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कलीसिया के लिए परामर्श

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    अध्याय 27 - पति अथवा पत्नी का चुनाव

    विवाह एक ऐसा संस्कार है जिससे आप का यह जीवन और आनेवाला जीवन प्रभावित होंगे.एक विश्वास योग्य मसीही,बिना इस बात का ज्ञान प्राप्त किए कि परमेश्वर उसके इस क्रियाविधि का समर्थन कर रहा है,इस ओर कदापि अग्रसर न होगा.वह,यह चुनाव स्वयं न करके यह चाहेगा कि परमेश्वर ही उसके लिए यह चुनाव करे. हमें अपने आप को प्रसन्न नहीं करना है, क्योंकि मसीह ने अपने आप को प्रसन्न न किया.इससे मेरा यह अर्थ कदापि नहीं है कि कोई ऐसे व्यक्ति से विवाह करे जिससे वह प्रेम न करता हो.ऐसा करना पाप होगा. भावुकता और उद्वेगपूर्ण प्रवृति को विनाश की ओर अग्रसर होने का अवसर न दिया जावे.परमेश्वर समस्त हृदय और श्रेष्ठ प्रेम चाहता है.ककेप 171.1

    वे जो विवाह करने के विचार में हैं इस बात को ध्यान में अवश्य रखें कि जिस परिवार का निर्माण वे कर रहें हैं उसका गुण और प्रभाव क्या होगा.माता-पिता का पद ग्रहण करते ही उन्हें एक पवित्र थाती सौंपी जाती है.इस संसार में बच्चों का कुशल और भावी संसार में उनका आनंद अधिक मात्रा में मातापिता ही पर निर्भर रहता है.वे बहुधा इस का भी निर्णय करते हैं कि ये नन्हें मुन्ने किस शरोरिक व नैतिक सांचे में ढाले जा रहे हैं.प्रत्येक परिवार के प्रभाव के द्वारा ही समाज उन्नतिशील व अवन्नतिशील होता है.ककेप 171.2

    मित्रता स्थापित करने अथवा साथी के चुनाव में एक मसीही नवयुवक को बड़ी सावधानी से पग उठाना चाहिए.सावधान रहें ऐसा न हो कि जिसे अभी आप विशुद्ध स्वर्ण समझते हैं,वह केवल सस्ती धातु न प्रमाणित हो जावे.सांसारिक संगति बहुधा ईश्वरीय सेवा मार्ग में रुकावट ही उत्पन्न करती हैं.व्यावहारिक एवं वैवाहिक सम्बन्ध में ऐसे लोगों के दु:खमय ऐक्य के द्वारा, जो जीवन को उन्नतिशील तथा प्रतिष्ठा योग्य बनाने में नहीं दे सकते,अनेकों आत्माएँ नाश हो जाती हैं.ककेप 171.3

    जीवन यात्रा में सहगामी बनाने के लिए जिसे भी आप चुने,उसके प्रत्येक भावों को तौलिए.उसके प्रत्येक विकास का अवलोकन करिए.जो पग आप उठाने वाले हैं वह आप के जीवन के महत्वपूर्ण कदमों में से एक होगा अतएव इसमें उतावली न हो.जब आप प्रेम करें तो आँख बन्द करके न करें. ककेप 171.4

    बड़ी सावधानी से जांच कर देखिए कि क्या आप का वैवाहिक जीवन सुखमय होगा या दु:खमय और हतभाग्य.यह प्रश्न कीजिए कि क्या यह सम्बन्ध आप को स्वर्ग को ओर अग्रसर होने में सहायक होगा?क्या इससे परमेश्वर के प्रति आप के प्रेम में उन्नति होगी?क्या इसके द्वारा आप की उपयोगिता संसार में विस्तारित होगी.उपरोक्त विचारों को ध्यान में रखकर यदि कोई रुकावट प्रतीत न होती हो तो परमेश्वर के भय में अपने कार्य में अग्रसर हो जाइए.ककेप 171.5

    जीवन साथी का चुनाव ऐसा हो जिसमें माता-पिता तथा बालकों के लिए शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक कुशल की सुरक्षा हो.यह चुनाव ऐसा हो जिसके द्वारा माता-पिता तथा बालक अपने साथी मानव समाज के लिए आशीष तथा परमेश्वर के आदर के कारण ठहर सकें.ककेप 171.6