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अध्याय 55—बालक शमूएल PPHin 590

यह अध्याय 1 शमूएल 1,2:1-11 पर आधारित है

एप्रेम पर्वत का एक लैवी, एल्काना, प्रभावशाली और धनवान व्यक्ति था जो परमेश्वर से प्रेम करता था और उसका भय मानता था। उसकी पत्नी हन्‍ना एक धर्मपरायण स्त्री थी। नम्र और सीधा-सादा, उसका चरित्र इमानदारी और अत्याधिक विश्वास से परिपूर्ण था। PPHin 590.1

यह धर्मी जोड़ा उस आशीष से वंचित था जिसे प्रत्येक इब्री हृदय से चाहता था, उनके घर में शिशुत्व की किलकारियों का सुख नहीं था, और अपने नाम को चिरायु बनाने की अभिलाषा ने पति को, कई औरों की तरह, दूसरा विवाह रचने को विवश कर दिया। लेकिन परमेश्वर में विश्वास के अभाव में उठाया गया यह कदम, प्रसन्‍नता लेकर नहीं आया। पुत्र और पुत्रियाँ परिवार में जुड़े, लेकिन परमेश्वर की पवित्र संस्था की सौम्यता और सुख को आघात पहुँचा था और परिवार की शान्ति भंग हो गईं थी। दूसरी पत्नी पनिन्‍ना ईष्यालु और संकीर्ण सोच वाली स्त्री थी और उसके व्यवहार में घमण्ड और निर्लज्जता थी। हनना के लिये आशा समाप्त हो चकी थी और जीवन थकाने वाला बोझ था, फिर भी उसने इस कठिन समय का बिना शिकायत करे दिन होकर सामना किया। PPHin 590.2

एल्काना निष्ठापूर्वक परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करता था। शिलोह की आराधना अभी भी की जाती थी, लेकिन परिचर्या में अनियमितताओं के कारण उस पवित्र स्थान पर जहाँ लैवी होते हुए, उसे उपस्थित होना था, उसकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं थी। फिर भी वह अपने परिवार सहित, नियम समारोह में आराधना करने और बलि की भेंट चढ़ाने जाता था। परमेश्वर की आराधना से सम्बद्ध पवित्र समारोह के होते हुए भी जिस दुष्ट आत्मा ने उसके घर को श्रापित किया था, वही दुष्टात्मा बलपूर्वक घुस आई। धन्यवाद की भेंट चढ़ाने के बाद, परम्परागत रूप से, पूरा परिवार औपचारिक पर आनंदमयी भोज के लिये इकट्ठा हुआ। इन अवसरों पर एल्काना अपने बच्चों की माँ को एक भाग उसके लिये और उसके सभी पुत्रों और पुत्रियों के लिये देता था, और हन्ना को उसने सम्मान के प्रतीक के तौर पर, दुगना भाग देता, यह बताने के लिये कि उसका उसके प्रति प्रेम वैसा ही था जैसा कि पुत्र होने पर होता। फिर, दूसरी पत्नी ने ईर्ष्या से आग बबूला होकर परमेश्वर की अधिकतम कृपा-दृष्टि की पात्र होने पर वरीयता का दावा किया और हन्ना की संतानरहित अवस्था को परमेश्वर की उसके प्रति अप्रसन्‍नता का प्रमाण बताते हुए उसको ताना दिया। यह प्रतिवर्ष दोहराया जाता, जब तक कि हनना की सहनशक्ति समाप्त हो गईं । अपने दुख को छुपाने में असफल, वह बिलख-बिलख कर रोई, और समारोह छोड़कर चली गई। उसके पति ने उसे व्यर्थ में सांत्वना देनी चाही, “हे हन्ना, तू क्यो रोती है? और खाना क्‍यों नहीं खाती? और तेरा मन क्यो उदास है? क्‍या तेरे लिये में दस बेटों से भी अच्छा नहीं हूँ? PPHin 590.3

