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अध्याय 25 - बपतिस्मा ककेप 162

बपतिस्मा तथा प्रभुभोज नामक संस्कार व विधि दो स्मारक के स्तम्भ हैं, एक मंडली के बाहर और दूसरा मंडली के भीतर.इन दो संस्कारों पर मसीह ने सच्चे परमेश्वर का नाम अंकित किया है. ककेप 162.1

आध्यात्मिक राज्य में प्रविष्ट होने का मसीह ने बपतिस्मा को एक चिन्ह बनाया है.जो पिता पुत्र और पवित्र आत्मा के अधिकाराधीन स्वीकृति चाहते हैं उनके लिए यह जरुरी शर्त है. कलीसिया में स्थान प्राप्त करने से तथा परमेश्वर के राज्य के दरवाजे से गुजरने से पूर्व उसे ईश्वरीय नाम की छाप ‘ को स्वीकार करना चाहिए.” ककेप 162.2

बपतिस्मा संसार त्याग का एक अत्यंत गम्भीर रुप है. जो पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के त्रिगुण नाम पर बपतिस्मा लेते हैं वे अपने मसीही जीवन की आरम्भ करते ही खुले रुप से घोषणा करते हैं कि उन्होंने अपने को शैतान की सेवाओं से मुक्त करके शाही परिवार का सदस्य बना लिया हैस्वर्गीय सम्राट के पुत्र हो गये हैं. उन्होंने इस आज्ञा को मान लिया है.’’उनके बीच में से निकलो और अलग रहो; और अशुद्ध वस्तु को मत छुओ, तो मैं तुम्हें ग्रहण करूँगा. और तुम्हारा पिता हूँगा और तुम मेरे बेटे और बेटियां होंगे: यह सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर का वचन हैं.” (2कुरिन्थियों 6:16, 17) ककेप 162.3

उन प्रतिज्ञाओं में जो हम लोग बपतिस्मा के समय करते हैं बहुत कुछ सम्मिलित है.पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम में हम यीशु की मृत्यु की समानता में गाड़े गए हैं. और उसके पुनरुत्थान की समानता में जिन्दा होते हैं और एक नया जीवन व्यतीत करते हैं.हमारा जीवन मसीह के जीवन से बंध जाता है.तदनन्तर विश्वासी को यह ध्यान में रखना चाहिए कि वह अपने को परमेश्वर,यीशु और पवित्र आत्मा को समर्पित कर चुका है. ककेप 162.4

उसको इस नये सम्बंधन के सामने दुनिया के समस्त विचारों को द्वितीय श्रेणी का समझना पड़ेगा. उसने खुले रुप से यह घोषणा कर दी है कि वह भविष्य में अभिमान तथा आत्म-तृति में जीवन - यापन न करेगा.वह एक लापरवाह,उदासीन जीवन व्यतीत न करेगा.वह एक लापरवाह,उदासीन जीवन व्यतीत न करेगा उसने परमेश्वर से साथ वाचा बांध ली है. वह संसार की ओर से मर चुका है. उसे प्रभु के लिए जीवित रहना हैऔर उसके लिए समस्त सौंपी हुई योग्यताओं का प्रयोग करना है और इस विचार को हृदय से कभी नहीं निकालना चाहिए कि उस पर परमेश्वर की छाप लगी हुई है और वह मसीह के राज्य कौ प्रजा और ईश्वरीय प्रकृति का भागी है. उससे अपने को और अपना स्वर्गीय परमेश्वर को समर्पित करना है और परमेश्वर के नाम को महिमा के लिए अपनी सारी योग्यताओं का उपयोग करना है. ककेप 162.5