वह जो अविश्वासी हालत में किसी से विवाह कर चुका है यदि बाद में उसका मन बदलाव हो तो उसके साथी के प्रति विश्वास योग्यता का उत्तरदायित्व और गम्भीर बन जाता है.धार्मिक विश्वास के सम्बंध में उनका कितना भी मतभेद क्यों न हो महत्वपूर्ण हो जाते हैं.मन परिवर्तन के फलस्वरुप परीक्षा एवं क्लेश का सामना हो तौभी संसार के समस्त सम्बंधों की अपेक्षा परमेश्वर के अधिकारों को सदैव प्रथम स्थान दिया जावे.हो सकता है कि प्रेम तथा दीनता के आत्मा द्वारा अपनी स्वाम्य भक्ति का ऐसा प्रभाव पड़े कि अविश्वासी जीता जा सके. ककेप 182.1