हनना कुछ नहीं बोली। जिस बोझ को वह किसी सांसारिक मित्र के साथ नहीं बाट सकती थी, उसने उसे परमेश्वर पर डाल दिया ।उसने विनग्रता से विनती की कि वह उसकी कमी को दूर कर उसे पुत्र के रूप में एक अनमोल उपहार दे, जिसे वह पाल कर बढ़ा करे और उसके लिये प्रशिक्षित करे। उसने विधिवत शपथ ली कि यदि उसकी विनती सुनी गई, तो वह अपनी संतान को उसके जन्म से ही परमेश्वर कोअर्पण करेगी। हनना मन्दिर के चौखट के पास पहुँची और वह मन में व्याकुल होकर यहोवा से “प्रार्थाना करने और बिलख बिलख कर रोने लगी।” उसने बिना आवाज किये, परमेश्वर से मन ही मन प्रार्थना की । उस बुरे समय में आराधना के ऐसे दृश्य बहुत कम देखने को मिलते थे। धार्मिक उत्सवों पर भी, श्रद्धाहीन सहभोज और नशा असामान्य नहीं थे, और महायाजक एली ने हनना को देखकर सोचा कि वह नशे में थी। हनन्‍ना को उचित रूप से डॉटने के लिये वह कठोरता से बोला, “तू कब तक नशे में रहेगी? अपना नशा उतार। PPHin 591.1

दुखी और भौंचक्की हन्ना ने नम्नतापूर्ण उत्तर दिया, “नहीं, हे मेरे प्रभु में तो दुखिया हूँ मैने न तो दाखमधु पिया है और न मदिरा, मैने अपने मन की बात खोलकर यहोवा से कही है। अपनी दासी को ओछी स्त्री न जान, जो कृछ मैंने अब तक कहा है, वह बहुत ही शोकित होने और चिढ़ाए जाने के कारण कहा है। PPHin 591.2

महायाजक विचलित हो गया क्योंकि वह परमेश्वर का दास था और डॉट के स्थान पर उसने हनना को आशीष दी, “कुशल से चली जा; इज़राइल का परमेश्वर तुझे मनचाहा वरदान दे।” PPHin 591.3

हनना की प्रार्थना स्वीकार हुई, उसे वह वरदान प्राप्त हुआ जिसकी उसने प्राथना की थी। उसने बच्चे को देखा और उसका नाम शमूएल रखा जिसका तात्पर्य है, “परमेश्वर से माँगा हुआ, जब शिशु अपनी माँ से अलग होने योग्य हो गया, उसने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। उसने अपने पुत्र पर सम्पूर्ण मातृ-प्रेम न्यौछावर किया, प्रतिदिन जब वह अपने बच्चे की बढ़ती हुई क्षमता को देखते हुए और बालोचित बातों को सुनती, उसे अपने पुत्र पर और भी प्यार आता। वह उसका इकलौता पुत्र था, स्वर्ग से मिला हुआ विशेष उपहार, लेकिन उसने इस पुत्र को परमेश्वर के लिये समर्पित खजाने के तौर पर प्राप्त किया था, और वह ‘दाता’ को उससे वंचित नहीं रखेगी, जो उसी का था। PPHin 591.4

एक बार फिर हन्ना अपने पति के साथ शिलोह गई, और परमेश्वर के नाम में, अपने अनमोल उपहार को उसने एली को दे दिया और कहा, “यह वही बालक है जिसके लिये मैंने प्रार्थना की थी, और यहोवा ने मुझे मुहँ माँगा वरदान दिया है। इसलिये मैं भी उसे यहोवा को अर्पण करती हूँ।” इज़राइल की इस स्‍त्री की भक्ति और विश्वास से एली बहुत प्रभावित हुआ। एली स्वयं एक अत्यन्त पक्षपातपूर्ण पिता था, जब उसने इस माँ के बलिदान को देखा कि किस तरह वह अपने इकलौते पुत्र से अलग हुईं ताकि वह उसे परमेश्वर की सेवा के लिये समर्पित कर सके, वह श्रद्धा और दीनता से भर गया। उसे स्वयं के स्वार्थपूर्ण प्रेम के लिये ग्लनि हुई और उसने दीन भावना और आदर के साथ परमेश्वर के सम्मुख दण्डवत किया और आराधना की। PPHin 592.1

माँ का हृदय हर्ष और महिमा से भर गया, और परमेश्वर के प्रति धन्यवाद प्रकट करने के लिये तीव्र इच्छा उत्पन्न हुई। प्रेरणा के प्रभाव में हन्ना ने प्रार्थना की और कहा- PPHin 592.2

