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पितृत्व ककेप 197

प्रत्येक होनहार माता अपने चहुँ ओर किसी भी प्रकार का वातावरण होते हुए भी आनंदमय,प्रसन्नचित,संतोषी मनोवृति प्रदर्शित करे, ऐसा करने से उसकी संतान का शारीरिक एवं नैतिक स्वभाव सुयोग्य बनाया जाकर माता प्रयत्नों का दस गुना मूल्य चुकाया जाएगा.न केवल यह,पर ऐसा करने से उसमें प्रसन्नचित,विचार शील बनाने की आदत बनेगी जो उसके कुटुम्ब तथा मित्रों पर प्रतिबिंबित होगी. अधिकाशं रुप में उसके शारीरिक स्वास्थ की उन्नति होगी. उसके जीवनस्त्रों में बल संचार होगा जिससे उसके रकत में वह तीवता होगी जो उसे सुस्त एवं निराश रहने पर कदापि न होती उसकी प्रफुलचित से उसमें नैतिक एवं बल की वृद्धि होगी. उसकी इच्छाशक्ति उसके मनोविचारों पर बलिबंध पर प्रतिबंध न लगाकर उसके स्नाकर स्नायुमंडल को सबल बनाएगी. ककेप 197.1

यदि कोई सन्तान इस पैतृक बल से वॅचत रह जाये तो माता-पिता को सावधानी से काम लेना चाहिए.उनके व्यक्तित्व सम्बन्धी नियमों पर विशेष ध्यान देने से प्रत्येक बात के लिए सुयोग्य वातारवण स्थापित किया जा सकता है. ककेप 197.2

भावी माता का आत्मा परमेश्वर के प्रेम के अन्तर्गत रहे,उसके मन में शान्ति हो.वह प्रभु यीशु के वचनों पर मनन करके प्रेम में विश्राम पाए.यह भी स्मरण रखें कि माता बनकर वह परमेश्वर का सहकर्मी ककेप 197.3

पति-पत्नी सहकारी बने.यदि माता-पिता अपनी सन्तान को उसके पैदा होने के पूर्व तथा पश्चात् परमेश्वर की वेदी पर समर्पित कर दें तो कैसे सुन्दर संसार का निर्माण होगा. ककेप 197.4

अनेकों माता-पिता समझते हैं कि सन्तान पर उनका प्रभाव क्षणिक है पर परमेश्वर की दृष्टि में यह सत्य नहीं है.परमेश्वर के दूत द्वारा जो संन्देश दिया गया और जो गम्भीर रुप में दो बार उच्चारा गया हमारे लिये विचार योग्य है. ककेप 197.5

(मनोह की पत्नी) एक इब्रानी माता को कहे गये शब्द हर युग की माता से कह रहे हैं. “वह सावधान रहें’‘ दूत ने कहा “जो, जो आशा मैं देता हूँ वह मानो.’‘ माता की आदतें बालकों की कुशलता को प्रभावित करती हैं.उसको भूख एवं भावनाओं पर किसी नियम विशेष का नियंत्रण अनिवार्य हैं.बालक रुपी देन में परमेश्वर के अभिप्राय पूरा करने के निमित्त उसे कुछ बातों पर प्रतिबन्ध लगाना है अथवा कुछ के विपरीत काम करना है. ककेप 197.6

बालक के पगों को उलझाने के लिए संसार में फन्दों की कमी नहीं है.विषयासकत भोग विलास एवं स्वार्थमय जीवन सैकड़ों पुरुषों को आकर्षित करते हैं.जो मार्ग आज आनन्दमस प्रतीत होता है.उसके गुप्त खतरों तथा भयात्मक अन्त को मनुष्य देख नहीं सकता.वासना और भूख तृप्ति में लीन होकर मनुष्य बल का क्षय होता है जिसके फलस्वरुप सैकडों इस लोक एवं परलोक के निमित्त नाश हो जाते हैं.मातापिताओं को स्मरण रखना चाहिए कि बच्चों को इन परीक्षाओं का सामना अवश्य करना होगा.बालके के पैदा होने के पूर्व ही से तैयारी की जानी चाहिए कि बालक दुष्टता के संग्राम में सफलतापूर्वक लड़ सके. ककेप 197.7

बालक की पैदाइश के पूर्व यदि माता स्वार्थी,उतावली अथवा दूसरों पर दबाव डालने वाली हो तो प्रवृतियां बालक के चरित्र को प्रभावित करेंगी.इस प्रकार अनेकों बालक, दुष्टता की अजेय प्रवृतियां पैतृक सम्पति के रुप में पाते है. ककेप 197.8

माता यदि अटल रुप से सत्य नेम पर बनी रहे,यदि वह संयमी एवं त्यागी हो,यदि वह दयालु,विनम्र और परस्वार्थ हो तो वह इन बहुमूल्य सदगुणों को अपनी सन्तान को प्रदान कर सकेगी. ककेप 198.1

शिशु माता के लिए एक ऐसा दर्पण है जिसमें वह अपनी निज आदतों व आचरण का प्रतिबिम्ब देख सकती है.इन छोटे बालकों के समक्ष तब माता को व्यवहार एवं भाषा में कितना सावधान रहना चाहिए.सन्तान में माता जिन सद्गुणों को उत्पति एवं उन्नति देखना चाहती है उन्हें वह स्वयं अपने जीवन में प्रथम स्थान दे. ककेप 198.2

इस समय उसके वस्त्रों पर विशेष ध्यान दिया जावे.ठण्ड से वस्त्र के अभाव में अपनी रक्षा करने के लिए अत्यधिक मात्रा में उसे अपनी दैहिक शक्ति का अनावश्यक प्रयोग नहीं करना चाहिए, यदि मातापिता को स्वादिष्ट एवं बलवर्धक भोजन न मिले तो उसके रक्त की मात्रा एवं गुण में घटी आ जावेगी.उसके रक्त संचार में स्फूर्ति न होगी और सन्तान का भी वैसा ही हाल होगा.जिस भोजन से शरीर के पोषणार्थ शुद्ध रक्त का संचार होता है उस भोजन को बच्चा पचाने में असमर्थ रहेगा.माता एवं शिशु की उन्नति ऋतु के अनुकूल वस्त्र एवं पौष्टिक भोजन पर निर्भर है. ककेप 198.3