Loading...
Larger font
Smaller font
Copy
Print
Contents

महान संघर्ष

 - Contents
  • Results
  • Related
  • Featured
No results found for: "".
  • Weighted Relevancy
  • Content Sequence
  • Relevancy
  • Earliest First
  • Latest First

    पाठ ५ - यीशु की सेवकाई

    जब शैतान ने परीक्षा करना समाप्त किया तब वह यीशु से थोड़ी देर के लिये दूर चला गया। उस जंगल में स्वर्गदूत आ कर उसकी सेवा-टहल करने लगे। उन्होंने उसे भोजन दिया और उसे सबल बनाया। ईश्वर का आशीर्वाद भी मिला। शैतान ने कठिन परीक्षा यीशु पर लायी थी पर वह गिराने से चूक गया। यीशु के सेवकाई के आनेवाले दिनों में फिर से उस पर अपनी परीक्षा लाने की आशा करने लगा। जो लोग यीशु को नहीं ग्रहण करेंगे, उनके बीच में आकर गड़बड़ी फैला कर जो यीशु को मानेंगे उनसे घृणा कर उन्हें मार डालने की युक्ति बनाने को सोचा। शैतान ने अपने दूतों के साथ एक विशेष सभा बुलायी। यीशु के विरूद्ध कुछ न कर सकने के कारण वे नाराज थे और गुस्सा भी हो रहे थे। उन्होंने सोचा कि आगे और भी अधिक चालाकी से लोगों के पास आकर मन में सन्देह का विचार लें आयें और कहें। कि यीशु जगत का उद्धारकर्ता नहीं है। उस पर विश्वास मत करो। ऐसा काम कर यीशु को उसके कामों में नीरस करना चाहते थे। यहूदी लोग चाहे जितना सख्त अपने धर्म को पालन करेंगे पर यदि उनके मन में भविष्यवाणी के विषय अंधा बना दिया जाये और यीशु के आने का विश्वास उठा दिया जाये और उसे एक साध आरण मनुष्य की तरह उनकी समझ में डाले और मसीह का आना अभी देर है, कहें तो हमारा काम कुछ हद तक सफल होगा।GCH 17.1

    मैंने देखा कि यीशु की सेवकाई के दिनों में शैतान और उसके साथी, लोगों के मन में ईष्र्या, द्वेष और अविश्वास फैलाने में बहुत व्यस्त रहते थे। यीशु जब सच्चाई के द्वारा उनके पापों के विरूद्ध कुछ कहता था तो वे उस पर गुस्सा हो जाते थे। शैतान और उसके साथी यीशु को मार डालने की सलाह देते थे। एक बार यीशु को मार डालने के लिये उन्होंने पत्थर भी उठाया तो स्वर्गदूत आकर उसे बचा लिए और उसे सुरक्षित जगह ले गए। दूसरी बार जब वह उपदेश दे रहा था तो बहुत से लोग मिल कर उसे पकड़ लिये और उसे पहाड़ की चोटी से नीचे गिराने के लिए ले चले। जब यीशु को दूतों ने उसे छुड़ा लिया और उनके बीच से छिपा कर ले गये तो वे आपस में वाद-विवाद करने लगे कि क्या किया जाये।GCH 17.2

    शैतान अभी भी विश्वास कर रहा था कि उद्धार की बड़ी योजना असफल होकर ही रहेगी। उसने लोगों के मन कठोर बना कर यीशु के प्रति कडुवाहट उत्पन्न किया। शैतान आशा करता था कि यीशु बहुत कम लोगों को अपना चेला बनाने सकेगा। इतनी कम संख्या में पाकर यीशु अपना बड़ा बलिदान देकर पछतायेगा। मैंने देखा कि एक या दो व्यक्ति भी उस पर यह विश्वास करे कि यह परमेश्वर का पुत्र है। जो पापियों को बचाने आया है, तो भी यीशु अपनी योजना को पूरा करता।GCH 18.1

    यीशु ने शैतान का उस काम को तोड़ना शुरू किया जिसके द्वारा लोगों को कष्ट देकर सता रहा था। उसके बुरे काम के द्वारा दुःख कष्ट झेल रहे थे, उन्हें चंगा कर छुड़ाया। बीमारों को चंगा किया, लंगड़ों को चंगा कर कूदने-फाँदने का ताकत देकर ईश्वर की महिमा करवायी। अँधों को दृष्टि दिया और जो कमजोर थे उन्हें और शैतान के बंधन में वर्षों से थे उन्हें चंगा कर सबल बनाया। अपने मधुर वचनों से डरते-काँपते और नीरस लोगों को शान्ति और ढाढ़स दिये। उसने मुर्दो को जिलाया और उन्होंने ईश्वर की असीम शक्ति का गुणगान किया। जिन्होंने उस पर विश्वास किया उन सब के लिए बहुत बड़ा काम किया। जिन कमजोर लोगों को शैतान दुःख दे कर सता रहा था उन्हें यीशु ने उसके कब्जे से छुड़ा लिया, उन्हें अच्छा स्वास्थ्य देकर आनन्दित किया।GCH 18.2

