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दीनता ChsHin 193

स्त्री व पुरूशों को अपनी सेवकाई के काम के लिये चुनने के लिये परमेश्वर ये नहीं पूछता कि क्या वे पढ़ना जानते है? क्या वे इस काम को कुषलता पूर्वक कर सकेंगे? क्या उनके पास धन-सम्पत्ति है ? वह पूछता है “क्या वे नम्र व दीन हैं कि मैं उन्हें अपना काम करने के तरीके सिखा सकूँ? “क्या मैं अपने षब्द उनके होठों में डाल सकता हूँ कि जो मैं उन्हें बोलने को कहूं, वे वही कहें। ” क्या वे मेरे प्रतिनिधि होंगे ? (टेस्टमनीज फॉर द चर्च — 7:144) ChsHin 193.1

गरीब, घषणत और त्यागे हुये लोगों की मद्द करने की कोशिश अपनी प्रतिश्ठा की सीढ़ी पर चढ़कर या सर्वोच्च स्थान पर बैठकर नहीं की जा सकती। क्योंकि इस तरह तुम्हें कुछ भी प्राप्त न होगा। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च — 6:277) ChsHin 193.2

वह जो हमारी कलीसिया की ताकतवर और सफल बना सकता है, वह जल्दबाजी व षोर षराबा नहीं बल्कि षान्ति से किया गया उदार कार्य, कोई लोगों की परेड़ या जोर-षोर से की गई सभायें नहीं बल्कि धैर्य पूर्वक, प्रार्थना से पूर्ण, बिना रूके किये गये प्रयास हैं। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च — 5:130) ChsHin 193.3

हार के कारण मिलने वाला तिरस्कार कभी-कभी आषीश सिद्ध होता है, जो हमारी असमर्थता को दर्शाता है कि परमेश्वर की सहायता के बिना उसकी इच्छा पूरी करना असंभव है। (पेट्रिआक्स और प्रोफेट्स- 633) ChsHin 193.4

उदार व नम्र लोग चाहे छोटे-छोटे, घरों में रहते पर गुणों से भरपूर हैं, उनकी जरूरत है कि वे घर-घर जाकर प्रभु का प्रचार करें, क्योंकि वे कहीं अधिक बेहतर काम पूरा कर सकते है, अद्भुत दानों से भरपूर लोगों की अपेक्षा। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च — 9:37, 38) ChsHin 193.5

सम्पूर्ण स्वर्ग इस काम के बारे में उत्साहित व रूचि दिखा रहा है कि पथ्वी पर परमेश्वर के संदेशवाहक यीशु मसीह, नासरी के नाम से जगत में संदेश फैला रहे हैं। ये एक महान कार्य है, इसलिये हे बहनों और भाईयों, अपने आप की प्रतिदिन प्रभु के सिंहासन के सम्मुख नम्र व दीन करो। ये न सोचो कि हमारी बुद्धि परिपूर्ण है। हमें यह काम बड़ी चाह से करना चाहिए। हमें परमेश्वर से हमको नम्र बनाने की प्रार्थना नहीं करना चाहिए। क्योंकि जब परमेश्वर हमें नम्र बनाना षुरू करता है तो उसका तरीका हमें पसंद नहीं आता। किन्तु हमें हमारे परमेश्वर के ताकतवर हाथों में रहकर दिन-प्रतिदिन नम्र बनना चाहिये । हमें अपने उद्धार के लिये डरते और कांपते हुये काम करना है। जब परमेश्वर हमारे साथ हमारे काम में मद्द करता है कि उसकी इच्छानुसार काम करें और उसे प्रसन्न करें हमें उसके साथ सहयोग करना है जबकि परमेश्वर हमारे द्वारा काम करता है। (द रिव्यू एण्ड हैरल्ड- 12 जुलाई 1887) ChsHin 193.6

हमें उस सीधे मार्ग से प्रवेश करने की लालसा होनी चाहिए, किन्तु यह फाटक के कब्जे ढीले नहीं जो उसे झूलने देगें। यह फाटक संदेह करने वालों को प्रवेश न देगा। अब हमें अनन्त जीवन पाने के लिये पुर—जोर कोशिश करना है अर्थात् जितना कीमती ईनाम है, उतना ही कठिन परिश्रम ये न पैसे से, न जमीन, पद-प्रतिश्ठा से पाया जा सकता है किन्तु केवल मसीह के जैसा चरित्र यदि आप में है तो ही स्वर्ग के फाटक हमारे लिये खोले जायेंगे। ये कोई प्रतिश्ठा, बुद्धि की बढ़ती से नहीं, जो हम अमरता के ताज को पा लेगें। केवल नम्र, उदार एवं छोटे लोग, जिन्होंने परमेश्वर को अपना सब कुछ माना, वे ही ये उपहार पायेंगे। (द सदर्न वॉचमेन- 16 अप्रैल 1903) ChsHin 194.1

जब तुम कोई सेवकाई का काम करके लौटे हो तो अपनी प्रशंसा मत करो परंतु प्रभु यीशु की महिमा करो। कलवरी के क्रूस को ऊँचा उठाओ। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च — 5:596) ChsHin 194.2

सम्मान के पहले अपमान है, मनुश्यों के सामने किसी ऊँचे पद के लिये परमेश्वर उसे चुनता है जो यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के समान हो, जो प्रभु के सामने नतमस्तक होकर खड़ा होता है। अधिकतर बच्चों की तरह होना शिष्यों के लिये मुख्य योग्यता होगी, कि वे परमेश्वर का काम करें। स्वर्गीय षक्तियाँ उसका सहयोग करेगी, जो आत्माओं को खोजने में अपना सब कुछ समर्पित करता है, स्वयं को महान नहीं बनाता और आत्माओं को बचाता है। (द डिज़ायर ऑफ एजेज़- 436) ChsHin 194.3