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कलीसिया के लिए परामर्श

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    आत्मिक बातों के विषय में रुचि पैदा कीजिये.

    निरंतर चौकसी और दीनता की प्रार्थना में युवकों की एकमात्र सुरक्षा है.वे अपने आपको धोखे में न रखें कि इसके बिना ही वे अच्छे मसीही रह सकते हैं.शैतान अपनी परीक्षाओं को और अपनी चालाकियों को रोशनी की आड़ में नहीं छिपाता है.जैसा उसने मसीह के साथ जंगल में किया था.वह उस समय अपनी सूरत में स्वर्गीय दूत के समान था.हमारी आत्माओं का बैरी,स्वर्गीय अतिथि के समान हमारे पास आयेगा और प्रेरित हमें अपनी रक्षा के लिए सयम और सावधानी रखने के लिए आगाह करता है.वे नौजवान जो लापरवाह और निश्चित होकर मसीही कर्तव्यों से चूकते हैं,हमेशा दुश्मन की परीक्षाओं में गिरते हैं और जयवन्त नहीं होते जैसा मसीह हुआ. ककेप 243.1

    बहुत से लोग प्रभु की ओर दावा तो करते हैं परन्तु हैं नहीं, क्योंकि उनके कार्य शैतान के पक्ष में हैं.किस प्रकार जानेंगे कि हम किस की ओर हैं?हमारे हृदय का स्वामी कौन है?हमारे विचार किस के प्रति हैं?किस के विषय में बातचीत करना हम प्रसन्द करते हैं? कौन है जिसके लिए हमारे दिल में प्रेम है तथा हम किसके लिए परिश्रम करते हैं?यदि हम प्रभु की ओर हैं तब हमारे विचार उसी पर होंगे और उसके लिए ही होंगे.इस संसार से हमारी कोई मित्रता नहीं होगी.हमारा पूरा ध्यान उस पर और उसके लिए ही होगा.हम उसका अनुकरण करने का प्रयत्न करेंगे,उसका आत्मा हम में होगी,उसकी इच्छा पर चलकर हर बात में उसे प्रसन्न करते रहेंगे?ककेप 243.2

    सच्ची शिक्षा यही है कि हम अपनी मानसिक शक्ति का प्रयोग इस प्रकार करें कि उसका अच्छा परिणाम हो.किस लिए धर्म को और हमारा मन कम आकर्षित होता है, जब कि संसार की ओर बुद्धिशक्ति सभी लगती है.इसका कारण यही है कि हमारी सारी शारीरिक शक्ति का पूर्ण झुकाव उसी और है.हम ने अपने आप को सांसारिक कार्यों में व्यस्त रखना सीखा है अत:हमारा ध्यान उस ओर आसानी से लगता है.इसी लिए मसीहियों को धार्मिक जीवन कठिन और सांसारिक जीवन सहज लगता है.हमने अपने ध्यान को इस ओर झुकाया है.धार्मिक जीवन के लिए ईश्वर के वचन की सत्यता की ओर लगाव होना चाहिए तथा व्यावहारिक जीवन में वह दिखाई पड़े.ककेप 243.3

    धार्मिक विचारों का ज्ञान और भक्ति की भावनायें पैदा करना यह शिक्षा का अंग नहीं बनाया जाता है इसका प्रभाव और नियंत्रण हमारे पूर्ण जीवन पर होना चाहिए.ठीक कार्य करने की आदत का अभाव है. अनुकूल परिस्थितियों में कार्य करना तो सहज है परन्तु स्वाभाविक रीति से ईश्वरीय बातों पर चलना यह मस्तिष्क को चलाने वाला सिद्धांत नहीं हैं.ककेप 243.4

    पवित्र प्रेम के लिए मस्तिष्क को शिक्षित और अनुशासित बनाना चाहिये.आत्मिक बातों के प्रति प्रेम कीआदत डालिए,हाँ यदि आप सत्य के प्रेम की पहिचान में बढ़ना चाहते हैं.भलाई करने की इच्छा, और सच्ची पवित्रता तो ठीक है परन्तु आप यहीं ठहर जाये तो उसका कोई मूल्य नहीं रह जाता.अच्छे इरादे तो ठीक हैं परन्तु उनका कोई मूल्य नहीं यदि उन पर दृढ़ता पूर्वक चलने का साहस नहीं किया जाये.बहुत से लोग मसीही होने की इच्छा और आशा रखते हुये भी नाश हो जाएँगे क्योंकि उन्होंने कभी इसका भरसक प्रयत्न नहीं किया.वे तराजू में तोले तो गये परन्तु कम निकले.इच्छा को सही और चलाना चाहिये.मैं पूर्ण रीति से हुंगा.मैं पूर्ण प्रेम की लम्बाई, चौड़ाई और गहराई जानूंगा.प्रभु के मधुर शब्दों को सुनिये,’ धन्य हैं वे जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं क्योंकि वे तृप्त किए जाएंगे.’’(मत्ती 5:6) धर्म की भूखी और प्यासी आत्माओं को संतुष्ट करने के लिए मसीह ने पर्याप्त साधन तैयार किए हैं.ककेप 243.5