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कलीसिया के लिए परामर्श

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    मानसिक आवश्यकताओं की अपेक्षा मत कीजिए

    मुझे बतलाया गया है कि परमेश्वर का भय मानने वाले माता-पिता अपने बच्चों पर अंकुश लगाते हैं. उन्हें अपने संतान की मनोवृतियों तथा प्रवृतियों को पहिचान कर उनको आवश्यकाओं की पूर्ति करनी चाहिए.अनेकों माता-पिता अपने संतान की शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं.उनको रूग्णावस्था में वे विनम्र भाव से उनकी सेवा संभाल करके यह समझते हैं कि उनका कर्तव्य पूरा हो गया.यहां वे भूल करते हैं.यह तो उनके कार्य का आरम्भ मात्रा है.उनकी मानसिक आवश्यकताओं का भी ध्यान रखना चाहिए,घायल मन को अच्छा होने के लिए उपयुक्त उपचार की आवश्यकता है.ककेप 254.3

    जिस प्रकार सियानों के समक्ष परीक्षाएं अपना विकराल रुप लेकर आती हैं.उसी प्रकार बालकों के समक्ष भी ऐसी परीक्षाएं आती हैं जिनका सहना उनके लिए कठिन है.बहुध माता-पिता को इसका कम ध्यान रहता है.बहुधा उनके मन व्याकुल रहते हैं.वे भ्रमात्मक दृष्टिकोण तथा मनोवेग के उत्तरगत परिश्रम करते हैं.शैतान उनको घूसा लगाता है और वे उसकी परीक्षाओं में फंस जाते हैं. वे कभी-कभी चिड़चिड़ेपन का अन्यायपूर्ण भाव दर्शाते हैं. बेचारे बच्चे भी इसी आत्मा में सम्भागी होते हैं और मातापिता उनकी सहायता नहीं करते.कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि सब कुछ बिगड़ गया.उनके चारों और चिड़चिड़ापन है.उनके लिए दयनीय और दुख का समय है.माता-पिता अपनी संन्तान पर दोष लगाकर कहते हैं कि वे अनाज्ञाकारी तथा उदंड हैं.वे संसार में सब से खराब हैं.इसके लिए तो माता पिता ही दोषी हैं.ककेप 254.4

    कतिपय माता-पिता आत्म नियंत्रण के अभाव में कई तूफान उठाते हैं, दयामय शब्दों में बच्चों से यह था वह काम करने के बदले वे धमकियां देकर आज्ञा देते हैं. उनके ओठों पर गुण दोष या झिड़की बनी रहती हैं जिसके योग्य वे बालक नहीं हैं. पिता माताओं आप की संतान के प्रति यह व्यवहार उनको आज्ञाओं और आननद को नाश कर देता है,वे आपकी आज्ञा पालन तो कर रहे हैं. प्रेम से नहीं पर इस लिए कि इसके विपरीत वे कर नहीं सकते.इस बात में उनका मन नहीं है आनन्द के बदल उसमें रुखापन है.इसका परिणाम यह होता है कि वे आप के आदेशों का पालन नहीं करते.आप और भी चिढ़ जाते हैं.जो बच्चों के हित में और भी बुरा है. दोषारोपण को बार-बार दुहराते हुए उनके सारे दोष क्रम से उनके सामने प्रदर्शित किये जाते हैं.ककेप 255.1

    आप के बच्चे आप को भृकुटि चढ़ाये हुए न देखें.यदि बालक परीक्षा में गिरकर अपनी भूल पर पश्चाताप कर लें तो उनको ऐसे ही उदारचित्त होकर क्षमा कीजिए जिस प्रकार आप अपने स्वर्गीय पिता से क्षमा किये जाने की आशा करते हैं.दयालुभाव से उन्हें शिक्षा दीजिए.और उन्हें अपने हृदय पाश में आप से बालकों को पृथक करने के हेतु उनके चारों ओर प्रभाव पर प्रभाव डाले जाएंगे.परन्तु आपको उन सबका प्रतिरोध करना होगा.जिसकी प्रतिक्रिया के लिए आप को तत्पर रहना चाहिए.उनको शिक्षा दीजिए कि वे आप पर विश्वास करें.उनके आनन्द या परीक्षा का समाचार प्राप्त करने के लिए उन्हें उकसाइए.ऐसा करने से आप उनके अनुभवहीन पावों को इस फन्दों से बचाइएगा जो शैतान ने उनके लिए तैयार किए हैं. अपने बाल्यकाल को भूल कर अपने बालकों के साथ सदैव निष्ठुर व्यवहारहीन कीजिए यह जानिए कि वे बालक ही हैं.उन्हें एकदम सिद्ध पुरुष या स्त्रियों समान व्यवहार करने वालों के समान बनाने का प्रयत्न कीजिए.ऐसा करने से आप अपने लिए उनके हृदय का प्रवेश द्वार बन्द कराइएगा और वे अपना हृदय हानिकारक बातों के लिए खोलेंगे दूसरे आकर उनके हृदय को दूषित कर देंगे.ककेप 255.2