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अध्याय 17 - समस्त संसार के मसीही मसीह में एक हो जाते हैं ककेप 127

यदि हम मसीह के पास उसी सादेपन से आवें जिस प्रकार बालक अपने सांसारिक माता-पिता के पास है और उन वस्तुओं के लिए विनती करें जिन्हें उसने देने की प्रतिज्ञा की है और यह विश्वास करें कि वे हमें मिलेगी तो अवश्य ही वे वस्तुएं हमें प्राप्त होंगी.यदि हम सब ऐसा विश्वास रखें जैसा होना चाहिए तो हमारी सभाओं में हमें आत्मा का ऐसा बड़ा आशीर्वाद प्राप्त होगा जैसा अब तक हमें मिला नहीं;मुझे खुशी के कि अभी सभा के कुछ दिन बाकी हैं.अब प्रश्न यह हैं:क्या हम पीने के लिए चश्मे के पाय आयेंग?क्या सत्य के शिक्षक नमूना देंगे? परमेश्वर अद्भुत काम करेगा यदि हम विश्वास द्वारा उसके वचन का यकीन करें.आह ! परमेश्वर करे कि हम उसके सामने सारी सभा को दीन होते देखें. ककेप 127.1

इन मीटिंग के प्रारम्भ ही से मेरे दिल में यह गवाही आ रही है कि प्रेम और विश्वास के विषय पर अधिकतर उपदेश करं, यह इस लिए हैं कि आपको इस साक्षी की आवश्यकता है. कुछ लोगों ने जो इन मिश्नरी क्षेत्रों में प्रवेश कर चुके हैं मुझे से आकर कहा: आप फ्रन्सीसी लोगों को नहीं समझती आन जरमन जनता से परिचित नहीं.उन को तो विशेष तरीके से मिलना चाहिए.” ककेप 127.2

लेकिन मैं पूछती हूँ:क्या परमेश्वर भी उनकी नहीं समझता?क्या वही अपने दासों को लोगों के लिए संदेश नहीं देता है? वह जानता है कि उनको क्या जरुरत है और यदि उसके दासों द्वारा लोगों के लिए संदेश सीधे परमेश्वर की ओर से आता है तो जिस ध्येय से वह भेजा गया है वह मनोरथ अवश्य पूरा होगा;वह सबको मसीह में एक बनाएगा.यद्यापि कुछ सचमुच में फ्रांसीसी और दूसरे सचमुच में जरमन हैं और अन्य सचमुच में अमेरिकन हैं तौभी वे सब के सब निश्चित रुप में मसीह को भांति होंगे. ककेप 127.3

यहूदियों का मंदिर पहाड़ के तराशे हुए पत्थरों से बना था और मंदिर का प्रत्येक पत्थर अपनीअपनी जगह के लिए तराश करके,चिकना करके और जांच करके तैयार किया गया था इससे पहिले कि वह यरुशलेम को लाया गया.और जब ये पत्थर लाये गये तो इमारत का काम बिना कुल्हाड़ी,व हथौड़ी की आवाज के आगे बढ़ता गया.यह मकान परमेश्वर के आत्मिक मंदिर को प्रदर्शित करता है जिसकी सामग्री हर राष्ट्र भाषा व सम्प्रदाय की हर श्रेणी में से चाहे ऊंच हों या नीच,अमीर हों या गरीब,विद्वान हो या मूर्ख सभी लोगों में से एकत्र की गई है.ये निजीव सामग्री नहीं है कि छेनी व हथौड़ी से ठोंक कर बिठाई जाय.वे तो जिन्दा पत्थर हैं जो सत्य द्वारा संसार से खोद अपनी-अपनी जगह ठीक-ठीक बिठाने के लिए तराश रहा थ चिकना कर रहा है.जब समाप्त हो जाएगा तो यह मंदिर उसके सारे हिस्सों में त्रुटिरहित होगा और स्वर्गदूत और मानव की दृष्टि में प्रशंसनीय होगा क्योंकि उसका बनाने वाला परमेश्वर है.कोई यह न सोचे कि उसके ऊपर एक भी हथौड़ी को चोट लगेगी. ककेप 127.4

