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कलीसिया के लिए परामर्श

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    छोटी छोटी बातों में परमेश्वर की रुचि

    थोड़े हैं जो उचित रीति से प्रार्थना के बहुमूल्य विशेषाधिकार का सम्मान अथवा अच्छा उपयोग करते हैं.हम को जाकर यीशु से अपनी सारी आवश्यकताओं का वर्णन करना चाहिए.हम अपनी मामूली चिंताओं व व्यग्रताओं की और बड़े-बड़े दु:खों को उस के पास ला सकते हैं. जो कुछ भी हम को व्याकुल व चिंतित करे उसे हमें प्रभु के सामने प्रार्थना में ले आना चाहिए.जब हम महसूस करते हैं कि पग-पग हमें मसीह की उपस्थिति की आवश्यकता है तो शैतान को अपने प्रलोभनों को घुसेड़ने का अवसर नमिलेगा.उसकी पूर्व नियोजित यह है कि हमें हमारे श्रेष्ठ,व अधिकतम सहानुभूति रखने वाले मित्र से दूर रखें.हमको सिवाय मसीह के किसी को विश्वासपात्र न बनाना चाहिए. हम बेखटके उससे अपने हृदय की सारी बातें कह डाले.ककेप 161.1

    भाइयों और बहिनों जब प्रार्थनों की सभा के लिए एकत्र होते हैं तो निश्चय जानिये कि यीशु आप से भेंट करेगा और विश्वास करिए कि यह आपको आशीर्वाद देने को खुश है.अपनी ओर से निगाह हटाकर यीशु को देखिए, उसके बेजोड़ प्यार की चर्चा कीजिए.उसको देखने से आप उसकी छवि में बदल जाएंगे.जब आप प्रार्थना करते हैं तो संक्षिप्त कीजिए,मतलब की बात कीजिए.अपनी लम्बी प्रार्थनाओं में परमेश्वर को उपदेश न दोजिए.जैसे भूखा बालक अपने सांसारिक पिता से रोटी मांगता है उसी प्रकार आप भी जीवन की रोटी मांगिए.परमेश्वर हम को प्रत्येक जरुरी आशीष प्रदान करेगा यदि हम उससे सरलता से और विश्वास से मांगे.ककेप 161.2

    आत्मा का सबसे पवित्र अभ्यास प्रार्थना है उसको खरी,नम्र और उत्साही होना चाहिए,ये नये हृदय को अभिलाषाएं हैं जो पवित्र परमेश्वर को उपस्थिति में व्यक्त की जाती हैं जब प्रार्थी महसूस करता है कि वह ईश्वर की उपस्थिति में है तो स्वयं को भूल जायगा.वह किसी ऐसी इच्छा को प्रकट न करेगा जिससे मानवीय योग्यता का प्रदर्शन हो;वह मनुष्य के कान को अच्छे माने वाले शब्दों को चेष्टा न करेगा परन्तु उस आशीष को प्राप्त करने की कोशिश करेगा जिसके लिए आत्मा यांचना कर रही है. ककेप 161.3

    सार्वजनिक तथा गुप्त उपासना में हमारा विशेषाधिकार है कि हम प्रार्थना करते समय परमेश्वर के सामने घुटने टेकें,हमारे आदर्श के लिए यीशु ने टेक कर प्रार्थना की,(लूका 22:41)उसके शिष्यों के बारे में लिखा है कि वे भी घुटने टेक कर प्रार्थना करते थे (प्रेरितो की क्रिया 9:40;20:36)पौलुस ने घोषणा ” मैं उस पिता के सामने घुटने टेकता हूँ.” (इफिसियों 3:14) परमेश्वर के आगे इस्राएलियों के पापों को मानते हुए,एज्रा ने घुटने टेका (देखो एज्रा 9:5)दानिय्येल घुटने टेक कर दिन में तीन बार प्रार्थना करता और अपने परमेश्वर के आगे धन्यवाद करता था.(दानिय्येल 6:10)ककेप 161.4

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