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कलीसिया के लिए परामर्श

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    बालकों को अज्ञानता में बढ़ने देना पाप है

    अनेकों माता पिता अपने बच्चों के आत्मिक तथा स्कूल सम्बन्धी शिक्षा से निश्चित रहते है.इनसे निश्चित नहीं रहना चाहिए.बालकों के मन कार्यशील रहते हैं यदि उनके मन शारीरिक परिश्रम या अध्ययन कार्य में न लगाए जावे तो वे दुष्ट प्रभाव के वंश में आ जायेंगे.अपने बालकों को अज्ञानताा में बढ़ने देना पाप हैं.वे उन्हें उपयोगी तथा मनोरजक पुस्तकें दें.शारीरिक श्रम का महत्व बतलाकर श्रम के लिए अवकाश निकालें.पढ़ने का भी समय रखा जावे.माता-पिता बालकों के मानसिक विकास का विशेष ध्यान रखें कि उनकी मानसिक इन्द्रियों को बढ़ावें.यदि मन को निश्चल व स्वतंत्र छोड़ दिया जावें तो वह निम्न व गन्दी बातों की ओर प्रवृत होगा.शैतान को अवसर मिलेगा कि सुस्त मनों को काम में लावे. ककेप 251.4

    माता का कार्य शिशु से आरम्भ होता है.वह बालक की इच्छा व स्वभाव को वश में रखकर उसे आज्ञाकारी बनना सिखावे.ज्यों ज्यों बालक बढ़े हाथ ढोला न पड़े.समय निकाल कर माता बालक से बातचीत करके उसकी त्रुटियां सुधार कर धीरज सँहित उचित मार्ग में उसी अगुवाई करें.मसीही माता पिताओं को जानना चाहिए कि वे बालकों का शिक्षण इस प्रकार कर रहे हैं कि वे परमेश्वर की सन्तानककेप 251.5

    बालकपन में जो शिक्षा दी जावे उसी पर बालक का धार्मिक अनुभव निर्भर रहता है.कठिन हो जावेगा.अनुशासनीय इच्छा को परमेश्वर के परिणाम के अनुसार ढालना कैसा कठिन है,क्या भारी संग्राम है!इस महत्वपूर्ण कार्य के प्रति उदासीनता दर्शाने हारे माता-पिता बेचारे बालकों के विरुद्ध पाप करते हुए ईश्वर के विरुद्ध पाप करते हैं,ककेप 251.6

    माता-पिताओं परमेश्वर ने आपको बालकों के प्रशिक्षण का जो उत्तरदायित्व सौंपा है यदि आप उसमें असफल हों तो इस के परिणाम का उत्तरदायित्व आप ही पर है.इनके परिणाम आपकी सन्तान ही में सीमित न होंगे.जिस प्रकार यदि एक कंटीली झाड़ी को खेत में रहने देने से कुछ दिनों में खेत में उसकी फसल पैदा हो जावेगी.इसी प्रकार पाप के प्रति आपकी उदासीनता के फलस्वरुप जो भी उसकी सीमा में आएं उनका निश्चय विनाश होगा.ककेप 252.1

    अविश्वासी माता-पिता पर परमेश्वर का श्राप होगा.वे ऐसे कांटे ही नहीं रोप रहें हैं जो उनको यहां फंसा लें पर वे न्यायआसन के समक्ष अपने अविश्वास को अपने सामने देखेंगे.न्याय के दिन कई बालक उठकर अपने माता-पिता पर यह दोष लगावेंगे कि उनके विनाश का दोष उन पर है क्योंकि उन्होंने उनके कार्यों पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया था. अन्धे प्रेम और झूठी सहानुभूति के वश में होकर माता-पिता अपने बच्चों के अपराधों को क्षमा करके उनका सुधार नहीं करते हैं जिसके परिणाम स्वरूप बालकों का नाश होता है और उनके लोह का पलटा अविश्वासी माता-पिता से लिया जावेगा,ककेप 252.2

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