प्रभु यीशु के काम के हर एक क्षेत्र में स्त्री व पुरुषो की जरुरत है, जिनके पास मानव जाति के दुःखो के प्रति सहानुभूमि हो। किन्तु ऐसी सहानुभूमि बहुत कम है। (द रिव्यू एण्ड हैरल्ड-6 मई 1890) ChsHin 310.3
हमें प्रभु यीशु की सहानुभूति,संवेदना की जरुरत है सहानुभूति केवल उन लोगों के प्रति नही जो हमें निर्दोष दिखाई देते है किन्तु उनके लिये जो गरीब,पीडित,जीवन से सघर्ष करने वाले प्राणीजो आकसर गुनाहगार बन जाते है। पाप करते फिर क्षमा मांगते और परीक्षा में पड़ते और निराश होते है। हमें ऐसों ही के पास जाना है, एक संवदेना पूर्ण स्पर्श हमारे दयालु महायाजक के सामने करें, उस स्पर्श में उनकी उस कमजोरी का आभास हो। (गॉस्पल वर्क्स-141) ChsHin 310.4
प्रभु के लोग होने पर भी हम में सहानुभूति औरमेल मिलाप की कमी होने से हम बहुत कुद खो देते है। वह जो स्वतंत्रता की बात तो करता है किन्तु अपने आप को अपने तक ही सीमित रखता है, वह उस स्थान को नही भर रहा जो खाली पडा हौ और प्रभ ने उसे उसके लिये बनाया है। हम सम परमेश्वर की संतान है। और आपसी खुशी पाने के लिये एक दूसरे पर निर्भर होते है। हम पर प्रभु का अधिकर और मानवता का हम पर है। इस जीवन में हमे हमारे वह सब काम करने है। जो परमेश्वर ने हमें सौंपे है, ये हम में सहानुभूति व सद्वावना हमारे भाईयों के बीच ला सके। ताकि हम सब प्रसन्न हो और हमारे सारे काम भी दूसरों के लिये आश्षि का कारण हो। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च-4:71,72) ChsHin 311.1
प्रभु यीशु मसीह, उद्धारकर्ता एक फरीसी के घर में महमान था। उसने धनी व्यक्ति के निमंत्रण को भी स्वीकार किया जैसे वह गरीबों के लिमंत्रण स्वीकार करता था। अपनी आदत के अनुसार वह जहाँ भी जाता, उनके सामने सच्चाई को अवश्य रखता था। (काईस्ट ऑब्जेक्ट लैसन्स-219) ChsHin 311.2