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महान संघर्ष

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    डगमगाहट

    मैंने कुछ मजबूत विश्वासियों को, शोकितों को देखा। वे ईश्वर से अर्जी (प्रार्थना) कर रहे थे। उनके चेहरे मुरझाये हुए थे, गहरी चिन्ता में पड़े थे, जिससे उनका आन्तरिक युद्ध मालूम पड़ता था। उनके चेहरों से तो बहुत दृढ़ता और सच्चाई के लिये चिन्ह दिखाई देते थे परन्तु कपालों से बड़ी-बड़ी पसीने की बूंदे गिर रही थीं। ईश्वर की कृपा या मदद से कभी-कभी उनके चेहरे चमक उठते थे। फिर वही गम्भीर चिन्ता उनके चेहरे से दिखाई देती थी। 1SG 155.1

    बूरे दूत उनके चारों ओर घेरे हुए थे और यीशु को नहीं देख सकने के लिये अंधकार फैला रहे थे। इस अंधकार के द्वारा वे यीशु को नहीं दिखाना चाहते थे ताकि वे घबड़ा कर उस पर विश्वास करना छोड़ दें और कुड़कुड़ाने लगे। उनका एक मात्र सुरक्षा ऐसी दशा में यह था कि वे स्वर्ग की ओर अपनी आँखें उठा कर देखें। परमेश्वर के लोगों के ऊपर स्वर्गदूत मंडरा रहे थे, उनको बचाने के लिये। जब चिन्तित लोगों के ऊपर बुरे-बुरे दूतों का विषैला वातावरण फैलाया जा रहा था तब स्वर्गदूत भी इस विषैला अंधकार को हटाने के लिये अपने पंखों से धूक रहे थे, हवा दे रहे थे। 1SG 155.2

    मुझे दिखाया गया कि कुछ लोग शोकित होकर प्रार्थना करने में शामिल नहीं हुए। वे बेपरवाह और अनजान दिखाई दिये। वे इस अंधकार से निकलना नहीं चाह रहे थे। इसलिये काला बादल जैसा अंधकार ने उन्हें पूरी तरह से ढांक लिया। स्वर्गदूत इन्हें छोड़ कर उनके पास गए जो गिड़गिड़ा कर ईश्वर से बचाने के लिये प्रार्थना कर रहे थे। मुझे दिखाया गया कि ईश्वर के दूतगण उन लोगों की मदद करने दौड़ते हुए गए जो अपनी सारी शक्ति लगा कर बुरे दूतों से लड़ रहे थे तथा ईश्वर को मदद के लिये लगातार पुकार रहे थे। परन्तु दूतों ने उन्हें छोड़ दिए जिन्होंने बुरे दूतों से अपने को छुड़ाने के लिये कुछ कोशिश न की। वे मेरी दृष्टि से ओझल हो गए। 1SG 155.3

    जब प्रार्थना करने वालों का यह दल लगातार तन-मन से विनती कर रहा था तो यीशु की ओर से एक ज्योति आई और उन्हें उत्साहित किया। उनके चेहरों में रोशनी पड़ रही थी। 1SG 156.1

    मैंने जो हिलाना देखी तो उसका अर्थ भी पूछी। उसका आन्तरिक अर्थ यही बताया गया - लौदीकिया जो अन्तिम मंडली है उसको सच्चा गवाही देने के लिये निर्भय होकर खड़ा हो जाना चाहिये या, तैयार होना है। जो लोग सुनेंगे उनके दिलों में इस साक्षी का प्रभाव होगा। इससे रहन-सहन का स्तर ऊँचा होगा। सच्चाई को बिना टेढ़ा-मेढ़ा कर सीधा बताना होगा। इस सीधी सच्चाई की बात को कोई-कोई सुनना पसन्द नहीं करेंगे। वे इसके विरूद्ध खड़े होंगे। यही समय होगा जो ईश्वर के लोगों को हिलाने का काम करेगा। 1SG 156.2

