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नैतिक भ्रष्टता का परिणाम ककेप 307

कुछ लोग जो धार्मिकता का बड़ा दावा करते हैं हस्तमैथुन के अपराध और उसके परिणामों को नहीं समझते हैं.देर से पड़ी आदत ने उनकी समझ को अंधा कर दिया.वे इस पतित पाप के अत्यधिक अधर्म को महसूस नहीं करते जो शरीर रचना को हानि तथा दिमाग की स्नायुशक्ति को नाश कर रहा है.जब नैतिक सिद्धान्त किसी स्थापित आदत के साथ संघर्ष करता है तो वह हृदय अधिक कमजोर प्रतीत होता है.गम्भीर संदेश उस हृदय पर जिसकी इस कुकर्म के विरुद्ध सुरक्षा नहीं हुई हैं जबरदस्ती से प्रभाव नहीं डाल सकते. भोग विलास की अस्वाभाविक इच्छा को संतुष्ट करने की अस्वस्थ उत्तेजना के कारण मस्तिष्क की शीघ्रगाही नाड़िया अपनी स्वस्थ स्थिति को खो डालती हैं. ककेप 307.1

नैतिक भ्रष्टता हस्तमैथुन ने अन्य बुराइयों की अपेक्षा जाति की अधिक क्षति पहुंचाई है.इस आदत को इस बेहद रीति से व्यवहार में लाया जाता है कि हम भयभीत होते हैं क्योंकि इससे हर प्रकार की बीमारी पैदा होती है. ककेप 307.2

माता-पिता आम तौर से इस बात का संदेह नहीं करते कि उनके बालक इस दुराचार के बारे में कुछ समझते हैं.अनेक परिस्थितियों में माता-पिता हो अपराधी होते हैं.उन्होंने वैवाहिक विशेषाधिकारों को भंग किया है और इस लत के द्वारा अपनी निर्बल होती गईं.पाश्विक शक्ति ने आध्यात्मिक शक्ति को पराजित कर दिया.बच्चे विकासित पाश्विक प्रवृति के साथ पेदा होते हैं और माता-पिता के चरित्र की छाप उन पर लगी हुई होती है.इन माता-पिता से उत्पन्न बालक भी इस स्वभावत:घिनौने गुप्त पाप के आदी हो जाते हैं.माता-पिता के पापों को दंड उनके बालकों को उठाना होगा क्योंकि माता-पिता ने उन्हें अपनी कामुक प्रवृति की छाप दी है. ककेप 307.3

जो लोग इस आत्मा-और-देह को नष्ट करने वाले पाप में पूर्व रीति से अभ्यस्त हो जाते हैं वे मुश्किल से आराम कर सकते हैं जब तक वे गुप्त अपराध का भार अपने साथियों पर न डाल दे.जिज्ञासु की भावना जाग उठती और इस पाप का ज्ञान एक युवक से दूसरे तक और एक बालक से दूसरे तक पहुंचाया जाता है मुश्किल ही से शायद कोई रह जाता हो जो इस पतित अपराध की आदत से अनजान रहे. ककेप 307.4

गुप्त आदतों का अभ्यास शरीर रचना की मार्मिक शक्तियों को अवश्य ही नष्ट कर डालता है.सारी अनावश्यक कार्यवाही के बाद ही पतन शुरु हो जाता है.बालकों की मार्मिक राजधानी,मस्तिष्क पर आरम्भिक अवस्था ही से ऐसा भार पड़ जाता है कि बड़ी कमी और थकावट महसूस की जाती है जिससे सारी देह विभिन्न प्रकार के रोगों के जोखिम में पड़ जाती है. ककेप 307.5

यदि यह लत पन्द्रह वर्ष कीआयु के ऊपर से जारी हो तो प्रकृति,दुरुपयोग के कारण जो दु:ख उठाया जा उठा नहीं है उसके प्रति प्रतिरोध करेगी और उन से उसके नियमों को खंड़न करने के लिये दंड़ भरवाएगी;विशेषकर तीस वर्ष की आयु से लेकर पैंतालीस वर्ष तक देह का नाना प्रकार के दर्द तथा रोग जैसे यकृत और फेफड़ों की खराबी,आधासी सी का दर्द,गंठिया रोग,रीढ़ के दर्द,रोगग्रस्त गुर्दे नासूर आदि हो जायंगे. प्रकृति की सुन्दर यंत्रकला के कुछ पुर्जे टूट फूट जाते हैं और शेष अंशों के लिये कठिन कार्य छोड़ जाते हैं जिससे प्रकृति की सुन्दर व्यवस्था अव्यवस्थित हो जाती है;और अकसर शरीर गठन (स्वास्थ्य) में तुरन्त अस्वस्थता आ जाती है और परिणाम मृत्यु होती है. ककेप 307.6

