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कलीसिया के लिए परामर्श

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    अज्ञानतावश जोड़ा हुआ सम्बंध तोड़ना ही उत्तम है.

    विवाह-सम्बंध मसीह ही में जोड़ना सुरक्षित हैं.मानवी प्रेम को दिव्य प्रेम की ही प्रेरणा आवश्यक है मसीह के शासन के अन्तर्गत ही गम्भीर सत्य एवं स्वार्थहीन प्रेम सम्भव है.यदि भावी सम्बंधी के चरित्र दी पर पूर्णत: विचार किये बिना मंगनी हो गई है तो यह न सोचिए कि इस विधि के कारण आप ऐसे व्यक्ति से विवाह करने के लिए बाध्य हैं जिससे न आप प्रेम कर सकेंगे न जिसका आदर.पहिले तो आप बड़े सोच विचार के साथ मंगनी करिए पर विवाह के उपरान्त यदि आप के सम्बंध-विच्छेद का भय है तो यह विवाह के पहले ही हो जाना अत्युत्तम है.ककेप 181.2

    कदाचित् आप कहें कि ‘’आप वचन दे चुके हैं, क्या उसे तोड़ना उचित है?’‘ मेरा उत्तर यही है,यदि आप ने बाइबल के विपरीत वचन दे दिया है तो उसे अविलम्ब तोड़कर दीनता से परमेश्वर के समक्ष इस प्रकार उतावली में वाचा बाँधने की मूढ़ता अड़गीकार करके पश्चाताप कीजिए.अपने वचन के कारण प्रभु का अनादर करने की अपेक्षा यह अति उत्तम है कि परमेश्वर के भय में ऐसी प्रतिज्ञा तोड़ी जाए.ककेप 181.3

    सौजन्यता, सरलता,विश्वासयोग्यता आदि ऐसे गुण जिनसे परमेश्वर की महिमा होती है आपके वैवाहिक सम्बंध की ओर अग्रसर होने वाले प्रत्येक पग को सुशोभित करें.इस कालीन जीवन एवं आगामी सांसारिक जीवन दोनों पर विवाह का प्रभाव पड़ता है. एक विश्वस्त मसीही ऐसा कोई कदम न उठाएगा जो परमेश्वर की इच्छा के प्रतिकूल हो.ककेप 181.4

    हृदय तो मानवी प्रेम की लालसा करता है. यह प्रेम सिद्ध स्थिरता और पवित्रता से शून्य है.यह इतना मूल्यवान भी नहीं है कि मसीह के प्रेम का स्थान इसे दिया जावे.पत्नी अपने मुक्तिदाता हो में ज्ञान सामर्थ्य और वह अनुग्रह पा सकती है जो उसके जीवन को दुःख एवं चिंताओं से मुक्त करके अपने दायित्व को सम्भालने की क्षमता प्रदान कर सके.वह उसी को अपना पथदर्शक एवं बल समझे.स्त्री अपने आप को किसी मित्र को समर्पित करने की उपेक्षा पहिले मसीह को सौंप दे.इस समर्पण में बांधक होने वाले अन्य सम्बंध का पूर्ण परित्याग करे,उनके लिए जो वास्तविक आनन्द की खोजी है आवश्यक है कि उनके प्रत्येक कार्य तथा धन पर परमेश्वर की आशीष हो.प्रिय बहिन,यदि आप ऐसा घर बसाना चाहें कि जहां से प्रकाश कभी ओझल न हो तो ऐसे जन से सम्बंध न जोड़ना जो परमेश्वर का बैरी हो.ककेप 181.5