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समाज के काले लोगों का वर्ग ChsHin 291

इस देष में ऐसे कई क्षेत्र है, जहाँ प्रभु का काम हुआ ही नहीं हैं। लाखों की संख्या में काले लोग, जो रंग भेद नीति के षिकार है। अपील करते हैं कि उन्हें भी सहानुभूति पूर्वक माना जायें कि वे व्यवहारिक रूप से तथा पूर्ण सच्चाई से यीषु ख्रीश्ट के विष्वासी है। ये लोग विदेषों में नहीं रहते न ही वे लकड़ी और पत्थर की बनी मूर्तियों के सामने झुकते है। वे हमारे ही बीच में रहते और बार-बार परमेष्वर ने हमारा ध्यान ऐसे लोगो की ओर लगाया है। जब-जब हमे पवित्र आत्मा की गवाहियों को सुना। यहाँ आज भी यह जाति सिर्फ रंग भेद के कारण उपेक्षित है। ये एक ऐसी जाति से घिरा क्षेत्र है, जहाँ कार्य नहीं हुआ हैं जो बुला रहा है कि परमेष्वर के वचन रूपी ज्योति उन्हें वे जो प्रभु यीषु ने हम पर भरोसा कर हमें दिया है कि हम उसे फैलायें। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च 8:205) ChsHin 291.4

गोरे और काले लोगों के बीच में एक अलगाव की दिवार खड़ी की गई है। ये पक्षपात की दिवार उन लोगो के साथ ही गिर जायेगी जैसे मसीहों की दिवार गिरी थी, जब मसीही परमेष्वर के वचन को मानते है जो उन्हें उनके सष्जनहार के सर्वोच्च प्रेम से जोड़ता और अपने पड़ौसियों के प्रति निष्चल लाता है। काष की हर एक कलीसिया के सदस्य जो वर्तमान सत्य में विष्वास करते हैं, इस उपेक्षित कुचली हुई जाति जो गुलामी के परिणाम स्वरूप सुविधाओं और सोचने विचारने षक्ति और काम करने की षक्ति का उपयोग करने से वंचित हुई है, इसके उद्धार व उदथान के लिये कार्य करें। (द रिव्यू एण्ड हैरल्ड 17 दिसम्बर 1895) ChsHin 292.1

आओं अब हम दक्षिण के लोगों के लिये काम करने की योजना बनाये। हम केवल उन्हें देखकर खुष न हो और न केवल किये गये वादों व प्रतिज्ञाओं के जो कभी पूरे नहीं किये गये। किन्तु अब हम पूरे मन से प्रभु के लिये कुछ ऐसा करें कि उन रंग भेद की नीति से त्रस्त काले रंग के हमारे भाईयों व बहनों को निराषा के दल-दल से बाहर निकालें। (द रिव्यू एण्ड हैरल्ड 04 फरवरी 1896) ChsHin 292.2

जीवन की पुस्तक में काले और गौरे लोगों के नाम साथ-साथ लिखे हुये है। प्रभु में सब एक है, जन्म पद, राश्ट्रीयता या रंग किसी का उठा या गिरा नहीं सकता। मनुश्य को उसका चरित्र बनाता है। यदि एक भारतीय एक चीनी या एक अफ्रिकन प्रभु यीषु में विष्वास लाता और आज्ञा पालन करता है। और अपना हष्दय प्रभु यीषु को देता है, तो परमेष्वर रंग को नहीं देखता, सिर्फ उससे प्रेम करता है। उसे वह एक अच्छा प्रिय भाई कहकर बुलाता है। (द सदर्न वर्क 8 रिटन 20 मार्च 1891) ChsHin 292.3

परमेष्वर हर एक आत्मा का जो चाहे अफ्रीका की प्रजाति हो क्यो न हो, यदि प्रभु के लिये जीती है कि प्रभु की सेवा करें, जो प्रभु उसकी इजराइल से अधिक चिंता करता है। वह अपने लोगो से कही अधिक अपेक्षा करता है, उन लोगो की अपेक्षा जो उसे सौंपे गये है। और जो उन लोगों में षामिल है। जो परमेष्वर के काम को करने वाले हैं। चाहे वे दक्षिण भारत के विभिन्न वर्गों के लोग हो और विषेशकर काले रंग के लोग । क्या हम पर इन काले रंग की जाति के लिये परिश्रम करने का अधिक उत्तरदायित्व नही है? उनकी अपेक्षाओं ज्यादा पंसद किये जाते है। वे कौन लोग है, जिन्होंने इन्हें गुलामी करने के लिये मजबूर किया। किसने इन्हें सच्चाई के ज्ञान से दूर रखा? यदि ये पूरी जाति पिछड़ी हुई है, समाज में कोई स्थान नहीं रखती यदि इनके तौर-तरीके और आदते अच्छी नहीं है। तो इसका जिम्मेदार कौन है? क्या गोरे लोगो को इनके लिये परिश्रम करना नहीं बनता? जबकि इन लोगों के साथ इतना अन्याय हुआ है, क्या अब उन्हें आगे लाने के प्रयास नहीं किये जाने चाहिये? सच्चाई उन तक पहुंचनी ही चाहिये। उन्हें भी आत्माओं को बचाने का हम है, जैसे हमें है। (द सदर्न वर्क 11, 12 रिटन 20 मार्च 1891) ChsHin 292.4