    यीशु का जीवन प्रेम, दान और सहानुभूति से भरा हुआ था। जो लोग, उनके पास आकर अपना दुःखड़ा सुनाते थे उनकी अर्जी को सुनने के लिये हमेशा तैयार रहते थे। उसकी स्वर्गीय शक्ति का प्रदर्शन बहुत लोग अपने जीवन में करने लगे। फिर भी बहुत से लोग उसके काम के पूरे होने पर उस नम्र व्यक्ति, जब कि एक महान शिक्षक भी था, उसे इन्कार किये। यीशु के साथ दुःख उठाना नहीं चाह कर शासक वर्ग के लोग उस पर विश्वास करना छोड़ दिया। वह तो एक दुःखभोगी और उदास से मरा हुआ व्यक्ति था। कुछ ही लोग थे जो उस के संयम और निःस्वार्थ जीवन से प्रभावित हुए। कुछ लोग जगत का सुख भोग की ओर आकर्षित हुए। बहुत से लोग तो यीशु के पीछे चले और उसके उपदेशों को सुने। उसके मुँह से जो मधुर वचन निकलते ये उसका आनन्द लेते थे। वे इतनी सरल और सीधी-साधी बात करते थे कि अनपढ़ लोग भी समझ जाते थे।GCH 19.1

    शैतान और उसके बुरे दूत व्यस्त रहा करते थे। उन्होंने यहूदियों की आखों को अंधा बना कर उनकी समझ शक्ति को भी धुंधला कर दिया। शैतान ने शासक वर्ग के बीच यह षड्यन्त्र रचा कि यीशु को मार डालें। उन्होंने यीशु को लाने के लिए आदमी भेजे और जब ये उसके पास पहुँचे तो बहुत ताज्जुब करने लगे। मनुष्यों की दुर्दशा को देखकर यीशु सहानुभूति और कृपा से भरा था उसे वे देख सके। उन्होंने यह भी देखा कि यीशु उन गरीब-लाचारों से बहुत ही नम्रता और करूणा से पेश आया। उन्होंने यह भी सुना कि यीशु ने शैतान की शक्ति को अधिकार के साथ डाँटा और भूतग्रस्त लोगों को मुक्त किया। यीशु के मुँह से मीठे वचन को सुनकर मनमुग्ध हो गये। उसे पकड़ने की हिम्मत न हुई। वे यीशु को बिना लाये याजकों और प्राचीनों के पास लौटे। पकड़कर न लाने पर उनसे पूछा गया, क्यों तुम यीशु को पकड़ नहीं लाया ? यीशु के आश्चर्य कार्यों और ज्ञान की बातें जो सुनें थे, उन्हें बताने लगे। प्रेम से भरी ज्ञान की जो बातें उन्होंने सुनी थी, उसके विषय चर्चा कर कहने लगे कि किसी आदमी ने अब तक उसके समान उपदेश नहीं दिये हैं। प्रधान याजक ने उन्हें धोखा खाने का दोष लगाया। कोई-कोई तो नहीं लाने के कारण लज्जित भी हुए। प्रधान याजक ने मजाक करते हुए पूछा कि क्या कोई शासक ने उस पर विश्वास किया है ? मैंने दर्शन में देखा कि बहुत से प्राचीन व्यक्ति और मजिस्ट्रेट ने यीशु पर विश्वास किया। परन्तु शैतान ने उन्हें जनवाने से रोके रखा। ईश्वर से डरने के बदले लोगों की निदां से अधिक डरने लगे।GCH 19.2

    उद्धार की योजना को अब तक शैतान की धूर्तता और द्वेष, बर्बाद नहीं कर सका था। जिस उद्देश्य से और जो काम पूरा करने के लिये यीशु इस दुनियाँ में आया था वह नजदीक होता जा रहा था। शैतान और उस के दूतों ने यीशु के लोगों को ही उसके विरूद्ध भड़का कर उसके खून का प्यासा बनाया। उन्होंने उसके विरूद्ध क्रूरतापूर्ण दोषारोपण किया। उन्होंने सोचा कि यीशु इस बुरा व्यवहार से चिढ़ कर अपनी नम्रता और संयम कायम नहीं कर गुस्सा होगा।GCH 20.1

    इधर शैतान अपनी योजना बना रहा था और उधर यीशु अपने चेलों को बता रहा था कि उसे बहुत दुःख-तकलीफ उठाना पड़ेगा। वह क्रूसघात किया जायेगा और तीसरा दिन में जी उठेगा, पर चेले समझ न सके। उसने जो बातें बतायी थी उससे समझने में सुस्त पड़ गये थे।GCH 20.2

    ______________________________________
    यूहन्ना ७:४५, ४६, ८:५९ लूका ४:२९, २४:६-८
    GCH 20.3