नई कलीसियाओं के लिये अधिकारियों का चयन बड़ी ही सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिये। चाहे स्त्री हो या पुरूश वें पूरी तरह से प्रभु में विश्वासी हों। उन्हें चुना जाना चाहिये जो निर्देश देने में पूर्णतः योग्य हों और जो वचनों और कार्यो दोनों के द्वारा प्रचार कर सकें। इस काम को हर क्षेत्र में करने की अधिक से अधिक जरूरत है। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 6:85) ChsHin 82.1
कलीसिया के प्राचीन और वे जो ऊँचे पदों पर पाए जाते हैं, उन्हें उनकी योजनाओं को पूरा करने के बारे में और अधिक ध्यान देना चाहिए। उन्हें सारे मामले अपने हाथ में लेकर योजनाबद्ध तरीके से कलीसिया के प्रत्येक सदस्य को सौंपना चाहिये ताकि कोई भी बिना उद्देश्य या बिना काम के जीवन न बितायें, बल्कि अपनी योग्यतानुसार जितना काम कर सकते हैं करे। ये बहुत जरूरी हो गया है कि हर एक सदस्य को ऐसा वचन सिखाया जाये कि वे प्रभु को समर्पित एवं सुयोग्य एवं निस्वार्थी सेवक बन जायें। ऐसा तभी संभव है जब एक ऐसा पाठ्यक्रम हो जिससे पूरी कलीसिया फलदाई होती रहे. वह खत्म न हो जाये। हर व्यक्ति को एक सक्रिय प्रचारक होने की जरूरत है, एक जीवित पत्थर (पतरस की तरह) प्रभु के भवन में ज्योति चमकाने वाला। (द रिव्यू एण्ड हैरल्ड- 2 सितम्बर, 1890) ChsHin 82.2