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कलीसिया के लिए परामर्श

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    विश्वासी लेन-देन में दूसरों से बेहतर हो

    मसीह के माप के अनुसार ईमानदार मनुष्य वह व्यक्ति है जो अटल सच्चाई को प्रगट करे.कपट के बटखरे और झूठे तराजू जिनसे कई लोग अपने हितों को संसार में बढ़ाना चाहते हैं परमेश्वर की दृष्टि में घृणित हैं. तोभी अनेक जो परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने का दावा करते हैं झूठे बाटों और झूठी तराजू से व्यवहार करते हैं.जब मनुष्य सचमुच परमेश्वर से सम्बंध रखता है और यथार्थ में उसकी व्यवस्था का पालन करता है तो उसके जीवन से उस तथ्य का पता लग जायगा;क्योंकि उसके सारे कार्य मसीह की शिक्षा के अनुकूल होंगे.वह अपनी ईज्जत को नफे की खातिर नहीं बेचेगा.उसके नियमों की इमारत पक्की नींव पर खड़ी है और सांसारिक मामलों में उसका व्यवहार उसके सिद्धान्तों की एक प्रतिलिपि है. ठोस ईमानदारी संसार के कूड़े करकट के बीच स्वर्ण की भांति चमकती है.कपट,झूठ और विश्वासघातक के ऊपर हो सकता है कि मुलम्मा चढ़ा हो और मनुष्य की निगाह से छिपा हो परन्तु परमेश्वर की दृष्टि से नहीं छिपा सकता.परमेश्वर का दूत जो चरित्र के निकास को देखते और नैतिक मूल्य को तौलते रहते हैं स्वर्ग की पुस्तकों में इन छोटे-छोटे व्यवहारों को लिखते हैं जिनसे चरित्र का प्रकाशन होता है.यदि कोई कर्मचारी अपने दिनचर्या में बेईमान है और काम को ठीक से नहीं करता है तो संसार का यह निर्णय असत्य न समझा जायगा जब वे उसके धर्म के स्तर का अनुमान उसके कारोबार से लगाये.ककेप 154.2

    स्वर्ग के मेघों में मनुष्य के पुत्र के शीघ्रमान पर विश्वास खरे मसीह ही को जीवन के साधारण कारोबार में बेपरवाह और असावधान नहीं होने देगा.बाट जोहने वाले जो मसीह के शीघ्र प्रकट होने की राह ताक रहे हैं आलसी न होंगे किन्तु कारोबार में परिक्रमी रहेंगे. उन का काम बेपरवाई और बेईमानी से ने किया जायगा किन्तु विश्वस्तता से,वेग से और पूर्णता से किया जायगा.जो लोग इस बात पर अपनी प्रशंसा करते हैं कि इस जीवन की बातों की ओर बेपरवाई से देखना उनकी धार्मिकता का और संसार से पृथकता का प्रमाण है वे बड़े धोके में है. उनकी सत्य वादिता, विश्वस्ता तथा ईमानदारी की सांसारिक बातों ही के द्वारा होती है.यदि वे छोटी-सी छोटी बात में विश्वासी हैं तो बड़ी बात में भी विश्वासी होंगे.ककेप 154.3

    मुझे दिखलाया गया कि यहाँ पर बहुत से लोग परीक्षा में असफल रहेंगे.वे अपने चरित्र का शरीरिक बातों के प्रबंध द्वारा विकास करते हैं. अपने भाई बंधुओं के संग व्यवहार ही में वे बेईमानी,षड़यंत्र, असत्यवादिता का प्रदर्शन कर दिखाते हैं, वे सोचते नहीं कि उनके भावी अनंत जीवन का अधिकार इस बात पर अवलम्बित है कि वे इस जीवन के बराबर में कैसी चाल चलते हैं. और यह भी कि कट्टर ईमानदारी धार्मिक चरित्र निर्माण के लिये अनिवार्य है.बेईमानी ही उनेक विश्वासियों के गुनगुनेपन का कारण है वे मसीह से जुड़े हुए नहीं है पर अपनी आत्माओं को धोखा दे रहें हैं;मुझे ऐसा करने में दु:ख होता है कि सब्बत मानने वालों में ईमानदारी की सख्त कमी है.ककेप 155.1

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