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अध्याय 56 - जो हमारे विश्वास व मत के नहीं उनके साथ सम्बन्ध ककेप 318

शायद यह प्रश्न जाय कि क्या हम दुनिया से कोई सम्बन्ध न रखें? इसमें परमेश्वर का वचन हमारा पथ प्रदर्शन करेगा. परमेश्वर का वचन निषेध करता है कि हम नास्तिकों तथा अविश्वासियों के साथ एक हों.हमें उन में से निकल आना और पृथक होना है. किसी भी दशा में हम को उनके काम की योजनाओं सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए. परन्तु हमें एकान्त जीवन नहीं व्यतीत करना चाहिए. हमें शारीरिक लोगों केलिए जितनी भलाई करने की सम्भावना है करनी चाहिए. ककेप 318.1

मसही ने हमें इसका नमूना दिया है. जब उसके महसूल लेने वालों और पापियों द्वारा दावत मिलती थी,वह इन्कार नहीं करता था क्योंक उनके साथ मिले जुले बिना वह किसी और रीति से इस वर्ग तक नहीं पहुंच सकता था. परन्तु हर अवसर पर वह ऐसे विषयों पर बातचीत करता था जिनसे उनके मन में अभिरुचि पैदा होती थी. और वह हम को आज्ञा देता है उसी पुकार तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है,बढ़ाई करें.’’(मत्ती 5:16) ककेप 318.2

अविश्वासियों के समाज से हम को कोई हानि नहीं पहुंचेगी यदि हम उनके साथ केवल इस अभिप्राय से मिले जुले कि उनको परमेश्वर से जोड़ दें परन्तु आध्यात्मिक तौर से उनके प्रभाव का प्रतिरोध करने को मजबूत रहे. ककेप 318.3

मसीह दुनिया में उसको बचाने के लिए और पतित का नाता असीम परमेश्वर से जोड़ने के लिए आया.मसीह के शिष्यों को प्रकाश केसाधन बनना है.अपने सम्बन्ध को परमेश्वर के सानि कायम रखते हुए उनको अंधेरे और गलती में पड़े हुओं को स्वर्ग से प्राप्त की हुई उत्तम वरदानों को पहुंचना है.हनीक अपने जमाने में पड़े हुओं को स्वर्ग से प्राप्त की हुई उत्तम वरदानों को पहुंचाना है.हनोक अपने जमाने के अधर्म के कार्यों से भ्रष्ट नहीं हुआ;तो हम इस युग की बुराइयों से क्यों भ्रष्ट हों? परन्तु हम अपने गुरु को तरह दु:खी मानव के लिए दया, भाग्यहीनों के लिए करुणा और जरुरतमंदों,सताये हुओं और आशाहीने की भावनाओं तथा आवश्यकताओं के लिए उदार विचार प्रगट कर सकते हैं. ककेप 318.4

मैं प्राना करती हैं कि मेरे भाई लोग महसूस करें कि तीसरे दूत का संदेश हमारे लिए बड़ा अर्थ रखता है और सच्चे सब्बत का पालन एक चिन्ह जो परमेश्वर ने मानने वालों और जो उसकी सेवा नहीं करते उनमें फर्कबतलाता.जो निद्रालु तथा उदासीन हैं वे जाग उठे. ककेप 318.5

यह भाव रखना कि हमारा विश्वास,हमारा धर्म हमारे जीवन में शासन करने वाली शक्ति नहीं है इससे परमेश्वर का बड़ा निरादर होता है.यों हम उसकी आज्ञाओं से मुकर जाते हैं जो हमारा जीवन है और इन्कार करते हैं कि वह हमारा परमेश्वर नहीं है न हम उसके लोग है.  ककेप 318.6