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कलीसिया के लिए परामर्श

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    बाइबल अध्ययन से लगन प्राकृतिक नहीं है

    बाल-वृद्ध दोनों बाइबल की उपेक्षा करते हैं.वे उसको अपने अध्ययन का विषय तथा जीवन का नियम नहीं बनाते हैं. इस उपेक्षा के दोषी विशेषकर युवक ही हैं.अधिकतम अन्य पुस्तकों को पठन के लिए समय ढूढते हैं परन्तु जो पुस्तक अनंन्त जीवन का मार्ग बतलाती है उसका प्रतिदिन पठन-पाठन नहीं होता.झूठी कहानियां ध्यानपूर्वक पढ़ी जाती हैं परन्तु धर्मपुस्तक की उपेक्षा की जाती है. यह पुस्तक ऊँचे, पवित्र जीवन की और मार्गदर्शन करती है. यदि युवक असत्य कल्पित कहानियों के पढ़ने द्वारा अपने विचारों को भ्रष्ट न करते तो उसकी अति मनोहर पुस्तक घोषित करते.ककेप 151.1

    सम्प्रदाय के नाते हमको जिन्हें भारी प्रकाश प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है अपनी आदतों, अपनी बात-चीत,अपनी पारिवारिक जीवन और व्यवहार का उत्थान करना चाहिए.परमेश्वर के वचन को घर में पथ प्रदर्शक स्वरुप तथा प्रत्येक कारोबार को माप जैसा समझना चाहिए. क्या मेरे भाई और बहिनों को यकीन होगा कि पारिवारिक वृत में कोई आत्मा समृद्धशाली नहीं हो सकती जब तक परमेश्वर का सत्य अथवा धार्मिकता का विवेक अध्यक्षता न करे.माता-पिता को कोशिश करनी चाहिए कि परमेश्वर की उपासना को एक बार समझने की सुस्त आदत से मनों को ठीक करें. सत्य की शक्ति परिवार में एक पवित्र करने वाला साधन होना चाहिए.ककेप 151.2

    प्रारम्भिक वर्षों में बालकों को परमेश्वर की व्यवस्था के दावों को और त्राणकर्ता यीशु पर विश्वास करना सिखलाना चाहिए कि वह पाप के दागों से स्वच्छ कर सकता है. इस विश्वास को दिन प्रतिदिन सिद्धान्त और नमूने से सिखलाना चाहिए.ककेप 151.3