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अध्याय 26 - प्रभु भोज ककेप 166

प्रभु के घर (मंडली)के प्रतिरुपक या सूचक (चिन्ह) अत्यन्त सादे और सरलता से समझ में आ जाने योग्य है और उनके द्वारा प्रदर्शित सत्य हमारे लिए अति महत्वपूर्ण हैं. ककेप 166.1

यीशु दो युगों और उनके दो महान पर्वो के बीच अवस्थान्तर बिन्दु पर खड़ा था.वह जो परमेश्वर का निष्कलंक मैना था पाप बलि के रुप में अपने को चढ़ाने को था.इस प्रकार वह लाक्ष्णिक तथा रीतिरिवाज की पद्धति को जो चार हजार वर्ष से उसकी मृत्यु की ओर संकेत कर रही थी समाप्त करने वाला था.अपने शिष्यों के साथ फसह खाने के बाद उसने उसके स्थान में वह विधि स्थापित की जो उसके महान बलिदान स्मृति ठहरने वाली थी.यहूदियों को राष्ट्रीय पर्व सदा के लिए समाप्त होने को था.वह विधि या संस्कार जिसे मसीह ने स्थापित किया उसके अनुयायियों द्वारा हर देश में अथवा हर युग में मनाया जाने वाला था. ककेप 166.2

(फसह )निस्तार पर्व इस्राएलियों के मिस्र की गुलामी से छुटकारे की यादगार के रुप में नियुक्त किया गया था. परमेश्वर ने आदेश दिया था कि प्रतिवर्ष जब बच्चे इस संस्कार का अर्थ पूछे तो इतिहास दुहराया जावे. इस प्रकार वह अद्भूत उद्धार या छुटकार सब के मन में ताजा रखा जाता. प्रभु भोज की विधि इस भारी छुटकारे की स्मृति में दी गई थी जो मसीह की मृत्यु के फलस्वरुप हुआ था.जब तक वह दूसरी बार सामर्थ और महिमा में न आवे यह संस्कार मनाया जाएगा.इस साधन के द्वारा उसका महान कार्य हमारे मनों में ताजा रखा जाना है. ककेप 166.3

प्रभु भोज के समय मसीह का नमूना किसी के बहिष्कार की अनुमति नहीं देता.यह सच है कि खुला पाप अपराधी को बहिष्कार करेगा.इसकी शिक्षा पवित्रआत्मा सफाई से देते है(1कुरिन्थियों 5:11)परन्तु इससे परे किसी को अपना निर्णय न करना चाहिए.परमेश्वर ने यह बात मनुष्य के हाथ में नहीं छोड़ी है कि बतलाए कि किस-किस को ऐसे अवसरों पर हाजिर होना चाहिए.क्योंकि कौन है जो हृदय को पढ़ सकता है? कौन गेहू और जंगली बीजों में अंतर पहचान सकता है? “इस लिए मनुष्य अपने आप को जाँच ले और इसी रीति से इस रोटी में से खाए,और उस कटोरे में से पीए’‘ ‘’इस लिए जो कोई अनुचित रीति से प्रभु की रोटी खाए या उसके कटोरे में से पीए वह प्रभु की देह और लोहु का अपराधी ठहरेगा.” “क्योंकि जो खाते-पीते समय प्रभु की देह को न पहिचाने वह इसे खाने और पीने से अपने ऊपर दंड लाता है.’’(1कुरिंथियों 11:28,29) ककेप 166.4

किसी को प्रभु भोज में सम्मिलित होने से अपने को अयोग्य व्यक्तियों को उपस्थित होने के कारण पृथक नहीं करनी चाहिए.प्रत्येक शिष्य को खुले तौर पर भाग लेने का नियंत्रण है इस प्रकार वह अपनी साक्षौ देवे कि उसने मसीह को अपना व्यक्तिगत त्राणकर्ता मान लिया है. ककेप 166.5

अपने शिष्यों के संग रोटी और दाखरस में भाग लेने से मसीह ने स्वयं उनके त्राणकर्ता होने की प्रतीज्ञा दी है. उसने उनको नई वाचा दी है जिसके द्वारा सब जो उसको ग्रहण करते हैं परमेश्वर की संतान बन जाते हैं और मसीह के साथ मीरास के सहभागी.इस वाचा द्वारा स्वर्ग की समस्त आशीषं जिन्हें परमेश्वर इस जीवन में और आने वाले जीवन में देना चाहता है उनकी ही होती.इस संधिपत्र को मसीह के लोहू से पक्का होना था.और प्रभु भोज की रस्म को अदा करने से शिष्यों के सन्मुख उस असीम बलिदान को सर्वदा रखना था जो व्यक्तिगत रुप में पतित मानव जाति के अंग होने के नाते सब के लिए चढ़ाया गया था. ककेप 167.1