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कलीसिया के लिए परामर्श

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    अध्याय 30 - आनंदमय सफल सांझेदारी

    यह परमेश्वर ने ठहराया है कि विवाह-सम्बन्ध में प्रेवश करने वालों के बीच में सिद्ध प्रेम और अनुरुपता हो.दूल्हा और दुल्हन स्वर्गीय मण्डल के समक्ष यह वाचा बांधे कि परमेश्वर के ठहराए अनुसार वे एक दूसरे से प्रेम करेंगे, पत्नी पति का आदर मान करे और पति पत्नी से प्रेम दुलार करे. ककेप 187.1

    वैवाहिक जीवन के प्रारम्भ ही में पुरुष और स्त्री को चाहिए कि अपने आप को नए रुप में परमेश्वर के लिए समर्पित करें. विवाहित जीवन में पति-पत्नी कितनी ही बुद्धिमानी के साथ प्रविष्ट क्यों न हो बहुत कम ऐसे जोड़े होंगे जो विवाह-विधि के समय ही वे पूर्व रुपये मिल जाते हैं.विवाह का असल मेल वर्षों बाद में होता है.ककेप 187.2

    नव विवाहित दम्पति जब चिन्ता और व्याकुलता से लदे हुए जीवन का सामना करते हैं तो विवाहित जीवन के वे अमोद-प्रमोद जिनको बहुधा कल्पना की जाती थी लोप हो जाते हैं.पति -पत्नी एक दूसरे के चरित्र से ऐसा परिचित हो जाते हैं जिनका जानना उनके पिछले संसर्ग में अति सूक्ष्म काल है.ककेप 187.3

    जो सही मार्ग वे इस समय अपना लेते हैं उसी पर उनके समस्त भविष्य जीवन का आनन्द एवं उसकी उपयोगिता निर्भर रहती है.उनके जीवन में बहुधा ऐसी कमजोरियों एवनं त्रुटियां दृष्टिगोचर होती हैं जिनका पहिले संदेह से भी न किया गया था, पर जब दोनों हृदय प्रेम पूरित हों तो उन के समक्ष वे सद्गुण भी प्रस्तुत होंगे जिनका पहिले उन्हें आभास न हुआ था.हर एक को यही प्रयत्न हो कि त्रुटियों के बदले सद्गुण खोजे.बहुधा जब हम किसी अन्य के जीवन का अवलोकन करते हैं तो उस व्यक्ति के वे गुण व अवगुण हमें दिखते हैं जिन का पूर्व निर्णय हम ने अपने वातावरण एवं दृष्टिकोण से प्रभावित होकर कर लिया है.ककेप 187.4

    बहुत से ऐसे जो प्रेम प्रकट करने के कार्य को कमजोरी समझ कर अपने को पृथक रखते हैं जो दूसरों के लिए बाधक सिद्ध होता है.यह मनोवृति सहानुभूति के प्रवाह को रोकती है.ज्यों-ज्यों सामाजिक उदार मनोवेगों पर अंकुश लगाया जाता है वे मुझ जाते हैं और हृदय में ठंड़ापन आ जाता है.हम इस भूल से सावधान रहें.प्रकटीकरण के बिना प्रेम का अस्तित्व दुर्लभ है.दया एवं सहानुभूति के प्रभाव द्वारा अपने साथी के हृदय को प्रेम-भूख से पीड़ित न होने दीजिए.ककेप 187.5

    किसी के प्रेम को बल पूर्वक छीनने के बदले यही भला है कि स्वयं दिया जाय.अपने सर्वोत्तम गुणों को उन्नतिशील बनाते हुए दूसरों के सद्गुणों की सराहना करने में तत्पर रहिए,प्रशंसा का बोध प्रोत्साहन एवं संतोष की वृद्धि के लिए अचूक औषध है.ककेप 187.6

    जो जब श्रेष्ठ सद्गुणों के लिए प्रयास कर रही है,सहानुभूति और आदर उस प्रोत्साहन होते हैं और स्वयं प्रेम वृद्धि पाकर उसे उच्च लक्ष्य की ओर ले जाता है.ककेप 188.1

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