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जब मतभेद उत्पन्न हों ककेप 189

पति-पत्नी अपने कर्तव्य पालन सम्बन्धी फैसले में कितने ही सावधान क्यों न हों पर यदि वे अपने हृदय परमेश्वर को समर्पित न करें तो कौटुम्बक कठिनाइयों का निवारण सहज कार्य नहीं होगा. यह कैसे हो सकता है कि पति-पत्नी कौटुम्बिक जीवन में अपनी अभिरुचियों में भिन्नता रखते हुए एक दूसरे पर प्रेमपूर्वक सुदृढ़ अधिकार भी रख सकें? कौटुम्बिक निर्माण में दोनों की अभिरुचियों का सन्तुलन अनिवार्य है. पति कुटुम्ब का प्रधान है इस कारण यदि पत्नी मसीही है इस कारण यदि पत्नी मसीही है तो एक विश्वस्त साथी के रुप में अपने पति को अभिरुचियों में सहयोग देगी. ककेप 189.1

आप को इस बात का बोध होते हुए भी कि आप के और आपकी पत्नी के दृष्टिकोण परस्पर अनुरुप नहीं है,आप अपने विचारों को अनुचित रुप में जांचे.यदि आप अपनी प्रार्थना एवं वार्तालाप में उन्हीं पर जोर देते रहें तो यह एक गलत भावना का प्रदर्शन है.जिन विषयों में आप और आप की पत्नी से मत भेद है उसका पिरत्याग करके एक सभ्य पुरुष की भांति आप उसकी भावनाओं का आदर न करें और यदि आप अपना ही राग अलापते रहें तो आप मानों यह प्रमाणित कर रहे है कि आप की समझ में दूसरों को यह अधिकार ही नहीं है कि किसी बात पर कोई अन्य दृष्टिकोण रखें.मसीहो पौधों पर ऐसे फल नहीं लग सकते. ककेप 189.2

मेरे भाई मेरी बहिन!अपना हृदय खोलकर मसीह को ग्रहण कीजिए.अपने आत्म-मन्दिर में उसे आमंत्रित कीजिए.विवाहित जीवन के आनन्द में बाधक प्रत्येक वस्तु पर विजय प्राप्त कीजिए. अपने विरोधी शैतान को पराजित करना एक सहज कार्य न होगा.इस संग्राम में यदि आप परमेश्वर की सहायता के इच्छुक हैं तो विजय का संकल्प करके आपस में संधि कर लीजिए.अशुभ वचन के प्रति अपनी जिह्य पर प्रतिबन्ध लगाइए,यदि समय पड़े तो अपने घुटनों के बल गिर कर प्रार्थना कीजिए,“प्रभु मेरी आत्मा के विरोधी को डांट, ककेप 189.3

यदि परमेश्वर की इच्छा का आज्ञा पालन हो रहा है तो पति-पत्नी परस्पर एक दूसरे का आदर करके प्रेम और विश्वास की ओर प्रयत्नशील होंगे. ककेप 189.4

कौटुम्बिक शान्ति एवं ऐक्य में बाधक प्रत्येक वस्तु का निवारण करके प्रेम और दयालुता धारण को जावे;वह जो विनम्र सहनशीलता एवं प्रेम का प्रदर्शन करता है इन्हीं गुणों से संपन्न आत्मा का प्रतिबिम्ब अपने जीवन पर पड़ता हुआ अनुभव करेगा. जहां परमेश्वर के आत्मा का प्रभुत्व है वहां विवाह सम्बन्धी किसी विषय पर अनुचित बात न होगी. यदि हृदय में मसीह का स्वरुप अंकित हो गया है जो महिमा की आशा है तो कुटुम्व में प्रेम और ऐक्य होगा,और जब पति-पत्नी दोनों के हृदय में मसीह के विराजमान होने का दावा है तो दोनों हृदयों में परस्पर एवं संतुलन का होना अनिवार्य है.पति-पत्नी न स्वर्गीय मकानों में सहवास के निमित्त प्रयत्यशील होंगे जिन के निर्माण की प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेमियों से की थी. ककेप 189.5

जितने यह समझते हैं कि विवाह परमेश्वर द्वारा नियुक्त पवित्र विधि है जिसकी सुरक्षा उसकी व्यवस्था में है वे विवेक और बुद्धि के शासन के वशीभूत होंगे. ककेप 189.6

वैवाहिक जीवन में कभी-कभी पति-पत्नी शासनहीन निरंकुश बालकों जैसा जीवन बिताना चाहते हैं.पति अपनी इच्छा पूर्ति चाहता है और पत्नी भी इसी की अभिलाषी है.दोनों में कोई भी अपने आप को अधीन नहीं करना चाहता ऐसी परिस्थिति में भारी अशान्ति होती है.पति-पत्नी दोनों को अपनी इच्छा दूसरे के अधीन समर्पित करने के लिए तत्पर होना चाहिए. जब तक दोनों अपनी स्वतंय इच्छा पूरी करने पर उतारू हैं आनन्द की आशा नहीं की जा सकती. ककेप 189.7

पारस्पारिक प्रेम और सहनशीलता के सिवाय संसार की कोई अन्य शक्ति आपको और आपके पति को मसीही ऐक्य के बन्धन में स्थिर नहीं रख सकती.वैवाहिक सम्बन्ध में आप की सहभागिता सुगठित एवं विनम्र, पवित्र और आदर्शयुक्त तथा आपके जीवन में आत्मिक शक्ति संचार करने वाली हो जिससे आप एक दूसरे को ऐसा सहयोग दे सकें जैसा परमेश्वर का वचन चाहता है,जब आप उन शर्तों को पूरा करेंगे जिनकी मांग प्रभु करता है तो आप स्वर्ग को अपने निकट को अपने निकट एवं परमेश्वर को अपने जीवन में पाएंगे. ककेप 190.1

मेरे भाई, बहिन! स्मरण रखिए,परमेश्वर प्रेम और उसी के अनुग्रह से आप एक दूसरे को सुखी बनाने में सफल होंगे जिसकी प्रतिज्ञा विवाह के समय आप ने की थी. ककेप 190.2

प्रभु के अनुग्रह से आप स्वयं एवं स्वार्थ पर विजयी हाँगे.जब आप अपने जीवन के प्रत्येक पग पर स्वयं बलिदान प्रकट करते हुए असहाय लोगों के प्रति सहानुभूति दर्शाए तो आप को विजय पर विजय प्राप्त होगी.दिन-प्रति-दिन आप को विजय का अभ्यास होगा और आप के चरित्र की कमजोर बातों को ककेप 190.3

आपको सुदृढ़ करने की इच्छा के अधीन समर्पित की है मसीह आप के प्रकाश, बल एवं आनन्द का मुकुट ठहरेगा. ककेप 190.4