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कलीसिया के लिए परामर्श

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    आत्मा त्याग एवं संयम धारण कीजिए

    क्या ही भला होता कि मैं लोगों को समझा सकती कि अपनी मानसिक एवं शारीरिक अंगप्रत्यंगों को अपने सृजनहार परमेश्वर की सिद्ध सेवा निमित्त सर्व श्रेष्ठ हालत में रखें.मसीही पत्नी अपने वचन एवं कर्म से अपने पति की पाश्विक लालसा को न उभारे.अनेकों के पास तो इस ओर अपनी शक्ति को व्यय करने की क्षमता ही नहीं है.अपनी युवावस्था में अपने मस्तिष्तक को दुर्बल बना दिए है,अपनी (भावुकता)पाश्विक कामना पूर्ति के द्वारा शरीर को जोर्व-शीर्ण कर दिए है.उनके वैवाहिक जीवन में स्वयं आत्मा त्याग और संयम सांकेतिक शब्द होने चाहिए.ककेप 192.2

    अपनी आत्मा को शुद्ध और शरीर को स्वास्थ रखना हमारे लिए परमेश्वर के प्रति एक गम्भीर कर्तव्य है जिससे हम मानव जाति को लाभ पहुंचाते हुए परमेश्वर की सिद्ध सेवा कर सकें.प्रेरित ने चेतावनी स्वरुप निम्नलिखित शब्द कहे हैं, “इस लिए पाप तुम्हारे मरणहार शरीर में राज्य न करे कि तुम उसकी लालसाओं के अधीन रहीं.’’आगे वह हमसे विनती करता है’’प्रत्येक जन जो स्वामी बनना चाहता है सब बातों में संयमी हो.’’वे जो मसीही कहलाने का दावा करते हैं उन से वह कहता है’‘ अपने शरीरों को जीवित और पवित्र, और परमेश्वर को भावना हुआ बलिदान करके चढ़ाओं.’‘ ‘’मैं अपनी देह को मारता कूटता और वश में लाता हूँ; ऐसा न हो कि औरों का प्रचार करके मैं आप हो किसी रीति से निकम्मा ठहरु’‘ककेप 192.3

    पवित्र प्रेम के द्वारा मनुष्य अपनी पत्नी को लालसापूर्ति का साधना बनाने के लिए प्रेरित नहीं करता.पाश्विक कामुकता ही मनुष्य को कामातुर बनाती है.ककेप 192.4

    प्रेरित द्वारा दर्शाए हुए आदर्श प्रेम का व्यावहारिक प्रदर्शन कितने कम लोग करते हैं, उसने कहा,’’जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिए दे दिया कि उसे शुद्ध करके (अशुद्ध करके नहीं)’‘ पवित्र बनाए कि उसमें न कलंक न झुर्रा हो.वैवाहिक सम्बन्ध में प्रेम का यही गुण परमेश्वर के समक्ष पवित्र समझा जाता है.प्रेम एक पवित्र और शुद्ध सिद्धांत है परन्तु लालसामय कामुकता पर न हो अंकुश लगाया जा सकता है न तर्क उसे वश में कर सकता है.वह कारण एवं परिणाम सम्बन्ध में तर्क उसे वश में कर सकता है.वह कारण एवं परिणाम सम्बन्ध में तर्क नहीं करेगा.वह परिणाम की ओर अंधा रहेगा.ककेप 192.5