Loading...
Larger font
Smaller font
Copy
Print
Contents

कलीसिया के लिए परामर्श

 - Contents
  • Results
  • Related
  • Featured
No results found for: "".
  • Weighted Relevancy
  • Content Sequence
  • Relevancy
  • Earliest First
  • Latest First

    शैतान बिना हमारी सहमति के मस्तिष्क में प्रवेश नहीं कर सकता .

    ईश्वर ने प्रबंध किया है कि हम अपनी शक्ति के बाहर परीक्षा में न पड़े परन्तु परीक्षा के साथ वह निकास भी करेगा. यदि हम पूर्णतया ईश्वर के लिए जीवन व्यतीत करें तो हम अपने मस्तिष्क को व्यर्थ अपस्वार्थी कल्पनाओं से दूषित होने न देंगे.ककेप 225.4

    यदि कोई ऐसा साधन है जिसके द्वारा शैतान हमारे मस्तिष्क के प्रवेश कर सकता तो वह उसमें अपने बीज बोयेगा जब तक वह पूरी से अच्छी फसल न लाये.किसी भी प्रकार शैतान हमारे विचार,शब्द और कार्यों पर अधिकार नहीं कर सकता जब तक हम स्वयं उसको निमंत्रित कर स्वेच्छा से द्वार न खोल दें. तब वह भीतर आयेगा और हृदय में से अच्छ बीज निकाल कर सत्य को निरर्थक बना देगा.ककेप 225.5

    यह हमारे लिये सुरक्षित नहीं यदि हम शैतान के सुझाव के अनुसार उसके लाभों पर विचार करने लगे. पाप का मतलब ही अनादर और अनाचार है जो हृदय में घर कर जाते हैं. परन्तु यह हमें अन्धा बनाकर और धोखा देकर हमको झूठी बातों में फंसा देंगे.ककेप 225.6

    यदि हम शैतान की भूमि में प्रवेश करें तो फिर उसकी शक्ति से बचने की कोई आशा नहीं है जहां तक सारे सम्बन्ध हैं हमें प्रत्येक ऐसे द्वार बन्द रखना चाहिए जिनसे परीक्षक हम तक पहुंच सकता है.ककेप 225.7

    प्रत्येक मसीही को निरन्तर सावधान रहना चाहिए और अपने आत्मा के प्रत्येक द्वार की चौकसी करनी चाहिए कि शैतान की पहुंच न हो सके,उसे ईश्वरीय सहायता के लिए प्रार्थना करना चाहिए.तथा साथ ही साथ पाप की ओरझुकाव का तुरन्त विरोध भी करना चाहिए साहस, विश्वास अथवा परिश्रम के द्वारा ही वह जयवन्त हो सकता है.परन्तु स्मरण रहे कि विजय प्राप्त करने के लिए मसीह उसमें और उसे मसीह में बने रहना चाहिए.ककेप 225.8

    प्रत्येक काम इस प्रकार किया जावे जिसके द्वारा हम और बच्चे उस स्थान पर पाए जाएँ जहाँ उस अधर्म का नाम और निशान नहों जो संसार में प्रचालित है.हमें सदैव अपनी दृष्टि द्वारों और कर्ण द्वारों की चौकसी करनी चाहिए कि ये भंयकर बातें हमारे मस्तिष्क में प्रवेश न कर सकें.इस बात की ताक में न रहिए कि आप करारे के पास जाए और फिर भी सुरक्षित रहें. खतरे की आशंका से दूर ही रहिए, आत्मा के हितों के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए.आप का चरित्र ही आपका धन है.इसको स्वर्णभंडार की तरह सम्भाल कर रखिए.नैतिक-पवित्रता, आत्म-गैरव,प्रतिरोध शक्ति हमेशा सावधानी से निरन्तर बढ़ाइए.सतर्कता पूर्ण आचरण से जरा भी नहीं डिगना चाहिए;अनुचित घनिष्टता तथा अविवेकपूर्ण कर्म प्रलोभन के द्वार को खोल आत्मा को खतरे में डाल सकते हैं जिससे प्रतिरोध की शक्ति का ह्यस हो जाता है ककेप 225.9