मेरा मन यहोवा के कारण मग्न है,
में अपने परमेश्वर में स्वयं को शक्तिशाली अनुभव करती हूँ
मेरा मुहँ मेरे शत्रुओं के विरूद्ध खुल गया,
क्योंकि में तेरे किये हुए उद्धार से आनन्दित हूँ।
यहोवा के तुल्य कोई पवित्र नहीं,
क्योंकि तुझ को छोड़ और कोई है
ही नहीं,
और हमारे परमेश्वर के समान कोई चट्टान नहीं है
फूलकर अंहकार की और बातें मत करो, और अंधेरे की बातें तुम्हारे मुहँ से न निकले
क्योंकि यहोवा ज्ञानी ईश्वर है और कामों को तोलने वाले है
श्रवीरों के धनुष टूट गये
और ठोकर खाने वालों की कटि में बल का फेंटा कसा गया।
जो पेट भरते थे उन्हें रोटी के लिये मजदूरी करनी पड़ी
जो भूख थे वे फिर ऐसे न रहे, वरन्‌ जो बांझ थी उसके सात हुए,
और अनेक बालकों की माताएँ घुलती जाती है।
यहोवा मारता है और जिलाता भी है,
वही अधोलोक में उतारता और उससे निकालता भी है
वह कंगाल को धूलि में से उठाता,
और दरिद्र को घूरे में से निकाल खड़ा करता है,
ताकि उनको अधिपतियों के संग बैठाए
और महिमायुकत सिंहासन के अधिकारी बनाए।
क्योंकि पृथ्वी के स्तम्भ यहोवा के है,
और उसने उन पर जगत को धरा है।
वह अपने भक्तों के पाँवो को सम्भालता रहेगा,
परन्तु दुष्ट अंधेरे में चुपचाप पड़े रहेंगे
क्योंकि कोई मनुष्य अपने बल के कारण प्रबल न होगा।
जो यहोवा से झगड़ते है वे चकनाचूर होंगे,
वह उनके विरूद्ध आकाश में गरजेगा।
यहोवा पृथ्वी की छोर तक न्याय करेगा,
और अपने राजा को बल देगा,
और अपने अभिषिक्त की शक्ति को बढ़ाएगा।” PPHin 592.3

हन्ना के शब्द भविष्यसूचक थे, वे दाऊद की ओर, जिसे इज़राइल के राजा के रूप में शासन करना था, संकेत कर रहे थे और परमेश्वर द्वारा अभिषिक्त से भी सम्बन्धित थे। सबसे पहले एक निर्लज्ज और झगड़ालू स्त्री के घमण्ड का वर्णन करते हुए, यह गीत परमेश्वर के शत्रुओं के विनाश और उसके बचाए हुए लोगों की निर्णायक विजय की ओर संकेत करता है। PPHin 594.1

शिलोह से हन्ना चुपचाप रामा में अपने घर लौट आई। उसने अपने पुत्र शमूएल को महायाजक के निर्देशन में, परमेश्वर के मन्दिर में सेवा करने के लिये प्रशिक्षित होने के लिये छोड़ा। जब से वह समझने लगा था, हन्ना ने अपने पुत्र को परमेश्वर से प्रेम करना और उसका आदर करना और स्वयं को परमेश्वर का मानना सिखाया था। उसके चारों तरफ की प्रत्येक परिचित वस्तु के माध्यम से उसने शमूएल के विचारों को सृष्टिकर्ता की ओर ले जाने का प्रयत्न किया था। अपने पुत्र से अगल होकर भी, इस ईमानदार माँ की परवरिश समाप्त नहीं हुईं । प्रतिदिन उसकी प्रार्थना का विषय उसका पुत्र होता था। प्रत्येक वर्ष, वह अपने ही हाथों से उसके लिये पोशाक बनाती थी और जब वह अपने पति के साथ आराधना के लिये शिलोह जाती, तब वह शमूएल को वह पोषाक देकर अपने प्रेम का स्मरण कराती। उस छोटी सी पोशाक का प्रत्येक धागा एक प्रार्थना से बुना हुआ था कि वह पवित्र, शिष्ट और सत्यवादी बने। उसने अपने पुत्र के लिये सांसारिक महानता नहीं माँगी, वरन्‌ उसने हार्दिक रूप से विनती की कि वह उन ऊँचाइयों पर पहुँचने जिनका मूल्य स्वर्ग जानता है और वह यह कि शमूएल परमेश्वर का आदर करे और अन्य लोगों को आशीषित करे। PPHin 594.2

