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महान संघर्ष

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    पाठ ४० - दूसरा पुनरुत्थान

    यीशु के साथ पवित्र दूतों का दल और उद्धार प्राप्त सन्त लोग स्वर्ग का पवित्र नगर को छोड़ कर आने लगे। पवित्र दूतगण यीशु के चारों ओर होकर आगवानी कर रहे थे और उद्धार प्राप्त सन्त ने मरे हुए दुष्टों को चिल्ला कर कहा - ‘उठो’। जब वे मुर्दो में से जी उठे तो जैसे वे कमजोर, दुबले-पतले रोगी थे वैसे ही उठे। उनमें कोई बदलाहट नहीं थी। क्या ही भयानक दृश्य था यह। पहिले जब सन्त लोग जी उठे। तो अमरता से भरपूर होकर उठे थे। परन्तु दुष्टों का जी उठना के समय साप के चिन्ह उनके चेहरों से झलक रहे थे। राजा और नबाब, छोटे-बड़े बुद्धिमान और अनपढ़ सब नीच दशा में जिलाए गए। सबने यीशु को देखा। जिन्होंने उसे मारा था, हँसी-ठट्ठा किया था, काँटों का मुकुट पहनाया था और उसके पंजर को बेधा था, सबने उसे अब महिमा का राजा के रूप में देखा। जिन्होंने उसके चेहरे पर थूका था, वे उभी उसका तेजोमय चेहरा को देख कर डर रहे थे। जिन्होंने उसके पाँवों और हथेलियों पर काँटियाँ ठोकी थी, वे अब उसके चिन्हों को देख रहे थे। जिन्होंने बर्डी से उसके पंजर को निर्दयता के साथ बेधा था, वे उसके चिन्ह को शरीर में देख रहे थे। उनको अब पूरा मालूम हो गया था कि वही यीशु को उन्होंने क्रूस पर चढ़ाया था, उसकी ठट्टा उड़ायी थी, वही है, दूसरा कोई नहीं। इसके पश्चात एक दुःख का सिलसिला जारी होता है, वे उसके सामने से डर कर भागने लगे।GCH 184.1

    सब कोई चट्टानों और पहाड़ों से कहने लगे कि यीशु के तेजोमय चेहरे से हमें छिपा लो। एक समय वे उसी का मजाक करते थे। अब डरे हुए हैं। जब सब कोई उसकी महिमा की रोशनी से मर गए तो एक साथ चिल्ला उठे - “धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है। इसके बाद सन्त और दूतगण लोग यीशु के साथ नगर की ओर चले गए। अभी विनाश होने वाले दुष्ट रोते कलपते चिल्लाने लगे। अपने नेताओं को दोष देने लगे। मैंने देखा कि शैतान फिर अपना काम शुरू करने लगा। अपनी प्रजाओं के पास जाकर कहने लगा - आप तो कप्तान थे, बहादुर थे, लड़ाकू थे चलो एक साथ मिल कर सन्तों के विरूद्ध लड़ाई करें। वह अनगिनत लोगों को बहकाता है। वहाँ महान लड़ाकू, नेपोलियन, हिटलर जैसे और भी थे सब को लड़ने के लिये ले जाता है। जी उठने पर उनके मन में वही चाह थी जैसी पहले थी कि राज्य को विजय कर राज्य करें। वे देखते हैं कि उन पर चढ़ाई कर जीत जायेंगे। उनके बदले ये वहाँ महिमा के साथ राज्य करेंगे।GCH 184.2

    शैतान उन्हें ठगने में सफल हो जाता है। वे लड़ाई करने के लिये राजी हो जाते हैं। उस अनगिनत सेना में बहुत कारीगर लोग भी थे। वे हथियार बनाने लग जाते हैं। अपने कप्तान शैतान के साथ वे जाते हैं। उसके पीछे राजा और बड़ा समूह उमड़ पड़ता है। हर दल अपना कप्तान के साथ जाता है। वे सब उस पवित्र नगर की ओर आगे बढ़ते हैं। यीशु तुरन्त फाटकों को बन्द कर देता है। शत्रु चारों ओर से इस नगर को घेर लेते हैं। बड़ा युद्ध होने की सम्भावना से सब प्रकार के लड़ने के अस्त्र-शस्त्र उनके पास थे। यीशु और उसके सन्त चमकीले मुकुट पहन कर नगर की चोटी पर चढ़ गए। यीशु उनको कहता है - हे पापी लोग धर्मियों का पुरस्कार को देखो। हे सन्तो! दुष्टों का प्रतिफल भी देख लो। असंख्य दुष्ट लोग दीवार पर सन्तों की अपार महिमा का मुकुट को देखते हैं। उनके चेहरों से महिमा की रोशनी भी फूट पड़ती हैं। जब यीशु का अतुलनीय महिमा और ऐश्वर्य को देखते हैं तो उनके दिमाग या होश उड़ जाते हैं। उनको मालूम होता है कि उन्होंने इतना बड़ा गौरव और महिमा का धन को खो दिया हैं। वे जानते हैं कि अब उन्हें कुछ न मिलेगा। वे उस खुशहाल सन्तों का दल को देखते हैं। और ईष्र्या करते हैं। पर ये अपने को नगर के बाहर पाते हैं।GCH 185.1

    ________________________________________
    आधारित वचन १ थिस्सुलोनी ४:१६, १७,
    प्रकाशित वाक्य ६:१५, १६, ९o:७-९
    GCH 186.1

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