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कलीसिया के लिए परामर्श

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    दो जीवनों का संयोग

    यद्यपि कठिनाई,व्याकुलता और निराशा का सामना करना पड़े तोभी पति या पत्नी को इस विचार को कदापि अपने मन में नहीं आने देना चाहिए कि यह शुभ विवाह नहीं हुआ,इसमें भूल हो गई.अपने साथी के लिए जो भी सम्भव हो करने का संकल्प कीजिए.प्रारम्भ में जो भावप्रदर्शन था उसे बनाये रखिए. जीवन संग्राम के प्रत्येक पहलू में एक दूसरे को प्रोत्साहन दीजिए.परस्पर आनन्द को उन्नतिशील बनाने का प्रयत्न कीजिए. परस्पर प्रेम और सहनशीलता को यथा स्थान दीजिए.ऐसा ही करने से विवाह प्रेम का अन्त होने के बदले प्रेमारम्भ ठहरेगा.सच्ची मित्रता एवं पवित्र प्रेम का अनुभव जो हृदयों को गठित करता है स्वर्गीय आनन्द का रसास्वादन करने में सार्थक होगा.ककेप 188.2

    धैय शील व्यवहार द्वारा धैय को उन्नतिशील बनाइए.दयालुता एवं सहनशीलता के द्वारा हृदय में पवित्र प्रेम सजग रहेगा.जिसके फलस्वरुप उन गुणों का प्रदुर्भाव होगा जिसका समर्थन परमेश्वर द्वारा होग.ककेप 188.3

    जब पति-पत्नी में अनबन हो तो शैतान ऐसे अवसरों से लाभ उठाने के लिए सतर्क रहता है.वह उन पति-पत्नी के उन अनुचित स्वाभाविक दुर्गुणों को उभार कर उस गंम्भीर वाचा को तोड़ने के लिए जो उन्होंने परमेश्वर के समक्ष बाँधा था उन्हें प्रोत्साहित करता है.विवाह वाचा में उन्होंने एक होने का वचन दिया था.पत्नी ने पति को प्रेम और आज्ञापालन करने और पति ने पत्नी को प्रेम दुलार करने का वचन दिया था.यदि परमेश्वर की व्यवस्था का पालन किया जाए तो शैतान कुटुम्ब में प्रवेश न हो सकेगा,न स्वार्थमय रुचियों को प्रोत्साहन मिलेगा न प्रेम परित्याग का अवसर होगा.ककेप 188.4

    यह अवसर जब आप के समक्ष दो व्यक्ति आत्माओं के बचाने की सेवा निमित्त अपनी अभिरुचि,सदस्यों एवं परिश्रम का विलीनीकरण कर रहे हैं, इतिहास का एक अति प्रमुख समय है.विवाह सम्बन्ध में एक विलीनीकरण कर रहे हैं, इतिहास का एक अति प्रमुख समय है.विवाह सम्बन्ध में महत्वपूर्ण कदम उठाया जाता है,वह है दो जीवन को संगठन.यह परमेश्वरीय इच्छा के अनुकूल है कि पुरुष और स्त्री उसके कार्य में सहयोग देकर उसे पवित्रता एवं सिद्धता में आगे बढ़ावें इसे वे कर सकतेककेप 188.5

    जहां यह संगठन हुआ हो वहां परमेश्वर कीआशीष दिन के प्रकाश की नाई निरन्तर निवास करेगी क्योंकि यह परमेश्वर की आशीष दिन के प्रकाश की नाई निरन्तर निवास करेगी क्योंकि यह परमेश्वर की इच्छा है कि पुरुष स्त्री सर्वदा ‘पवित्र बन्धन में गठित रहें.यह संगठन प्रभु यीशु के आत्मा के निरन्तर निरीक्षण में उसी के अधीन सफल होता है.ककेप 188.6

    ईश्वरीय इच्छा है कि कुटुम्ब संसार में सबसे बढ़कर शान्ति का स्थान हो,यह स्वर्गीय घर का प्रतीक हैं.घर में वैवाहिक उत्तरदायित्व की पूर्ति करते हुए अपनी और मसीह यीशु की अभिरुचि का समावेश प्रभु के आश्वासन के लिए उसी को भुजा का सहारा,आदि सद्गुणों द्वारा पुरुष स्त्री का सम्बन्ध आनन्दमय होता है.परमेश्वर के दूत इसी की सराहना करते हैं.ककेप 188.7

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