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निस्वार्थता ChsHin 187

हमें प्रभु यीशु के काम का सर्वश्रेश्ठ उदाहरण लेना चाहिये। वह लगातार भलाई के काम करता चला गया। मंदिर में, आराधनालयों, नगरों की सड़कों, बाजारों और अन्य कार्य क्षेत्रों, सागर के किनारे, पहाड़ों के बीच, उसने सुसमाचार प्रचार किया, लोगों को चंगा किया। उसका जीवन एक निस्वार्थ सेवा का जीवन था और वही हमारे लिये सीखने का पाठ होना चाहिये। उसका नम्र दया से पूर्ण प्रेम, हमारे स्वार्थी होने और हृदय की कठोरता को दूर कर देता है। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च — 9:31) ChsHin 187.4

वह प्रेरणा जो प्रभु के काम को करने के लिये उकसाती है वह किसी भी प्रकार स्वार्थ सेवा से जुड़ी नहीं होना चाहिये। निस्वार्थ भक्ति और बलिदान की आत्मा हमेशा से स्वीकार योग्य सेवा होती है, और हमेशा पहली जरूरत मानी जायेगी। हमारे प्रभु और गुरू चाहता है कि स्वार्थी होने का एक भी धागा परमेश्वर की सेवकाई के काम में न बुना हों। हमारे प्रयासों में हमें योजना प्रवीणता, परिपूर्णता और बुद्धिमानी से काम लेना होगा, जो परमेश्वर पष्थ्वी पर बनने वाले परमेश्वर के भवन के बनाने वालों में परिपूर्णता चाहता है। फिर भी हमारे सारे परिश्रम में हमें यह याद रखना है कि सर्वोच्च गुण या सबसे अच्छी सेवा तभी स्वीकार योग्य होगी जब स्वयं पर भरोसा या स्वार्थ परमेश्वर की वेदी पर न लाये जायें, एक जीवित और ग्रहण योग्य बलिदान के रूप में। (प्रोफेट्स एण्ड किंग्स-65) ChsHin 188.1

दुनिया के सभी लोगों में बदलाव लाने वाले लोगों को निस्वार्थी सबसे अधिक दयालु, सबसे नम्र होना चाहिये। उनके जीवन में सच्चे, निस्वार्थ भाव से किये गये काम दिखाई देने चाहिये। (द मिनिस्ट्री ऑफ हीलिंग- 157) ChsHin 188.2