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पिता परमेश्वर का मसीह में प्रकट होना ककेप 133

व्यक्तिगत रुप में परमेश्वर ने अपने तईं अपने पुत्र में प्रकट किया.यीशु जो पिता की महिमा का तेज’ और उसके तत्व कीछाप है, ‘’(इब्रानियों 1:3) जब वह इस पृथ्वी पर था तो मानव के रुप में आया.व्यक्तिगत त्राणकर्ता के रुप में वह इस जगत में आया. एक शरीर के रुप में त्राणकर्ता बनकर वह स्वर्ग पर चढ़ गया. एक त्राणकर्ता स्वरुप वह स्वर्गीय न्यायालय में हमारे लिए मध्यस्थ का कार्य करता है.परमेश्वर के सिंहासन के सामने हमारे लिए मनुष्य के पुत्र के सरीखा’’सेवा करता है! (प्रकाशितवाक्य 1:13) ककेप 133.3

मसीह ने जो जगत का उजयाला है अपने ईश्वत्व के चकाचौंध करने वाले तेज पर परदा डाला और मनुष्य का रुप धारण कर मनुष्य के बीच रहने आया ताकि वे बिना भस्म हुए अपने सृजनहार से परिचित हो जाएं.किसी मनुष्य ने कभी परमेश्वर को नहीं देखा सिवाय इसके कि जैसा मसीह ने उसको प्रकट किया. ककेप 133.4

मसीह मानव प्राणियों को वह बातें सिखाने आया जिन्हें परमेश्वर चाहता है कि वे जानें. ऊपर आकाश में नीचे पृथ्वी पर और महासागर के विस्तृत पानी में, हम परमेश्वर की कारीगरी को देखते हैं. सारी सृजित वस्तुएं उसकी सामर्थ्य बुद्धि और उसके प्रेम की साक्षी देते हैं. परन्तु परमेश्वर के व्यक्तितत्व के बारे में जिस प्रकार व मसीह में प्रकट हुआ है,हम तारागण अथवा महासागर अथवा प्रापत(झरने ) से नहीं सीख सकते हैं. ककेप 133.5

परमेश्वर ने देखा कि प्रकृति से भी अधिक स्पष्ट प्रकाशन की आवश्यकता है जिससे उसका व्यक्तितत्व और चरित्र का चित्रण किया जाय. उसने अपना पुत्र जगत में भेजा कि जहाँ तक मानव दृष्टि सहन कर सके वह अदृश्य परमेश्वर के स्वभाव और गुणों को प्रकट करे. ककेप 133.6

यदि परमेश्वर चाहता कि उसका प्रतिरुप ऐसा दिखाया जाए कि वह प्रकृति की वस्तुओं में फूल, वृक्ष,घास में बास करता है तो क्या जब मसीह पृथ्वी पर था अपने शिष्यों से वैसा न वर्णन करता? परन्तु मसीह की तालीम या उपदेश में कहीं परमेश्वर की इस प्रकार व्याख्या नहीं की गई है. मसीह और प्रेरितों ने एक परमेश्वर की उपस्थिति के सत्य की स्पष्टता से शिक्षा दी. ककेप 133.7

मसीह ने परमेश्वर के विषय में सब कुछ प्रगट किया जिसे पापी मानव बिना नष्ट हुए बरदास्त कर सकता था. वह ईश्वरीय गुरु जगत की ज्योति है.यदि परमेश्वर चाहता कि हमें ऐसे ईश्वरीय संदेश की आवश्यकता है जो मसीह और उसके शास्त्र द्वारा किये गये सत्यों से भिन्न है तो वह अवश्य ही ऐसा करता. ककेप 133.8