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एक दष्टांत दिया गया ChsHin 262

परमेश्वर के आज्ञाओ के दो मुख्य सिद्धान्त है सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर से तथा निस्वार्थ से तथा प्रेम पड़ोसी से प्रथम चार आज्ञायें और अंतिम छह आज्ञायें इन्ही दो सिद्धान्तों के बारे में बताती है। प्रभु यीशु ने भी उसक कानून के ज्ञाता को समझाया था कि उसका पड़ौसी कौन है, जब उसने उस आदमी का उदाहरण दिये जो येरूशेलेम से यरीहो को जारहा था। और डाकुओं के हाथ में पड़ गया उसे लूट लिया गया, मारापीटा कर अधमरा छोड़ दिया गया था। याजक और लेविय ने उस पीड़ित को देखा किन्तु उनके हष्दय उसकी मदद के लिये तैयार नहीं हये और वे कतरा कर दसरे रास्ते से चले गये। एक सामरी वहाँ से गुजरा और जब उसनेउस अजनवी की दशा को देखा तो उसे उस पर तरस आया और उसने बिना पूछे, बिना जाने कि वह किस जाति या देश का है, सने उसकी मदद की क्योंकि उसे मदद की जरूरत थी। उसने जितना उससे हो सकता था उसकी सेवा व मदद की। ChsHin 262.3

उसे अपने गधे पर बैठाकर एक सराय में ले गया और उसके रहने व खाने की इंतजाम अपने पैसों से किया। यही सामरी प्रभु यीशु ने कहा उसका पाडौसी है जो डाकुओं के हाथ में पड़ गया था लेवीय और याजक उन लोगों को दर्शाते हैं जो कलीसिया के वे लोग है जो ऐसे जरूरतमंदों की मदद करने से दूर ही रहते हैं, न उनकी मदद करते और न ही उनसे कोई सहानुभूति होती है यह वर्ग कलीसिया में आज्ञा न मानने वाली श्रेणी में रखा जाता है वह सामरी उस वर्ग के लोगों को दर्शाता है जो वास्तव में प्रभु यीशु के सहायक है और भले कामो को करने में प्रभु यीशु की तरह आगे रहते है। वे लाग जो बदकिस्तम अंधे, लंगड़े, पीड़ित, विधवा, अनाथों और जरूरतमंदो पर दया करते है, प्रभु यीशु उन्हें अपने आज्ञाकारी सेवक कहता है और वे अनंत जीवन पायेंगे। इन अंधो, लंगड़ो बिमारों, विधवाओं, अनाथो और जरूरतमंदो की सहायता करना दया भलाई और सेच समझकर ध्यान देनाआदि का काम जो करता है। मानो प्रभु के लिये करता है। इन सब कामों का लेखा स्वर्गीय किताबों में रखा जा रहा है। और ये काम पुरूस्कष्त भी किये जायेंगे। ठीक इसी तरह एक किताब और लिखी जा रही है। जिसमें आज्ञा न मानने वाले, याजक और लेवीय लोगो का भलाई के कामों से इंकार करना भी लिखा जा रहा है। इसमें कुछ ऐसे जो उन अभांगो लोगो से भी फायदा उठाते और उनकी पीड़ा करते है बदल देगा। और हर एक अलगाव और नकारात्मक भावना का प्रतिफल देगा। आखिरकार हर एक उसके कामों के अनुसार ईनाम पायेगा। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च 3:511, 513) ChsHin 263.1