क्या प्रतिफल मिला हन्‍ना को! और उसका उदाहरण सत्यनिष्ठा के लिये कितना अच्छा प्रोत्साहन है। अनमोल अवसर, अत्यन्त लाभप्रद अनुकूल परिस्थितियाँ, प्रत्येक माँ के सुपुर्द की गई है। वह सीधे-सादे कर्तव्य जिन्हें महिलाएँ थकाने वाले कार्य समझने लगी हैं उन्हें श्रेष्ठ व महत्वपूर्ण कार्यों के रूप में देखा जाना चाहिये। अपने प्रभाव से संसार को आशीषित करनामाँ की विशेषाधिकार है, और ऐसा करने से उसके हृदय को प्रसन्‍नता मिलेगी। वह अपने बच्चों के लिये सुगम रास्ते तैयार करती है जिसपर चलकर वे धूप व छाया से होकर स्वर्ग की महिमावान ऊँचाइयों पर पहुँच सकते है। लेकिन एक माँ अपने बच्चों के चरित्र का निर्माण पवित्र उदाहरण के अनुसार करने की आशा तभी कर सकती है, जब वह अपने निजी जीवन में मसीह की शिक्षा का अनुसरण करने का प्रयास करती है। यह संसार भ्रष्ट प्रभावों से व्याप्त है। फैशन और रिवाज नौजवानों पर गहरा प्रभाव डालते है। यदि एक माँ निर्देश देने, मार्गदर्शन करने या नियन्त्रण में रखने के कर्तव्य को अनदेखा करती है, तो यह स्वाभाविक है कि उसके बच्चे अच्छाईं से मुहँ मोड़कर बुराई को अपना लेंगे। प्रत्येक माँ प्रायः अपने उद्धारकर्ता के पास यह प्रार्थना लेकर जाए, “हमें सिखा, इस बच्चे का पालन पोषण हम किसी रीति से करे, और इसके साथ हम क्या करे?” परमेश्वर के वचन में दिये गए निर्देशों का पालन करने से उसे आवश्यकतानुसार बुद्धिमता प्राप्त होगी। PPHin 594.3

“बालक शमूएल बढ़ता गया और यहोवा और मनुष्य दोनों उससे प्रसन्न रहते थे।” हालाँकि शमूएल का युवाकाल परमेश्वर की आराधना के लिये समर्पित मन्दिर में बीता, वह संसार के दुष्प्रभाव और पापमय उदाहरणों से अछता नहीं था। एली के पुत्रों को परमेश्वर का भय नहीं था, और ना ही वे अपने पिता का आदर करते थे, लेकिन शमूएल ने ना तो उनकी संगति की इच्छा रखी और न ही उनके गलत रास्तों को अपनाया। वह हमेशा वैसा बनने का प्रयास करता था, जैसा परमेश्वर उसे बनाना चाहता था। यह प्रत्येक युवा का विशेषाधिकार है। परमेश्वर प्रसन्‍न होता है जब छोटे-छोटे बच्चों भी स्वयं को उसकी सेवा टहल के लिये समर्पित करते हैं। PPHin 595.1

शमूएल को एली की देख-रेख में रखा गया था, और उसके आचरण को मनोरमता ने वृद्ध याजक के हार्दिक प्रेम को जागृत किया। शमूएल नम्र, उद्धार, आदरपूर्ण और आज्ञाकारी था। एली अपने निजी पुत्रों की स्वच्छता से दुखी था, और अपने प्रभार यानि शमूएल की उपस्थिति में उसे आशीष, सुख और चैन मिलता था। शमूएल कोमल और सहायक प्रवृति का था, और किसी भी पिता ने अपने पुत्र से इतना नम्नतापूर्ण प्रेम नहीं रखा होगा जितना कि एली ने इस युवक के साथ किया। यह अपने आप मे अतुल्य था कि राज्य के मुख्य न्यायाध्यक्ष और एक साधारण बालक के बीच ऐसा हार्दिक प्रेम हो। जैसे जैसी एली पर वृद्धावस्था की कमजोरियाँ आती गईं, वह अपने पुत्रों की आचरणहीनता व क॒कर्मां के कारण पश्चाताप से भर गया और शमूएल ने उसे दिलासा दिया। PPHin 595.2

