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“ओह, आइये हम परमेश्वर की आराधना करें” ककेप 47

मसीह ने कहा, ‘’जहाँ दो या तीन मैरे नाम पर इकट्ठे होते हैं, वहाँ मैं उनके बीच में होता हूँ.’’(मत्ती 18:20)जहां कहीं दो या तीन विश्वासी हैं वे सब्बत के दिन इकट्ठा होकर परमेश्वर के वायदे को तलब कर सकते हैं. ककेप 47.5

छोटे-छोटे समूहों को जो परमेश्वर की उपसाना के लिए उसके पवित्र दिन में जमा हुये हैं अधिकार है कि वे यहोवा से उत्तम से उत्तम आशिष को तलब कर सकते हैं. उनको यकीन होना चाहिये कि उनकी सभा में प्रभु यीशु प्रतिष्ठित पाहुन है.प्रत्येक सच्चे अराधक को जो सब्बत को पवित्र मानता है इस प्रतिज्ञा को तलब करना चाहिये, जिस से तुम यह बात जान रखो कि यहोवा हमारा पवित्र करने हारा है.’’(निर्गमन31:13) ककेप 47.6

सब्बत का दिन मनुष्य के लिए बना है कि उसके लिए आशीषप्रद हो जब वह अपना ध्यान सांसारिक परिश्रम से उठाकर परमेश्वर की भलाई और महिमा पर लगावे.यह आवश्यक है कि परमेश्वर के लोग एकत्र होकर उसके विषय में वार्तालाप करें और उसके वचन में दी हुई सच्चाइयों के विषय विमर्श करें और थोड़ा समय यथोचित प्रार्थना में व्यतीत करें. परन्तु सब्बत के दिन पर भी ये अवसर अधिक समय लगा देने और दिलचस्पी से खाली होने से थकाऊ नहीं बनना चाहिए. ककेप 48.1

जब कलीसिया में कोई अध्यक्ष न हो तो किसी को सभा का नेता नियुक्त करना चाहिये. परन्तु यह जरुरी नहीं कि वह उपदेश देवें अथवा उपासना में अधिक समय व्यतीत करे. उपदेश की अपेक्षा एक छोटा सा बाइबल रीडींग (बाइबल के पदों को पढ़वाकर टीका टिप्पणी कर समझाना)प्रायः अधिक लाभदायक होगा. इसके पश्चात् प्रार्थना की तथा साक्षी देने की सभा की जा सकती है. ककेप 48.2

प्रत्येक को महसूस करना चाहिये कि सब्बत दिन की मीटिंग को दिलचस्प बनाने में उनका भी हिस्सा है. आप को दस्तूर ही के अनुसार जमा होना नहीं चाहिये किन्तु विचार विमर्श, अपने दैनिक अनुभवों का वर्णन करने, धन्यवाद देने, ईश्वरीय प्रकाश के हेतु अपनी इच्छा प्रगट करने के लिए भी जमा हो ताकि आप परमेश्वर की यीशु मसीह जिसे उसने भेजा है जान ले. मसीह के सम्बन्ध में आपस में बातचीत करने से आत्मा को जीवन मके संकटों तथा संघर्षों के लिए बल प्राप्त होगा. यह कभी न ख्याल करें कि आप मसीही होकर एकान्त में रह सकते हैं, प्रत्येक मानव जाति एक अंग है और एक का अनुभव उसके साथी के अनुभव से प्रमाणित होता है. ककेप 48.3