स्वर्ग की दृष्टि में शरीर को क्रमश: पर निश्चित रुप में मार डालना इतना हीभारी काम है जितना एक झटके से आत्मा त्याग करना.जो लोग दुराचार के कारण अपने ऊपर निश्चित बर्बादी लाते हैं यदि वे दिल से पश्चाताप न करे तो वह यहां भी दंड भोगेगा और भविष्य में एक झटके में आत्महत्या करने वाले की तरह उसके लिए स्वर्ग में प्रवेश करने का कोई अवसर न होगा. ककेप 308.1

सब कमजोर बालक बुरी आदतों के दोषी ठहराये जाने से सम्मिलित नहीं किये जा सकते.शुद्ध हृदय और अत:करण वाले कुछ ऐसे हैं जो विभिन्न कारणों से रोग ग्रस्त होते हैं और जिन पर उनका कोई नियंत्रण नहीं होता. ककेप 308.2

गुप्त पाप, उच्च प्रस्ताव,सच्ची कोशिश तथा इच्छा की शक्ति को जो एक सुन्दर धार्मिक चरित्र का निर्माण करते हैं नष्ट कर देता है.जिनको मसीही होने के नियमों का सच्चा अर्थ मालूम है और यह जानते हैं कि मसीही के शिष्य इस प्रकार प्रतिज्ञाबन्द्ध होते हैं कि अपनी इच्छाओं, अपनी शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों को उस (परमेश्वर )की इच्छा के अधीन रखें.जो अपनी इच्छाओं के वश में हैं वे मसीह के शिष्य नहीं बन सकते.हर बुराई के आविष्कारक अपने सरदार की सेवा में इतनै संलग्न हैं कि अपनी भ्रष्ट आदतों को छोड़कर मसीह की सेवा को चुन नहीं सकते. ककेप 308.3

जब बालक कुमारावस्था में बुरी आदत को धारण कर लेते हैं तो वे कभी ऐसी शक्ति प्राप्त नहीं कर पायंगे जिससे सही रीति से शारीरिक, मानसिक तथा नैतिक चरित्र का पूर्णत: विकास हो सके. ककेप 308.4

जो बुरी आदतों को अभ्यास करते हैं उनके लिये एक मात्र आशा यही है कि सदा के लिये उन्हें त्याग दें, यदि वे स्वास्थ्य का वर्तमान में और मुक्ति का भविष्य में कुछ मूल्य समझे.जब कोई अधिक समय तक इन आदतों में लिप्त रहता है तो प्रलोभन का मुकाबला करने तथा भ्रष्ट व्यसन का इनकार करने के लिये जबरदस्त कोशिश की जरुरत पड़ती है. ककेप 308.5

हमारे बालकों के लिये गंदी आदतों के प्रति निश्चित सुरक्षा यह है कि वे मसीह के झुंड में प्रवेश करने की चेष्टा करें और सच्चे गड़रिये की देखरेख में आवें.यदि वे उसकी आवाज पर ध्यान देंगे तो वह उनको हर एक बुराई से बचाकर सारे जोखिमों से सुरक्षित रखेगा.वह कहता है,“मेरी भेड़े मेरा शब्द सुनती हैं...और पीछे पीछे हो लेती हैं.’’मसीह में उनको चारा मिलेगा,शक्ति व आशा प्राप्त होगी और मन को अन्य दिशा में रफरने और हृदय को संतुष्ट करने की खातिर व्याकुल करने वाली इच्छाएं घबराइट में न डालेंगी.उनको बहुमूल्य मोती मिल गया है इसलिये उनके मन में शांति है.उनके आमोद प्रमोद के साधन शुद्ध,शांतिमय,उच्चकोटि के तथा स्वर्गीय प्रकृति के होते हैं.उनका कोई दु:खदायी प्रभाव तथा कोई पश्चाताप की भावना पीछे नहीं छूटती.ऐसा आमोद-प्रमोद स्वास्थ्य को नहीं बिगाड़ता न मस्तिष्क को निर्बल करता. ककेप 308.6