    मैंने देखा कि सच्ची साक्षी देने का काम में आधा भी ध्यान नहीं दिया गया है। गम्भीर साक्षी जिस पर मंडली का मंजिल आधारित है या टिका हुआ है। उस पर बहुत कम ध्यान दिया गया है जिससे इसको थोड़ा ही ऊपर उठाया गया है। यह साक्षी सच्चा पश्चात्ताप लायेगा और जो सचमुच में ग्रहण करेंगे, वे मानेंगे और शुद्ध होंगे। 1SG 156.3

    स्वर्गदूत ने कहा - ‘इसे लिख लो’। मैंने तुरन्त सुना कि मधुर बाजा की आवाज जैसा चारों तरफ आवाज गूंज रही थी जो एक स्वर का गीत था। जितने गीत मैंने सुने थे उनमें से यह उत्तम था। ऐसा लग रहा था कि इसमें दया, सहानुभूति और पवित्र आनन्द से भरा हुआ है और मन को ऊपर उठा रहा है। इसने मुझे रोमांचित कर डाला। दूत ने कहा - ‘इसे देखो’ तब मेरा ध्यान उस दल की ओर गया जिस दल के लोगों को मैंने पहले हिलाया हुआ देखा था। मैंने उनको देखा जो पहले शोकित होकर रोते और प्रार्थना करते देखा था। मैंने उनके चारों ओर रक्षा करने वाले दूतों की दुगुना संख्या देखी। वे सिर से पैर तक अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित थे। वे लोग कदम तल से जा रहे थे जैसा सिपाही या सैनिक लोग चलते हैं। उनके चेहरों से पता चलता था कि उन्होंने भयंकर युद्ध कर विजय पाई है। कितना कठिन समय में गुजरे थे उनके चेहरे से पता लगता था। उनके रूप रंग से भी पता चलता था कि वे कितनी वेदनाओं को सह कर पार हुए हैं पर अब स्वर्गीय गौरव की ज्योति उनके चेहरे से झलक रही थी। उनको विजय मिली थी। वे कृतज्ञ थे और उनमें पवित्र आनन्द था। 1SG 156.4

    इस दल की संख्या तो कम थी। कुछ लोग हिलाये गये और रास्ते किनारे गिर गये। लापरवाही और अनजान लोग जो इस दल में शामिल नहीं हुए, जिनको उद्धार का इनाम मिलना था, वे दल में शोक करने लगे, लगातार विनती करने लगे, पर नहीं मिला। उन्हें, पीछे अंधकार में छोड़ दिये गए। उनकी संख्या की गिनती तुरन्त उन लोगों के द्वारा की गई जिन्होंने सच्चाई को मजबूत से पकड़ा था। वे लोग भी इनके दर्जे में आ रहे थे। अब तक बुरे दूत उनके पीछे पड़े हुए थे पर वे इन्हें कुछ न कर सके। 1SG 157.1

    मैंने सुना कि जो लोग हथियार-बाँधे थे उन्होंने सच्चाई को बड़ी शक्ति से पेश किया। इसका काफी प्रभाव हुआ। मैंने कुछ स्त्रियों को अपने पतियों के द्वारा रोकते हुए देखा और कुछ बच्चे माता-पिताओं के द्वारा बाधा दिए गए। कुछ विश्वासी लोगों को सच्चाई सुनने से रोक दिए गए। अब वे जो सच्चाई प्रगट की गई थी उसे खुशी से ग्रहण करने लगे। उनके रिश्तेदारों की ओर से जो डराना, धमकाना हो रहा था उसका भय मिट गया। उन्हें सच्चाई सुनने का पूरा अवसर मिला। यह उनके लिए जीवन से भी अधिक मूल्यवान हो गया। अब सच्चाई के लिए भूखे और प्यासे बन गए। मैंने पूछा इस बड़ी बदलाहट का क्या कारण है? तब दूत ने उत्तर दिया - आखिरी वर्षा इसका कारण है। प्रभु की उपस्थिति से उत्साहित दूत की पुकार है। 1SG 157.2

