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कलीसिया के लिए परामर्श

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    अध्यापक की योग्तायें

    अपने स्कूल के लिए एक मजबूत प्रिंसिपल तलाश कीजिए,ऐसा पुरुष जिसकी शारीरिक शक्ति अनुशासन के कार्य को सुचारू रूप से चलाने में सहायक होगी, ऐसी पुरुष हो जो विद्यार्थियों को नोति नियम,सफाई तथा परिश्रम की आदतें सिखलाने की योग्यता रखती हो.जो कुछ आप करें उसको भलीभांति कीजिए यदि आप साधारण शाखाओं में विश्वस्त हैं तो आपके बहुत से विद्यार्थी सीधे कैन्वेसर तथा उपदेशक के काम में जा सकते हैं.हमको यह नहीं सोचना चाहिये कि सारे कर्मचारियों को उच्चकोटि की शिक्षा लेनी अनिवार्य है.ककेप 264.3

    अध्यापकों के चुनाव में हर प्रकार की सावधानी बरतनी चाहिए, जानना चाहिए कि यह इतना गम्भीर मामला है जितना मंडली के अध्यक्ष के चुनाव का मामला.चतुर लोगों को जो चरित्र को भांप सकते है चुनाव करना चाहिए क्योंकि योग्य व्यक्तियों की आवश्यकता है जो युवकों के मस्तिष्क को शिक्षा प्रदान कर सकें तथा सांचे में ढाल सकें और उन विभिन्न को सफलता से चला सकें जिसको हमारी मंडली के स्कूलों में अध्यापकगण चला रहे हैं.बालकों के ऊपर युवा अनुभवहीन अध्यापकों को जिनमें शासन करने की योग्यता नहीं है न लगाइये क्योंकि उनकी कोशिशों से गड़बड़ उत्पन्न होगी.ककेप 264.4

    कोई अध्यापक नियुक्त नहीं करना चाहिए जब तक जांच परीक्षा से सिद्ध न कर लिया गया है कि वह परमेश्वर से प्रेम रखता और उसको अप्रसन्न करने से डरता है.यदि अध्यापकों को परमेश्वर के बारे में शिक्षा दी गई,यदि उनके पाठ प्रतिदिन मसीह के स्कूल में सीखें जाते हैं तो वे मसीह के ढंग पर काम करेंगे. वे मसीह के संग बालकों को जीतेंगे और उन्हें उसकी ओर खीचेंगे, क्योंकि प्रत्येक बालक और युवक-युवती बहुमूल्य हैं. ककेप 264.5

    अध्यापक की आदतों तथा सिद्धांतों को उसकी साहित्यिक योग्यताओं से अधिक महत्व देना चाहिए.यथोचित प्रभाव डालने के लिए उसको अपने स्वयं के ऊपर पूर्ण नियंत्रण होना जरुरी है और उसके हृदय में शिष्यों के लिए अत्यधिक प्रेम होना चाहिए जिसको उसके मुख,वचन तथा कर्मों से दृष्टिगोचर होना चाहिए. ककेप 264.6

    अध्यापक को अपना रवैया मसीही भद्रपुरुष की भांति रखना चाहिए.उसको अपने शिष्यों के समक्ष अपने को मित्र और परामर्शदाता स्वरुप दिखलाना चाहिए.यदि हमारे सब लोग, शिक्षक, धर्माध्यक्ष तथा अवैतनिक सदस्य (ले मेम्बर) अपने में मसीही शिष्टाचार की भावना का उपार्जन करें तो वे शीघ्र ही लोगों के हृदयों में प्रवेश पायेंगे;कितने ही सत्य की जांच करके उसे ग्रहण करेंगे.जब प्रत्येक अध्यापक स्वयं को भूल जायेगा और अपने शिष्यों को सफलता और समृद्धता में दिलचस्पी लेने लगेगा और महसूस करेगा कि वे भी परमेश्वर की सम्पति हैं और कि मुझे अपने प्रभाव के लिए जो उनके दिल और दिमाग व चरित्र पर पड़ा है हिसाब देना होगा तब हमारे पास एक ऐसा उत्तम स्कूल होगा जिसमें स्वर्गदूत वास करना पसंद करेंगे.ककेप 264.7

    हमारी मंडली के स्कूलों (चर्च स्कुल) में ऐसे अध्यापकों या अध्यापिकाओं की आवश्यकता है जिनके चरित्र उच्चकोटि केहों;जिन पर भरोसा किया जा सके;जिनका विश्वास ठोस है, जिनमें निपुणता और धीरज है, जो परमेश्वर के संग संग चलते हैं और बुराई की शक्ल से भागते हैं.ककेप 265.1

    छोटे बालकों के ऊपर उसको नियुक्त करना जो घमंडी तथ कठोर हृदय है क्रूरता है.इस प्रकार का शिक्षक शीघ्रता से उन्नति शील चरित्रवालों के लिए अत्यन्त हानिकारक है.यदि अध्यापक परमेश्वर के आज्ञाकारी नहीं हैं,यदि वे उन बालकों को प्यार नहीं करते जो उनकी देख रेख में है अथवा वे उनका पक्षपात करते हैं जो उनकी बड़ाई करते औरउनकी उपेक्षा करते हैं जो इतने आकर्षक नहों अथवा उनकी ओर से लापरवाह हैं जो उतावले या चिड़चिड़े हैं, तो उनको नियुक्त नही करना चाहिए;क्योंकि उनके काम का फल मसीह के लिए आत्माओं की हानि हो होगी.ककेप 265.2

    ऐसे अध्यापकों की आवश्यकता है, विशेषकर बालकों के लिए,जो शान्त,दयालु है जो उनकी ओर सहनशीलता और प्रेम प्रगट करते हैं जिनको उनकी बहुत जरुरत है.ककेप 265.3

    यदि अध्यापक प्रार्थन की आवश्यकता को महसूस नहीं करता तद्नंतर अपने हृदय को परमेश्वर के समक्ष नम्र नहीं करता तो वह शिक्षा के सार को खो बैठेगा.ककेप 265.4

    अध्यापक की शारीरिक योग्यता के महत्व की अतिशय उक्ति नहीं की जा सकती:क्योंकि जितना अच्छा उसका स्वास्थ्य होगा उतना ही सफल उसकी कोशिशें होंगौ.जब शारीरिक शक्तियां अशक्तता अथवा रोग के परिणाम स्वरूप पीड़ित रहती हैं तो मस्तिष्क न तो सोचने के लिए साफ,न कार्य करने के लिए मजबूत होगा.हृदय पर मन के द्वारा प्रभाव पड़ता है परन्तु यदि शारीकि निर्मलता के कारण मस्तिष्क अपनी शक्ति खो बैठे तो उसी हद तक ज्ञानेन्द्रियों और इच्छाओं का द्वार बंद हो जाता है और अध्यापक सत्य व असत्य के बीच फर्क करने में अयोग्य रहता है.जब कोई अस्वस्था के कारण दुखी है तो धीरजवान और प्रसन्नचित होना कठिन है,अथवा ईमानदारी तथा न्यायानुसार कार्य करना सरल कार्य नहीं है.ककेप 265.5