Loading...
Larger font
Smaller font
Copy
Print
Contents

महान संघर्ष

 - Contents
  • Results
  • Related
  • Featured
No results found for: "".
  • Weighted Relevancy
  • Content Sequence
  • Relevancy
  • Earliest First
  • Latest First
    Larger font
    Smaller font
    Copy
    Print
    Contents

    रव्रीस्त का क्रूसघात

    यीशु को कूसघात करने के लिये हुक्म दिया गया। प्रिय त्राणकत्र्ता को वे गुलगुथा पहाड़ की ओर ले जाने लगे। सारी रात का जागरण, मार पीट के दुःख दर्द से वह बहुत कमजोर हो गया था फिर भी उसे क्रूस ढोने को कहा गया, जिस पर उसे क्रूसघात करते। यीशु बोझ के दबाव से मूच्र्छित हो गिर पड़े। तीन बार उन्होंने उसकी पीठ पर क्रूस काठ को लादा और वह तीन बार मूच्र्छित होकर गिर पड़ा। शमौन नामक एक कुरेनी मनुष्य को यीशु का क्रूस ढुलवा कर ले चले। स्वर्गदूतगण कलवरी पर्वत के इर्द-गिर्द अदृश्य रूप से आकाश में मड़रा रहे थे। उसके बहुत से चेले रोते-कलापते हुए कलवरी तक गये। वे उस वक्त को भी याद कर रहे थे जब यीशु आखिरी बार गधी के बच्चे पर चढ़ कर बड़ी महिमा के साथ यरूशलेम जा रहा था और लोग सड़क पर डालियाँ और कपड़े बिछा कर उसका स्वागत ‘होशाना होशाना’ कह कर चिल्लाते थे। उस वक्त वे सोच रहे थे कि यीशु अब इस पृथ्वी पर राज्य करेगा। इस्त्राएलियों को रोमन राज्य से मुक्त करेगा। क्या यही बदला हुआ दृश्य था! उनका क्या यही पुलावी ख्याल था! इस बार उन्होंने यीशु को आनन्द से पीछा नहीं किया परन्तु मन में दुःखी होकर उदास का भारी बोझ के साथ धीरे-धीरे चले, क्योकि उसे बेइज्जत कर बहुत ही नीच बना कर क्रूस पर चढ़ाने ले जा रहे थे।1SG 37.1

    यीशु की माता भी वहाँ थी। उसका दृश्य तो मानसिक दुःख से चूर-चूर हो गया था, क्योंकि उसका प्यारा बेटा को सता रहे थे। उसका दुःखित मन अभी भी सोच रहा था कि यीशु अपने चेलों के साथ कोई अद्भुत काम कर के दुश्मनों के हाथ से बच निकलेगा। वह नहीं सोचती थी कि यीशु क्रूसघात होने का दुःख सहे। पर उसे क्रूस पर चढ़ाने की तैयारी करने लगे। जब यीशु को क्रूस काठ पर ठोंकने के लिए हथौड़ा और काँटी लाने लगे तो चेलों का दिल डर से काँपने लगा। यीशु की माता तो इतना तड़प रही थी कि उस दृश्य को देखकर सहना कठिन हो गया। अतः चेले उसे उठा कर कुछ दूर ले गये, जिससे यीशु के कोमल शरीर में काँटी ठोकने की आवाज न सुन सके। इस प्रकार बेहोश होने से बचाया जा सके। यीशु कभी नहीं कुढ़कुढ़ाया परन्तु उसका चेहरा पीला हो गया और उसके भौहों पर पसीना की बड़ी-बड़ी बूँदें पड़ गई थीं। ईश्वर का पुत्र को क्रूस काठ पर दुःख सहते देख शैतान खुशी मनाने लगा। वह डर भी रहा था कि उसका (शैतान) राज्य छीना गया और अब उसे मरना पड़ेगा।1SG 37.2

