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कलीसिया के लिए परामर्श

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    बालक के शासन हेतु स्वयं शासन की आवश्यकता

    बालक के शासन में अनेकों समय माता स्थिर परिपकव इच्छा शक्ति को भेट बालक की शासनहीन इच्छा से होती है.ऐसे समय माता को सावधानी एवं बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए.बुद्धिहीन व्यवस्था निष्ठुर दबाव से बच्चे की भारी हानि होती है.जहां तक हो सके इस सूक्ष्म समय को नहीं आने देना चाहिए.इस से माता तथा बालक दोनों की हानि होती है.यदि ऐसा अवसर आ भी जावे तो बालक की इच्छा माता को इच्छा के अधीन को जानो चाहिए.ककेप 199.3

    माता अपने आप पर पूरा प्रतिबन्ध रखे जिससे बालक की भावनाओं को आघात पहुंचाने का अवसर न हो.डांट-डपटकर आज्ञा न चलाए.नम्र एवं कोमल स्वर बनाए रखना लाभकारी होगी.बालक के साथ उसका व्यवहार ऐसा हो जिससे वह मसीह की समीप में आ सके.वह सदा स्मरण रखे कि परमेश्वर निरन्तर उस का प्रेमी,सहायक,एवं सामर्थ है.ककेप 199.4

    यदि माता बुद्धिमान मसीही है तो अपने बालक पर दबाव डालकर वश में न करना चाहेगी.उसकी सदैव यही प्रार्थना होगी कि दुष्ट उसके बालक पर विजयी न हो. ज्यों-ज्यों वह प्रार्थना करे उसे आत्मिक जीवन के नवीनीकरण का बोध होगा.जो शक्ति उसके जीवन में कार्यशील है उसको वह अपने बालक के जीवन में कार्य करते देखेगी.वही कोमल औरआज्ञाकारी बनेगा.लड़ाई जीत ली गई.माता का धीरज एवं दयालुता, बुद्धिपूर्ण शब्द सफल हुए. जिस प्रकार वर्षा के उपरान्त धूप होती है वैसे ही तूफान के बाद शान्ति .और वे स्वर्गदूत जो सब कुछ देख रहे हैं आनन्द के गीत गाने लगते हैं.ककेप 199.5

    पति-पत्नी के जीवन काल में सूक्ष्म समय आते हैं,यदि वे परमेश्वर के आत्मा के वश में न हों तो जिस अनाज्ञाकारी स्वभाव का प्रदर्शन करता है वही माता-पिता में भी पाया जायगा.दो निष्ठुर इच्छाओं के संघर्ष का परिणाम वही होता जो चकमक पत्थरों को रगड़का होता हैं.ककेप 200.1