कोई ऐसा व्यक्ति या राष्ट्र नहीं है जो आदत और विचार में सिद्ध हो. एक दूसरे से सीखना जरुरी है.इस लिए परमेश्वर चाहता है कि विभिन्न जातियाँ परस्पर एक को दूसरे से मिलें और उनका निर्णय और अभिप्राय एक ही हो.तब वह मेल व ऐक्य जो मसीह में है यथार्थ रुप में प्रगट हो जाएगा. ककेप 128.1

मैं इसमें आने से प्राय:डरती थी क्योंकि मैंने बहुतों को कहते सुना था कि यूरोप की विभिन्न जातियाँ अनोखी हैं और उनके पास पहुँचने का एक विशेष मार्ग है परन्तु परमेश्वर ने उनको बुद्धि देने का वायदा किया है जो जरुरतमंद हैं और जो उसके लिए विनती करते हैं. जिस स्थान पर लोग सत्य को ग्रहण करेंगे वहीं पर परमेश्वर उनको ला सकता है.परमेश्वर को अपने मन पर काबू करने दो और वह आप को सांचे में ढाले गये जैसे कुम्हार मिट्टी को ढालता है तब ये सब फर्क मिट जाएंगे.भाइयों,मसीह को देखिए,उसके आचरण तथा भावना का अनुकरण करिये फिर आप को इन भांति-भांति की श्रेणियों तक पहुँचने में कोई परेशानी न होगी. ककेप 128.2

हमारे पास अनुकरण करने को छ:नमूने नहीं है न पांच हैं हमारे पास एक नमूना है और वह मसीह यीशु है.यदि इतालयानी भाई,फ्रांसीसी भाई और जरमन भाई उसकी तरह बनने की कोशिश करें तो उन्हें अपने पांव उसौ बुनियादी सत्य पर खड़े करने होंगे;एक हो आत्मा जो एक में प्रेवश करेगा दूसरे में भी बास करेगा,उन सब में मसीह महिमा की आशा बास करेगी.भाइयों मैं आपको चेतावनी देती हैं कि विभिन्न जातियों के बीच जुदाई की दीवाल मत खड़ी करो.इसके प्रत्युत जहां कहीं ऐसी दीवाल खड़ी हो उसको ढा देने की कोशिश करो.हम सबों को एकता के बंधन से बाँधने का प्रयत्न करना चाहिए जो मसीह में पाया जाता है और एक ही अभिप्राय से काम करें जिसे हमारे भाइयों का त्राण हो. ककेप 128.3

मेरे सहकर्मी भाइयों क्या आप परमेश्वर के कीमती वायदों को ग्रहण करेंगे? क्या आप स्वार्थ को दृष्टि से दूर कर के यीशु को प्रकट होने देंगे? स्वार्थ को मर जाना चाहिए.इससे पहिले कि परमेश्वर आप के द्वारा काम कर सकें.मैं चौंक जाती है जब मैं स्वार्थ को यहां,वहां,इस में, उसमें झलकता देखती हूँ,मैं आप से यीशु नासरी के नाम पर कहती हूँ.कि आप की इच्छाओं को मर जाना चाहिए;मैं आप से यीशु नासरी के नाम पर कहती हैं कि आप की इच्छाओं को मर जाना चाहिए;उनको परमेश्वर की इच्छा बनना चाहिए,वह आप को पिघला कर प्रत्येक अशुद्धता से स्वच्छ करना चाहता है.इससे पहिले कि आप परमेश्वर की शक्ति से भरपूर हो जाय आप के स्वयं के लिए भारी कार्य किया जाना चाहिए. मैं आप से विनती करती हूँ कि परमेश्वर के निकट आइए ताकि आप उसकी कीमती आशीषों को सभा के समाप्त होने से पहिले महसूस कर सकें. ककेप 128.4