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मसीह के द्वितीय आगमन की स्मृति ककेप 169

जब वे सब के चारों ओर इकट्टे थे तब उसने शेकातुर शब्दों में कहा:” और उसने उनसे कहा;मुझे बड़ी लालसा थी कि दु:ख भोगने से पहिले यह फसह तुम्हारे साथ खाऊं. क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ कि जब तक वह परमेश्वर के राज्य में पूरा न हो तब तक मैं उसे कभी न खाऊंगा. तब उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, कि जब तक परमेश्वर का राज्य न आए तब तक मैं दाख रस अब से कभी न पीऊंगा.’’(लूका 22:15-19) ककेप 169.4

परन्तु प्रभु भोज का संस्कार शोक मनाने का अवसर नहीं समझ जाने को था. इस अभिप्राय से यह नहीं नियुक्त किया गया था. जब प्रभु के शिष्य भोज के चारों तरफ जमा होते हैं तो उन्हें अपनी कमजोरियों को याद कर शोकती न होना चाहिए.उन्हें अपने पिछले धार्मिक अनुभवों पर सोचते नहीं रहना चाहिए चाहे वे अनुभव उत्थान करने वाले हों या नीचे गिरने वाले हों. उन्हें अपने और भाइयों के बीच के मतभेदों को याद नहीं करना चाहिए.इस से पहिले की विधि के अन्तर्गत यह सब कुछ सम्पूर्ण हो जाता है. आत्मजांच,पाप अङ्गीकर,मतभेद के प्रति मेलमिलाप यह सब कुछ किया जा चुका है. ककेप 169.5

अब तो मसीह के दर्शन व मुलाकात के लिए आये हैं. अब वे क्रूस की परछाईं में खड़े नहीं होते बल्कि उसकी रक्षक प्रकाश में उन्हें आत्मा को धार्मिकता के सूर्य की किरणों के समक्ष खोल देना है. मसीह के अत्यन्त पवित्र लोहु द्वारा हृदय की शुद्धि होकर,उसकी उपस्थिति का पूर्ण बोध प्राप्त कर ,वे अदृश्य रुप में उसके ये वचन सुनते हैं, ‘’मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ जैसे संसार देता हैं, जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता तुम्हारा मन न घबराए और डरे, ‘’(यूहन्ना 14:27)जब हम रोटी और दाखरस को लेते हैं जो लाक्ष्णिक रुप में मसीह के टूटे हुए बदन और बहाए हुए लोहु के प्रतीक हैं तो हम भी ध्यान में उपरौठी कोठरी में प्रभुभोज के दृश्यों में शरीक होते प्रतीत होते हम भी उस बाग में से गुजरते प्रतीत हो रहे हैं. जो जगत के पाप उठानेहारे के दु:खों से शुद्ध हो गया था. हम उस संघर्ष के साक्षी ठहरते हैं जिसके द्वारा हमारा परमेश्वर के साथ मेलमिलाप प्राप्त होता है मसीह हमारे मध्य क्रूस पर चढ़ाया हुआ जैसा दिखाता है. ककेप 169.6

क्रूस पर चढ़े त्राणकर्ता पर नजर करते हुए हम स्वर्ग के महाराजाधिराज द्वारा चढ़ाए गए बलिदान का अर्थ एवं महत्व को और स्पष्टरुप से समझ सकते हैं.त्राण की योजना हमारे समक्ष प्रज्वलित होती है कलवरी का ख्याल हमारे दिलों में जीवित तथा पवित्र आवेगा जाग्रत कर देता है.परमेश्वर के लिए और मेम्ने के लिए हमारे हृदयों और होंठो पर प्रशंसा के शब्द होंगे क्योंकि आत्म-उपासना उस आत्मा की भूमि में नहीं पनप सकते जो कलवरी के दृश्यों को सदा स्मरण में ताजा रखता है. ककेप 170.1

जब विश्वास हमारे प्रभु के महान बलिदान पर गौर करता है उस समय आत्मा मसीह के आत्मिक जीवन को ग्रहण करता है. वह प्राणी प्रत्येक प्रभु भोज से आत्मिक बल प्राप्त करेगा. इस विधि द्वार एक जीवित संसर्ग पैदा होता है जिसके द्वारा विश्वासी मसीह से और पिता से संगठित हो जाता है. विशेष रुप में इससे परमेश्वर पर निर्भर इन्सान और परमेश्वर के बीच एक सम्पर्क कायम हो जाता है. ककेप 170.2

प्रभु भोज की विधि मसीह के द्वितीय आगमन की ओर संकेत करता है. शिष्यों के मनों में इस आशा को स्पष्ट रखने के लिए इसकी रचना की गई थी. जब कभी वे इसकी मृत्यु की यादगार मानने के हेतु इकट्टा हुए उनको स्मरण कराया जाता था कि, “उसने कटोरा लेकर, धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा,तुम सब इस में से पीओ.क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लोहु है, जो बहुतों के लिए पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है. मैं तुम से कहता हूँ कि दाख का यह रस उस दिन तक कभी न पौऊंगा, जब तक तुम्हारे साथ अपने पिता के राज्य में नया न पीऊँ.’’(मत्ती 26:27,29) अपने क्लेशों के मध्य इनको अपने स्वामी के आगमन की आशा में शांति प्राप्त हुई. उनके निकट यह विचार अत्यन्त कीमती था, “क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते,और इस कटोरे में से पीते हो,तो प्रभु की मृत्यु को जब तक वह न आए प्रचार करते हो.’’(1कुरिन्थियों 11:26) ककेप 170.3

ये बातें वे हैं जिन्हें हमें कभी भूलना नहीं चाहिए,यीशु का प्रेम उसकी परवंश करने वाली शक्ति के साथ हमारे स्मृति में ताजा रहनी चाहिए. मसीह ने इस विधि का स्थापन इसलिए किया कि इसके द्वारा हमारी भावनाओं का परमेश्वर के प्यार का प्रचार हो.हमारी आत्माओं और परमेश्वर के बीच कोई संयोग नहीं हो सकता सिवाय मसीह के भाई-भाई के बीच मेल व प्रेम यीशु के प्रेम द्वारा पक्का और अनन्त होना चाहिए.केवल मसीह की मृत्यु ही उसके प्यार को हमारे लिए गुणकारी बना सकती है.केवल उसकी मृत्यु द्वारा हम हर्ष के साथ उसके द्वितीयागमन को देख सकते हैं.उसका बलिदान हमारी आशा का केन्द्र है.इस पर हमको अपना विश्वास केंद्रित करना चाहिए. ककेप 170.4