लेवियों के लिये पच्चीस वर्ष की आयु से पहले अपनी विशेष सेवाओं को आरम्भ करना परम्परागत नहीं था, लेकिन शमूएल पर यह नियम लागू नहीं हुआ। प्रत्येक वर्ष महत्वपूर्व दायित्व उसके सुपुर्द किये जाते थे, और जब वह बालक ही था उसे सन का एपोद पहनाया गया, जो प्रतीक था इस तथ्य का कि वह पवित्र तम्बू क कार्य के लिये समर्पित था। मिलाप वाले तम्बू में सेवा-टहल के लिये जब उसे लाया गया वह बालक ही था, लेकिन तब भी उसे उसकी क्षमता के अनुसार परमेश्वर की सेवा-टहल में करने के लिये कार्य दिए जाते थे। प्रारम्भ में यह अत्यन्त साधारण व कभी-कभी अरूचिकर भी होते थे, परन्तु शमूएल प्रत्येक कार्य को अपनी योग्यतानुसार और पूरे मन से करता था। जीवन के प्रत्येक कर्तव्य में उसका धर्म झलकता था। वह स्वयं को परमेश्वर का दास और अपने कार्य को परमेश्वर का कार्य मानता था। उसके प्रयत्न स्वीकार्य होते थे क्‍योंकि वे परमेश्वर के प्रति प्रेम और उसकी इच्छा पूरी करने की सच्ची इच्छा से प्रेरित होते थे। इस प्रकार शमूएल पृथ्वी और आकाश के प्रभु के साथ सहकमी बना। और परमेश्वर ने उसे इज़राइल के महत्वपूर्ण कार्यों को सम्पन्न करने के लिये समुचित बनाया। PPHin 595.3

यदि बच्चों को यह मानना सिखाया जाए कि प्रतिदिन के सीधे-सादे कार्यों को दीनता से पूरा करना, उनके लिये ईश्वरकत कार्य प्रणाली है और एक शिक्षण संस्था के समान है जिसकी माध्यम से उन्हें सत्यनिष्ठ और दक्षतापूर्ण सेवा के लिये प्रशिक्षित किया जाता है, ओर तब उनका कार्य रूचिकर और सम्मानयोग्य प्रतीत होगा। यदि हम प्रत्येक काम को यह मानकर करें कि वह परमेश्वर के लिये है तो तुच्छ से तुच्छ कार्य भी मनमोहक प्रतीत होता है, और पृथ्वी पर के कार्यकर्ताओं को उन पवित्र प्राणियों से जोड़ देता है जो स्वर्ग से परमेश्वर की इच्छा को पूरा करते हैं। PPHin 596.1

इस जीवन की सफलता और आने वाले जीवन की सफलता नगण्य बातों पर सच्चे हृदय व कर्तव्यनिष्ठा से ध्यान देने पर निर्भर करती है। चाहे वह सबसे अमहत्वपूर्ण हो, चाहे सबसे महान, परमेश्वर के लिये किया गया प्रत्येक कार्य पूर्णतया सन्तोषप्रद होना चाहिये। जिन हाथों ने ग्रहों को आकाश में स्थापित किया उन्हीं हाथों ने अतिनिपुण कौशल से नरगिस के फूलों को बनाया। जिस प्रकार परमेश्वर अपने क्षेत्र में सिद्ध है, उसी प्रकार हमें हमारे क्षेत्र में सिद्ध होना है। एक सुदृढ़, गुणसम्पन्न चरित्र की सन्तुलित संरचना दायित्व के व्यक्तिगत कार्यों से होती है। हमारे जीवन के छोटे से छोटे व बड़े से बड़े विवरण में विश्वसनीयता चरितार्थ होनी चाहिये। छोटी-छोटी बातों में अखण्डता, स्वामिभक्ति और दया के छोटे-छोटे कार्य जीवन के मार्ग को सुखद बनाते है, और जब पृथ्वी पर हमारा कार्य समाप्त होगा, तो यह ज्ञात होगा कि प्रत्येक तुच्छ कार्य यदि निष्ठा से किया जाए तो वह एक अच्छा और कभी न नष्ट होने वाला प्रभाव डालता है। PPHin 596.2

हमारे समय के युवा भी परमेश्वर की दृष्टि में शमूएल की तरह श्रेष्ठ हो सकते है। अपनी मसीही अखण्डता को निष्ठापूर्वक बनाए रखने से, वे सुधार के कार्य को बहुत प्रभावित कर सकते है। वर्तमान में ऐसे मनुष्यों की आवश्यकता है, परमेश्वर के पास उन सब के लिये काम है। मानवता और परमेश्वर के लिये मनुष्य ने इससे बढ़कर प्रतिफल कभी नहीं पाया, जितना कि वर्तमान में वे लोग प्राप्त कर सकते हैं जो उस दायित्व के प्रति सत्यनिष्ठ होते है जो परमेश्वर ने उन्हें सौंपा है। PPHin 597.1