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प्रकर्षत छवि पर मसीही जीवन ChsHin 137

वह हृदय जो परमेश्वर के वचन को ग्रहण कर लेता है वह उस तालाब की तरह नहीं होता जो सूख जाता है और न ही उस टूटे हुये बर्तन के समान होता है, जो उसमें भरे खजाने को बिखरा दे और खो दे। वह एक पर्वत की जल धारा के समान होता है, जिसका स्त्रोत कभी न खत्म होने वाला है, जिसका पूरी तरह षुद्ध चमकता हुआ ठण्डा जल एक चट्टान से दूसरी चट्टान पर उछलता-कूदता हुआ उन थके, बोझ से दबे प्यासे लोगों की प्यास बुझाकर उन्हें तरोताजा रखता है। वह एक नदी के समान लगातार बहता हुआ, जैसे-जैसे आगे बढ़ता है और चौड़ा और गहरा होता जाता है, जब तक कि उसका जीवन देने वाला जल पूरी पृथ्वी भर में फैल नहीं जाता। वह जल धारा जो उछलती-कूदती और गाती हुई आगे बढ़ती है, अपने पीछे फलो से भरी हुई, सुगंधित वादियाँ उपहार स्वरूप छोड़ती जाती है। इसके किनारे की घास हमेषा हरी-भरी रहती उसके पेड़ हरियाली की अधिकता से पूर्ण होते फूलों की बढ़ती होती है। और जब ग्रीश्म ऋतु में भूमि तपती धूप के कारण झुलस कर खाली और भूरी हो जाती, तब उस नदी के किनारों पर हरी-भरी पेड़ों की कतार दिखाई देती है। ChsHin 137.3

ऐसा सिर्फ प्रभु के सच्चे और वफादार बच्चे के साथ होता है। प्रभु यीशु का धर्म स्वयं एक षारीरिक रूप से ताकतवर बनाने वाला, सिद्धांतों को मानने वाला, जीवित, क्रियाशील, आत्मिक ताकत है। जब हमारे हृदय स्वर्गीय प्रेम और सच्चाई को ग्रहण करते है, ये सारे गण जल की धारा की नाई फूट पड़ते हैं, उस सूखे रेगिस्तान को हरा-भरा व खुशहाल बनाने के लिये, जहां अब तक बंजर जमीन थी और हरियाली का नामो निशान न था। (प्रोफेट्स एण्ड किंग्स — 233, 234) ChsHin 138.1