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कलीसिया का दायित्व ककेप 261

रात्रि के दर्शन के समय मैं एक बड़ी मंडली के बीच उपस्थित थी जहाँ पर शिक्षा का विषय श्रोताओं के दिमाग को व्याकुल कर रहा था.हमारा एक दीर्घ-कलीन शिक्षक भाषण दे रहा था. उसने कहाः शिक्षा का विषय ऐसा है जिससे सम्पूर्ण सेवंथ-डे ऐडवेनटिस्ट जनता को दिलचस्पी रखनी चाहिये.” ककेप 261.1

कलीसिया का एक विशेष कार्य अपने बालकों को तालीम देने और उनका शिक्षण करने का है ताकि वे किसी अन्य पाठशाला की शिक्षा से या किसी अन्य समाज में भ्रष्ट आदत वाले व्यक्तियों से प्रभावित न हों.संसार अधर्म से और परमेश्वर की आज्ञा भंग करने की भावनाओं से भरा हुआ है.नगर व कस्वे सदोम की भांति बन गये हैं और हमारे बालकों के सामने प्रतिदिन अनेक दुष्टाचार का खतरा बना रहता है.जो बालक सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं अवसर उन का ऐसे बालकों से सम्बंध होता है.जिनकी उनसे भी अधिक लापरवाही की जाती है और जो पढ़ाई के कमरे में व्यतीत किये गये समय के अलावा गली कूचे में की शिक्षा प्राप्त करने को छोड़ दिये जाते हैं.बालकों के हृदय पर सरलता से प्रभाव पड़ जाता है.जब तक उनके अड़ोस-पड़ोस यथोचित प्रकार के नहीं तो शैतान इन उपेक्षित बालकों को सुशिक्षित बालकों पर प्रभाव डालने को उपयोग में लाएगा.इस प्रकार सब्बत मानने वाले माता-पिता की जानकारी वे पहिले कि क्या-क्या हो रहा है,दुष्टता के पाइ सीख लिये जाते और उनके बालकों की आत्माएं भ्रष्ट हो जाती हैं. ककेप 261.2

अनेक परिवार अपने बालकों की शिक्षा के निमित्त उन स्थानों को स्थानान्तर करते हैं जहां हमारे बड़े-बड़े स्कूल स्थापित हैं.वे स्वामी के लिये अच्छी सेवा वहीं रहकर कर सकते हैं.उन्हें अपनी मंडली को प्रोत्साहन देना चाहिये कि एक चर्च स्कूल खोले जहां उस इलाके के बालक सर्व व्यावहारिक मसीही शिक्षा प्राप्त कर सकें.उनके बालकों के लिये और परमेश्वर के काम के लिये ही सुन्दर होगा यदि वे उन छोटी मंडलियों के बीच में रहें जहां उनकी मदद की आवश्यकता है बजाय इसके कि वे बड़ी-बड़ी मंडलियों में जायं जहां शायद उनकी इतनी आवश्यकता नहीं है और भय है कि वे आध्यात्मिक आलस्य के प्रलोभन में गिर जायं. ककेप 261.3

जहां कहीं भी थोड़े से सब्बत मानने वाले विश्वासी माता-पिता को चाहिये कि एक स्थान का प्रबंध करें जहां उनके बालकों और युवकों को शिक्षा दी जा सके.उसको एक मसीही शिक्षक रखना चाहिये जो समर्पित मिश्नरी की भांति बालकों को इस प्रकार की शिक्षा दे कि वे भी मिश्नरी बन सकें. ककेप 261.4

हम परमेश्वर से गम्भीरता तथा पवित्रता के साथ प्रतिज्ञाबद्ध हैं कि अपने बालकों का पालन पोषण परमेश्वर के लिये करें न कि संसार के लिये;उनको शिक्षा दें कि वे अपना हाथ जगत के हाथ में न दें किन्तु परमेश्वर का भय मानें, इससे प्रेम करें और उसकी आज्ञाओं का पालन करें.उसके मन को इस विचार से प्रभावित करता है कि वे उनके सृजनहार के रूप में बनाए गये हैं और मसीह उनका नमूना है जिसके सांचे में उन्हें ढलना है,उनकी शिक्षा पर परमोत्साह पूर्वक ध्यान देना चाहिये,उन्हें त्राण के विषय में ज्ञान प्राप्त हो और उनका जीवन तथा चरित्र ईश्वरीय सदृश्यता के सांचे में ढल जाय. ककेप 261.5

कर्मचारियों की जरुरत को पूरा करने के हेतु परमेश्वर की इच्छा है कि विभिन्न देशों में शिक्षा केन्द्र खोले जायं जहां होनहार विद्यार्थियों को ज्ञान की व्यावहारिक शाखाओं तथा बाइबल के सत्यों में तालीम दी जावे.इन व्यक्तियों के काम में सलंग्न रहने से नये क्षेत्रों में वर्तमान सत्य की विशेषताओं का चित्रण होगा. ककेप 262.1

हमारी पुरानी कान्फ्रेंसों से मिशनरी के रूप में भेजे जाने वाले व्यक्तियों की तालीम के अलावा विचित्र देशों में ऐसे व्यक्तियों का शिक्षण किया जाय जो अपने देशबंधुओं तथा पड़ोसियों के लिये स्वयं काम करें और जहां तक सम्भव हो उनके लिये अपने हो काम करने के क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त करना अच्छा और सुरक्षापूर्ण होगा.कर्मचारी की तथा काम की उन्नति के हेतु यह विचार सर्वदा उचित नहीं है कि वह शिक्षा प्राप्ति के लिये विदेश को जावे. ककेप 262.2

मण्डली के रूप में तथा व्यक्तिगत रुप में यदि हम न्याय के दिन निर्दोष ठहरना चाहें तो हमें युवकों के शिक्षणार्थ उदारचित से अधिक प्रयत्न करने चाहिये ताकि वे इस विशाल कार्य की विभिन्न शाखाओं के लिये जो हमारे हाथों में सौंपा गया है कुशल रौति से सुयोग्य हो सकें.विद्वता के साथ प्रबंध करना चाहिये जिससे योग्य पुरुषों की तीक्ष्ण बुद्धिको मजबूत तथा विधिवत् बनाया जा सके ताकि मसीह के काम में ऐसे चतुर कर्मचारियों की त्रुटि के कारण बाधा न पड़े जो अपने काम को उत्साह और ईमानदारी के साथ करते हैं. ककेप 262.3