    यीशु को क्रूस काठ पर बाँधने और काँटी से हाथों और पाँवों को ठोकने के बाद उठा कर क्रूस काठ को गाड़ने के लिये गाढ़ा खोदा था वहाँ एक बड़ी झटका के साथ गिराया जिससे उसके हाथों और पाँवों के माँस चीरा गया। यीशु को असहनीय दर्द हुआ। उसकी मृत्यु को जहाँ तक हो सका बहुत ही निदांजनक बनाया। उसके साथ उन्होंने दो चोरों को क्रूसघात किया। एक को बाईं और दूसरा को दाहिनी ओर। चोरों को बहुत मुश्किल से काबू में लाकर क्रूस काठ पर बाँध कर लटकाये थे परन्तु यीशु को बाँधते समय कुछ भी कठिनाई नहीं हुई। जब चोरों के हाथों को पीछे घुमा कर बाँध रहे थे तो बाँधने वालों को बहुत ही गाली-गलौज सुनाकर श्राप दे रहे थे पर यीशु ने तो अपने को समर्पण कर दिया था। उसने अपने दुश्मनों के लिये यह प्रार्थना की कि हे पिता! इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते, क्या कर रहे हैं। यीशु ने न केवल शारीरिक दुःख सहा परन्तु सारी दुनिया के लोगों के पाप का बोझ भी सहा।1SG 38.1

    जब यीशु क्रूस काठ पर टाँगा गया तो लोग वहाँ से पार हो रहे थे वे उसे सिर हिला-हिला कर ठट्ठा कर कह रहे थे कि तू तो मन्दिर को ढाह कर तीन दिनों में खड़ा करने का वादा किया था। यदि तू ईश्वर का पुत्र है तो क्रूस से उतर आ। शैतान ने ठीक इसी प्रकार कहा था जब वह जंगल में परीक्षा कर रहा था। प्रधान पुरोहित, प्राचीनगण और शास्त्री लोग ठट्ठा कर कह रहे थे कि उसने दूसरों को तो बचाया पर अपने को बचा नहीं सकता। यदि वह इस्त्राएल का राजा है तो क्रूस से अभी उतर आ तब हम उस पर विश्वास करेंगे। जो दूतगण यीशु के क्रूसघात के समय उसके ऊपर मंड़रा रहे थे, वे प्रधान शासकों की इस प्रकार चिढ़ाने से बहुत गुस्सा होकर यीशु को छुड़ाना चाहते थे, पर उन्हें अनुमति नहीं मिली उसका काम का उद्देश्य प्रायः पूरा हो रहा था। क्रूस पर झूलते हुए एक भयंकर दुःख की घड़ी से गुजरने पर भी यीशु अपनी माता को नहीं भूला।1SG 39.1

    यीशु ने एक हमदर्दी और मानवता का आखिरी सबक देना चाहा। शोकित माता को तड़पती हुई देखा और पास में प्रिय चेला यूहन्ना को भी। जब उसने माँ से कहाँ - ‘स्त्री देख तेरा बेटा’, और यूहन्ना से कहा - ‘देख तेरी माता।’ उसी समय से यूहन्ना ने उसे अपना घर लिया।1SG 39.2

    भारी वेदना से यीशु को प्यास लगी तो उसने पानी माँगा, तो पानी के बदले कड़ुवा सिरका देकर उसे और भी बेइज्जत किया। दूतों ने अपने कप्तान यीशु का क्रूसघात का भयानक तथा दिल छूने वाला दृश्य देखा था पर अब और देखा न जा रहा था। इस कारण अपने चेहरों को ढ़ाँक लिए। सूर्य ने भी अपनी रोशनी देना बन्द कर दिया। यीशु ने जोर से पुकार कर कहा - पूरा हुआ-, इसे सुन कर लोग डर गये। मन्दिर का पर्दा फट कर दो टुकड़ा हो गया। धरती डोल गई और चट्टानें फट गईं। पृथ्वी पर घना अंधेरा छा गया। उसके बहुत से चेलों ने उसकी मृत्यु - दुःख और कष्टों की घटनाएँ देखीं और उनके दुःख का कटोरा भर गया यानी दुःख और शोक से भर गये।1SG 39.3

