग का पवित्र स्थान में भी रखे गये हैं। जब परदा उठाया गया तो मैंने देखा कि वहाँ पर भी पृथ्वी का महा पवित्र स्थान में जो सामान थे वहाँ भी हैं। पृथ्वी का पवित्र स्थान के दोनों भागों में याजक सेवकाई के काम करते थे। पहिला भाग प्रत्येक दिन सेवकाई का काम करता था और दूसरा भाग में वर्ष में सिर्फ एक दिन सेवकाई का काम करने या पवित्र स्थान को शुद्ध करने के लिये प्रवेश करता था, जहाँ (पहिला भाग में) लोगों के पाप रखे रहते थे। मैंने देखा कि यीशु ने दोनों भागों में सेवकाई के काम किये। उसने महापवित्र स्थान में अपना ही लोहू लेकर प्रवेश किया। पृथ्वी के याजकों को तो अपनी सेवकाई के कामों से मृत्यु के कारण छुट्टी मिल जाती थी पर यीशु तो सदा सर्वदा का महायाजक बना रहेगा। बलिदान और भेंट इस्त्राएलियों के द्वारा पृथ्वी का पवित्र स्थान में लाये जाते थे। वे सब आने वाला मसीह का गुण को दिखाते थे। ईश्वर का ज्ञान ने इस विशेष प्रकार का काम हमें दिया था जिसके द्वारा हम पीछे की ओर मुड़ कर देखते हैं और स्वर्ग का महापवित्र स्थान में यीशु इसी प्रकार का काम करता है, उसको समझने में मदद मिलती है। GCH 131.1

जब यीशु क्रूस पर मर रहा था, उस वक्त उसने चिल्ला कर पुकारा कि ‘पूरा हुआ और मन्दिर का पर्दा ऊपर से नीचे तक फट कर दो भाग में बँट गया। इसका मतलब यही था कि मन्दिर की सेवकाई विधि सदा के लिये बन्द हो गई। ईश्वर फिर बलिदानों को ग्रहण करने के लिये इस्त्राएलियों से मन्दिर में भेंट नहीं करेगा। उस वक्त यीशु ने अपना लोहू बहाया। उसी लोहू के द्वारा वह स्वर्ग का महापवित्र स्थान में सेवकाई का काम पूरा करेगा। जैसा पृथ्वी का महायाजक साल में एक बार महापवित्र स्थान में प्रवेश कर मन्दिर को शुद्ध करता था उसी प्रकार यीशु भी स्वर्ग का महापवित्र स्थान में, दानियेल ८:१० की भविष्यवाणी के आधार पर, २३०० दिन के अन्त में १८४४ ई० में स्वर्ग का महापवित्र स्थान में प्रवेश किया और लोगों के लिए प्रायश्चित का काम कर मन्दिर को शुद्ध कर रहा था। GCH 132.1

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आधारित वचन यिर्मयाह ३:१४, इब्रानी १ प्रकाशित वाक्य ३८, ४:१-२१:२ GCH 132.2