Loading...
Larger font
Smaller font
Copy
Print
Contents

कलीसिया के लिए परामर्श

 - Contents
  • Results
  • Related
  • Featured
No results found for: "".
  • Weighted Relevancy
  • Content Sequence
  • Relevancy
  • Earliest First
  • Latest First

    विवाह वैधानिक एवं पवित्र है

    खाने-पीने शादी विवाह करने में स्वयं कोई पाप नहीं है.नूह के दिनों में विवाह करना नियमानुकूल था.आज भी विवाह उचित है.यदि वह वस्तु जो नियमानुकूल है उसमें पाप को कोई अवसर न दिया जाकर उसका सदुपयोग किया जावे.परन्तु नूह के समय में लोग परमेश्वर की अगुवाई तथा परामर्श प्राप्त किये बिना विवाह करने लगे थेककेप 191.2

    वास्तव में जीवन के समस्त सम्बन्ध अस्थायी हैं,इस कारण उन का हमारे वचन एवं कार्य पर गुणकारी प्रभाव पड़ना चाहिए.उचित प्रयोग किए जाने पर जो प्रेम वैधानिक एवं पवित्र था नूह के समय में उसी का बहुल्यता व अत्यंतता के कारण विवाह परमेश्वर की दृष्टि में पाप ठहरा.इस युग में भी संसार में ऐसे अनेकों व्यक्ति मिलेंगे जो विवाह के विचारों एवं विवाह सम्बन्धों में लीन होकर अपनी आत्माओं का सर्वनाश कर रहे हैं.ककेप 191.3

    वैवाहिक सम्बन्ध पवित्र है,प्राचीन काल में कुप्रथाओं का समावेश होने से विवाह दूषित हो गया था. इस मर्यादाहीन युग में भी इसमें कई दुराचारों का समिश्रण होकर दुरुपयोग किया जा रहा है जिसके कारण यह अपराध बनकर अन्तिम दिनों का उपमा बन गया है.यदि विवाह का पवित्र अभिप्राय और महत्व समझ लिया जाय तो वह परमेश्वर का ग्रहणयोग्य ठहरेगा जिसका फल दोनों दलों के लिए आनन्द और परमेश्वर की महिमा का कारण होगा.ककेप 191.4