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माता-पिता का सहमत होना आवश्यक है ककेप 249

बालक स्वभाव से प्रेमी तथा सूक्ष्मग्राही होते हैं. वे शीघ्र ही प्रसन्न अथवा अप्रसन्न हो जाते हैं.प्रेमी शब्दों द्वारा विनम्र शासन व कामों से माताएं अपनी सन्तान को हृदय पाश में बांध लेती है.बच्चों के साथ कठोर बर्ताव करना भारी भूल है.प्रत्येक कुटम्ब अनुशासन में स्थिरता और लालसाहीन प्रतिबन्ध की भारी आवश्यकता है.जो आप को कहना है धीरज से कहिए;सोच विचार के साथ कदम उठाइए,और जो कुछ आप कहें उसे अवश्य पूरा कीजिए. ककेप 249.6

माता-पिता अपने बाल्यकाल को न भूलें.आप प्रेम और सहानुभूति की कैसी आकांक्षा करते थे.जब कोई आप की जांच पड़ताल करते या आपको डाँटते थे तो आपको कैसी अप्रसन्नता होती थी.वे अपने मन को बालक सा बनाकर बालक की आवश्यकताओं को समझने का प्रयत्न करें. तौभी प्रेम निश्चित दृढ़ता के साथ अपने बालकों से आज्ञा पालन की आशा करें.माता-पिता की बात पूर्ण रुप से देह मानी जावे. ककेप 250.1

कौटुम्बिक शासन में ढिलाई का परिणाम हानिकारक है.वास्तव वह अनुशासनहीनता के अनुरुप है.यह प्रश्न बहुधा पूछा जाता है कि धार्मिक माता-पिता की सन्तान उद्दण्ड निडर,अनुशान हीन क्यों होती है. इस प्रश्न का उत्तर घर का प्रशिक्षण है. ककेप 250.2

यदि माता-पिता में मतभेद है तो ऐसे समय वे बच्चों से अलग एकान्त में हो जावे जब तक मतैक्य न हो जावे. शासन कार्य में यदि माता-पिता एक मन हों तो बच्चे समझ लेंगे कि उनसे क्या आशा की जाती है.यदि पिता के विचार में माता शासन में कठोर हो और यदि पिता अपने शब्द व संकेत से माता के शासन के प्रति उदासीनता प्रगट करे व माता के व्यवहार के विपरीत वह बच्चों को लाड़ दुलार दिखावें तो बालक का जीवन नष्ट हो जाएगा.बालक शीघ्र जान लेगा कि वह अपनी मन मानी कर सकता है.जो माता पिता इस प्रकार व्यवहार के द्वारा बालकों के प्रति पाप करते हैं वे इन आत्माओं के विनाश के उत्तरदायी हैं. ककेप 250.3

पहिले माता-पिता अपने आप को वश में रखना सीखें तब जब वे अपने बालकों को भली भांति वश में रख सकेंगे.जब जब वे स्वयं आत्म संयमी न होकर अधीर होकर बात या कार्य करते हैं तो वे परमेश्वर के विरुद्ध पाप करते हैं.पहिले वे अपने बालकों के साथ वार्तालाप करके उनकी भूल उन पर प्रगट कर उनका पाप दिखला कर उन्हें बतलायें कि ऐसा कर के उन्होंने माता-पिता के विरुद्ध नहीं वरन् परमेश्वर के विरुद्ध भी पाप किया है. ककेप 250.4

अपने बालकों को सुधारने के पूर्ण अपने हृदयों को दया और दु:ख से विनम्र करके प्रार्थना की जाए.तब आप के शासन के फलस्वरुप आप की सन्तान आप से घृणा नहीं करेंगे.वे आप से प्रेम करेंगे.वे आप से प्रेम करेंगे.वे इस बात को समझेंगे कि आप ने अपने बालकों की ताड़ना इस लिए नहीं की है कि उन्होंने आप को अड़चन में डाला है या आप अपनी अप्रसन्नता प्रगट करना चाहते हैं पर यह आप का कर्तव्य हैं जो उनकी भलाई के लिए है जिससे वे पाप में बढ़ने के लिए छोड़ न दिए जावें. ककेप 250.5