    पहिले जैसा शैतान खुश था अब वह नहीं था। वह सोचता था कि उद्धार की योजना का काम को असफल बना देगा लेकिन अभी देख पाया कि इसकी नीव और गहरी हो गई। यीशु की मृत्यु होने पर उसे मालूम होने लगा कि अब उसे मरने के सिवा कोई उपाय नहीं हैं। उसका राज्य छीन कर यीशु को दिया जायेगा। अपने बुरे दूतों की एक सभा की। ईश्वर का पुत्र पर विजय प्राप्त नहीं हुई। इसलिये अब उन्हें उसके चेलों को यीशु की राह से भटकाने के लिये कठोर परिश्रम करना होगा। यीशु के द्वारा खरीदा गया उद्धार को पाने से उसके चेलों को रोकना होगा। ऐसा काम कर शैतान फिर भी ईश्वर का राज्य के विरूद्ध लड़ाई जारी रखेगा। जितना तक हो सके अपनी भलाई के लिये यीशु से दूर रहेगा। ख्रीस्त के खून के द्वारा जिन लोगों का उद्धार किया गया वे विजयी होंगे। पर उनके पाप का दोष तो शैतान पर मढ़ा (डाला) जायेगा। जो पाप का सृजनहार है। उनका पाप उसी (शैतान) को ढोना पड़ेगा। पर जो लोग यीशु का कमाया हुआ उद्धार को ग्रहण करेंगे, उन्हें तो अपने पापों का भार स्वयं उठाना पड़ेगा।1SG 40.1

    यीशु का जीवन तो बिना तड़क भड़क या दिखावे का था। उसका दीनहीन और स्वार्थ-त्याग का जीवन तो उन सदूकी और फारीसियों और पुरोहितों से जो संसार की मोह-माया पसन्द करते थे, बहुत भिन्न था। यीशु का चरित्र उनके चरित्र को सदा ठोकर दिलाता था। उसका शुद्ध और पवित्र जीवन से इन्हें घृणा थी। जिन लोगों ने उसे तिरस्कार किया था वे एक दिन पिता के घर में उसे असीम महिमा से भरा हुआ और गौरवपूर्ण चेहरा देखेंगे। न्यायालय में उसके शत्रुओं ने उसे घेर कर दिल कठोर कर कहा था कि उसे क्रूस पर चढ़ाओ, उसका खून हमारे और हमारे बच्चों पर पड़ेगा, वे उसे आदरवन्त राजा के समान देखेंगे। सब स्वर्गदूत बड़े महिमा और विजय के गीत गाते हुए उसको रास्ते में अग्रवाई करेंगे क्योंकि वह बध किया गया था, पर जी उठा और विजयी हुआ है। गरीब, कमजोर और दुःखी सबने महिमा का राजा का चेहरा में थूका था, उग्रवादी भीड़ उससे गुस्सा होकर बेइज्जत कर चिल्ला रही थी। जिस चेहरा को स्वर्ग ने महिमा से भरा था, उस पर मार और थूक से बदरंग कर दिया था। उस चेहरा को सूर्य जैसा चमकीला फिर से देखकर डर से भाग कर देखेंगे। क्रूरता की विजय की आवाज करने के बदले अभी वे डर से घबरा जायेंगे। यीशु अपना घायल और छेदा हुआ हाथ को दिखायेगा जो क्रूसघात के समय काँटी ठोका गया था। क्रूरता का चिन्ह अपने हाथों से कभी नहीं मिटायेगा। काँटी का हर छेद बतायेगा कि मानव का उद्धार करने में कितना बड़ा मूल्य चुकाना पड़ा है। जिन लोगों ने यीशु की छाती को बेधा था वे भी इसे देखेंगे और शोकित होंगे कि यीशु का शरीर को कुरूप बना दिया। उसके हत्यारे इस बात से बहुत चिन्तित होंगे कि यीशु के सिर के ऊपर क्रूस काठ पर लिखा गया था - ‘यीशु यहूदियो का राजा’। उस वक्त उसे साक्षात में राजकीय शक्ति और महिमा में देखकर ताज्जूब करेंगे। वे उसके मुकुट और जाँघ में यह लिखा हुआ देखेंगे - ‘राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु’ जब वह क्रूस पर लटका हुआ था तो ठट्ठा कर चिल्ला रहे थे कि यदि तू इस्त्राएलियों का राजा है तो क्रूस से नीचे उतर आ तब हम विश्वास करेंगे। अब वे उसे राजकीय शक्ति और अधिकार प्राप्त राजा के समान देखेंगे। अब वे उसे इस्त्रालियों का राज्य होने का प्रमाण नहीं मागेंगे पर ऐश्वर्य और महिमा से भरा हुआ चेहरा को देख कर यह कहने के लिये मजबूर होंगे कि धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है।1SG 40.2

