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ईश्वर के प्रेम को प्राप्त करें जब आप उसे पा सकते हैं ककेप 245

मेरा ध्यान उस विश्वास योग्य इब्राहीम के पीछे जाता है जो स्वर्गीय आज्ञा पाकर,जो उसने रात की दर्शन में बेरशोबा में पाई थी,इसाहाक को साथ लेकर चल देता है.वह अपने सामने उस पर्वत को देखता है जिसके ऊपर ईश्वर ने उसे बलिदान चढ़ाने के लिए कहा था. ककेप 245.3

इसाहाक, थरथराते हुए अपने करुण पिता के प्रेमी हाथों द्वारा बांध लिया गया क्योंकि ईश्वर ने कहा था.पुत्र अपने आप को बलिदान के लिए पिता के अधीन करता है क्योंकि उसे पिता के ऊपर पूर्ण विश्वास था. परन्तु जब प्रत्येक चौज तैयार है और पिता का विश्वास और पुत्र की अधीनता की परीक्षा पूर्ण रूप से की जा चुकी थी. ककेप 245.4

तब ईश्वर का दूत,इब्राहीम का हाथ पकड़ लेता और कहता है, क्योंकि तू ने जो मुझ से अपने पुत्र वरन् अपने एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा;इस से मैं अब जान गया कि तू परमेश्वर का भय मानता है.’’(उत्पत्ति 22:12) ककेप 245.5

इब्राहीम को विश्वास का कार्य हमारे हो लाभ के लिए लिखा गया यह हमको हमारी कठिन अवस्थाओं में भी अपनी आवश्यकताओं के लिए ईश्वर पर भरोसा रखना सिखाता है.यह हमको परमेश्वर की मांगों पर भरोसा करने को पाठ सिखलाता है, भले ही वे अप्रिय व कर्कश प्रतीत हों इससे बालकों को माता-पिता तथा परमेश्वर को पूर्ण अधीनता की शिक्षा मिलती है. इब्राहीम के आज्ञा पालन से सीखते हैं कि हमारे पास कोई भी चोज इतना बहुमूल्य नहीं जिसे हम परमेश्वर को नहीं दे सकते. ककेप 245.6

परमेश्वर ने अपने पुत्र को दीनता,आत्मा त्याग,दरिद्रता,परिश्रम एवं निंदनीय जीवनयापन करने तथा क्रूस की यातनापूर्ण मृत्यु के लिए दे दिया परन्तु वहां कोई दूत इस सुभसंदेश लाने के देने के लिए नहीं थे कि, “इतना बस है,तुम को मरने की आवश्यकता नहीं हाय मेरे प्रिय पुत्र’’स्वर्गदूतों को लाखों सेनायें दुःखभरी दृष्टि से इस आशा से ठहरी थी कि जैसा इसाहाक के विषय में ईश्वर इस अंतिम घड़ी में इस शर्मनाक मृत्यु से बचावेगा.परन्तु किसी भी दूत को ईश्वर के पुत्र के लिए ऐसा संदेश लाने के लिए आज्ञा नहीं हुई.न्यायालय में निन्दा और कलवरी के मार्ग पर भी निन्दा सहता रहा.उसका ठट्टा किया गया, और उसके मुंह पर थूका गया उसने उनके मुख से असहनीय कटुवचन और निन्दा के शब्द सुने जो उसे घृणा करते थे जब तक कि उन्होंने उसे क्रूस पर नहीं ठोक दिया और सिर झुकाकर उसने अपना प्राण न त्याग दिया. ककेप 245.7

ईश्वर अपने प्रेम के परिचय का सबूत इससे अधिक और क्या दे सकता था कि अपने पुत्र को इन सारे दु:खों में से होकर जाने दे.और जैसे ईश्वर का वरदान मनुष्यों को मुफ्त है उसका प्रेम अपार है इसी प्रकार उसके दावे हमारे हृदय पर, धन पर, प्रेमरुपी धनपर, विश्वास और आज्ञापालन पर भी उसी अनुपात से बेहद है वह मनुष्य की प्रत्येक चीज चाहता है जो कुछ भी वह दे सकता है.हमारी अधीनता भी ईश्वर के वरदान के अनुसार होना चाहिए वह पूर्ण हो उन में कुछ भी कमी न हो.हम सब ईश्वर के कर्जदार हैं.उसका हम पर दावा है और हम बिना उसको कुछ दिये हुए पूर्ण बलिदान किए बिना उससे छूट नहीं सकते.वह अविलंब और हर्षपूर्ण आज्ञापालने की मांग करता है और इससे कुछ कम वह स्वीकार भी नहीं करेगा. अभी हमारे ईश्वर प्रेम और दया को प्राप्त करने का अच्छा अवसर है.शायद यह वर्ष बहुतों के जीवन में अन्तिम वर्ष हो जो इसे पढ़ रहे हैं.क्या नौजवानों में कोई ऐसा है जो इस विनती को पढ़कर भी संसार के क्षणिक आनन्द को पसन्द करेंगे और उस शान्ति से परे रहेंगे जो मसीह अपनी इच्छा के सच्चे खोजी तथा पूरा करने वाले को देता है संसार के भोगविलास को पसंद करेगा ककेप 246.1