    इन चुने हुए लोंगो में बड़ी शक्ति आ गई। दूत ने कहा - ‘इन्हें देखो?’ मेरा ध्यान दुष्टों या अविश्वासियों की ओर गया, वे तो गड़बड़ी में थे। परमेश्वर के लोगों में जोश और शक्ति थी। इसे देख दूसरे लोग क्रोधित हुए। चारों ओर घबड़ाहट और असमझ फैली हुई थी। जिन लोगों के पास बल और ज्योति थी उनके विरूद्ध कारवाई हुई। चारों ओर अंधकार छाया था फिर भी वे ईश्वर की कृपा से स्थिर खड़े थे। वे ईश्वर पर भरोसा रखे हुए थे। वे भी घबड़ाए हुए थे। इसके बाद वे ईश्वर से गिड़गिड़ा कर विनती कर रहे थे। रात और दिन वे लगातार विनती कर रहे थे। मैंने ये शब्द सुने - हे! ईश्वर तेरी इच्छा पूरी हो। यदि तेरी इच्छा हो तो इन्हें संकट से बचा लो। हमारे चारों ओर बैरी घेरे हुए हैं उनसे बचा ले। वे हमें मार डालने के लिये तैयार हैं। पर तेरा हाथ उनसे बचा लेगा। ये ही बातें मुझे स्मरण हो रही हैं। वे अपनी अयोग्यता का पूर्ण रूप से महसूस कर रहे हैं। इसलिये पूर्ण रूप से अपने को ईश्वर में सौंप देना चाहते हैं। सब कोई गिड़गिड़ा कर प्रार्थना करने में लगे हैं। ये याकूब की तरह संकट से बचने के लिये कुश्ती लड़ रहे थे।1SG 158.1

    तन-मन से प्रार्थना शुरू करने के तुरन्त बाद में स्वर्गदूत सहानुभूति के साथ उन्हें बचाने आये। तब कप्तान दूत ने उन्हें ठहरने की आज्ञा दी और कहा ईश्वर की इच्छा अभी पूरी नहीं हुई है। उन्हें इस प्याला से पीना है, उन्हें इसका बपतिस्मा लेना है यानी इस संकट से गुजरना है। 1SG 159.1

    इसके बाद मैंने ईश्वर की पुकार सुनी। इसने आकाश और पृथ्वी को डगमगा दिया। एक बड़ा भूकम्प हुआ। बड़े-बड़े मकान इधर-उधर गिरने लगे। इसके बाद मैंने विजय की आवाज सुनी जो संगीत के समान स्पष्ट था। मैंने इस दल को देखा। थोड़ी देर पहले उदास थे और जंजीर से बाँधे हुए थे। उनका यह बन्धन टूट गया। उनके ऊपर एक गौरवमय ज्योति चमकी। वे उस वक्त कितना सुन्दर दिखाई दे रहे थे। सब शिथिलता और चिन्ता के चिन्ह गायब थे। सब के चेहरों से स्वास्थ्य और सुन्दरता झलक रही थी। उनके शत्रु उनके चारों ओर मुर्दा की नाई गिरे पड़े थे। यीशु की ज्योति के सामने वे ठहर न सके। यीशु को आते देख कर वे खुशी से चिल्ला उठे और कहने लगे देखो वह आ गया। इसी की आशा हम कर रहे थे। वे देखते ही क्षण भर में पलक मारते ही महिमा और अमरता में बदल गए। १ कुरिन्थी १५:५२ कब्रें खुली और सन्त लोग पहिले जी उठे और अमरता में बदल गए। पर दुष्ट पापी लोग जी नहीं उठे। मृत्यु पर विजय पाने की जय ध्वनि करने लगे। ये सन्त प्रभु के साथ स्वर्ग चले गए।1SG 159.2

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