    धरती का काँप उठना, चट्टानों का फट कर छितराना, घना अंधकार छा जाना और यीशु की जोर की आवाज - ‘पूरा हुआ’ और अपने प्राण त्याग देना, इन सब घटनाओं ने दुश्मनों के दिल को दहला दिया था। इस एक उक्ति से चेले घबड़ा गए थे और उन की आशा जाती रही। वे सोच रहे थे कि यहूदी लोग उन्हें भी मार डालेंगे। इस प्रकार का घृणा उन्होंने यीशु पर दिखाया था। उसका वहीं अन्त हो गया, ऐसा नहीं मान रहे थे। इस उदास और निराशा के समय वे एकान्त जीवन जीते थे। वे सोचते थे कि यीशु कुछ दिनों के लिये राज्य करेगा पर उसके मरने पर उनकी आशा भी मर गई। शोक और हतोत्साह के समय वे सोचते थे कि क्या यीशु ने हमें धोखा तो नहीं दिया? उस की माँ भी नम्र हो गई और उसका विश्वास भी डगमगाने लगा था कि क्या वह मसीह था?1SG 42.1

    अपनी आशा को पूरा होते न देखकर उदास होने के बावजूद भी वे उसे आदर और प्यार करते थे पर उन्हें नहीं मालूम था कि कैसे उस की लोथ को प्राप्त करें। अरमाथिया का युसूफ जो उसका चेला था, एक सलाहकार और प्रभावी आदमी था। वह पिलातुस के पास चुपचाप, पर साहस के साथ जाकर यीशु की लोथ को माँगा। चेलों पर यहूदियों का घृणा और गुस्सा के कारण वह दिन में न जा कर रात में गया और गाड़ने माँगा। वह डरता था कि कहीं यीशु की लोथ को गाड़ने देने से इन्कार करे। पिलातुस ने लेने की इजाजत दे दी। जब वे लोथ को क्रूस से उतार रहे थे तो उनका शोक और ताजा हो गया और विलाप करने लगे। उस को नैलोन का कपड़ा में लपेट कर युसूफ की कब्र में डाल दिए और एक बड़ा पत्थर उसके मुँह में डाला गया। वे आरैतें जो उसके दीन हीन अनुयायी थीं और मरने तक उस के साथ थीं, जब तक यीशु को कहाँ ले कर गाड़ा गया, उसे न देखीं तब तक लोथ से दूर न हटी थी। बड़ा वजनदार पत्थर इसलिए ढाँका गया कि कोई उसे उठा कर न ले जाए। उन्हें तो डरना नहीं था क्योंकि स्वर्गदूत बड़ी चैकसी से कब्र में पहरा दे रहे थे। वे कब्र की रक्षा बहुत उत्तेजना के साथ कर रहे थे और अपने कप्तान दूत की आज्ञा सुनकर उसे कब्र से भी निकाल लाने को तैयार थे।1SG 42.2

    ख्रीस्त के हत्यारे डर रहे थे कि वह जी उठकर निकल आयेगा। इसलिए उन्होंने पिलातुस से अर्जी की कि तीसरे दिन तक कब्र का कड़ा पहरा दिया जाये। कब्र के मुँह पर का पत्थर में मोहर लगा दिया जाए। ऐसा न हो कि उसके चेले आकर उसे उठा ले जाएँ और कहने लगेंगे कि यीशु मुर्दों में से जी उठा है।1SG 43.1

    Larger font
    Smaller font
    Copy
    Print
    Contents