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अध्याय 12 - पृथ्वी पर की कलीसिया ककेप 100

पृथ्वी पर परमेश्वर की एक कलीसिया है जो उसके चुने हुये लोग हैं और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं.वह एक मानव समुदाय का नेतृत्व कर रही है न कि भटके हुए दलों न इके-दुकों का.सत्य तो पवित्र करने वाली शक्ति है परन्तु युद्धरत कलीसिया जयवंत नहीं है.गेहूं के बीच जंगली दाने भी हैं.” दास ने उससे कहा, क्या तेरी इच्छा है कि हम जाकर उनको उनको बटोर लें? उसने कहा, ऐसा नहीं न हो कि जंगली दाने के पौधे बटोरते हुए उनके साथ गेहूं भी उखाड़ लो.’’(मत्ती 13:28,29)इंजील का जाल न केवल अच्छी मच्छलियों को पकड़ लाता है किन्तु बुरी बालियों को भी और केवल परमेश्वर ही अपने को पहचानता है. ककेप 100.1

हमारा व्यक्तिगत कर्तव्य है कि परमेश्वर के साथ नम्रता से चलें.हमें कोई अनोखा,नया संदेश नहीं ढूंढना चाहिये.हमें यह भी नहीं सोचना चाहिये कि परमेश्वर के चुने हुये भक्त जो प्रकाश में चलने की कोशिश कर रहे हैं बाबेल से सम्बन्धित हैं. ककेप 100.2

यद्यपि कलीसिया में बुराइयाँ उपस्थित हैं और जगत के अंत तक रहेगी तौभी कलीसिया को इन अंतिम दिनों में पाप से अपवित्र तथा भ्रष्ट हुये जगत का प्रकाश होना चाहिये.कलीसिया बलहीन और दृषित तो है जिसको घुड़की, चितावनी, परामर्शकी आवश्यकता है किस पर भी पृथ्वी पर वह एक मात्र वस्तु है जिसका मसीह बड़ा आदर करता है.संसार एक कारखाना है जिसमें मानव और ईश्वरीय साधनों के सहयोग द्वारा यीशु अपने अनुग्रह और करुणा का मनुष्य के हृदय पर प्रयोग कर रहा है. ककेप 100.3

परमेश्वर के एक पृथक लोग हैं अर्थात् पृथ्वी पर एक अद्वितीय कलीसिया है. परन्तु सत्य को सिखलाने की सुविधाओं में और परमेश्वर की व्यवस्था को सच्चा ठहराने में सबसे श्रेष्ठ है. परमेश्वर कीओर कुछ नियुक्त साधन है अर्थात् ऐसे लोग जिनका वह पथप्रदर्शन कर रहा है.जिन्होंने सारी कठिनाइयों को झेला है( अथाव दिन की गर्मी व सर्दी का सहन किया है)जो स्वर्गीय कार्यकर्ताओं के संग इस संसार से मसीह के राज्य को फैलाने में सहयोग दे रहे हैं. इन चुने हुये कार्यकर्ताओं के संग सारे लोग मिल जाये और अंत में पाये जायं जिनमें पवित्र जनों का धीरज है जो परमेश्वर की आज्ञाओं और यीशु के विश्वास का पालन करते है. ककेप 100.4