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कलीसिया के लिए परामर्श

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    अपने स्कूल का समर्थन करने में विद्यार्थी का दायित्व

    जो विद्यार्थी परमेश्वर से प्रेम रखते और सत्य का पालन करते हैं उनमें आत्मनियंत्रण और धार्मिक सिद्धान्त की शक्ति उस हद तक होनी चाहिये जो उन्हें प्रलोभन के बीच अडिग और मसीह के लिये कालेज में अथवा छात्रावास में या जहां कहीं वे हों स्थिर रखेगी.धर्म को आराधनालय में आवरण स्वरुप नहीं पहनना चाहिये जो अपितु धार्मिक सिद्धान्त का चित्रण सम्पूर्ण जीवन में होना चाहिये.ककेप 270.2

    जो जीवन के स्त्रोत से जल पी रहें हैं वे दुनियादार की तरह परिवर्तन और भोग विलास की तीव्र अभिलाषा प्रगट नहीं करेंगे.उनके चरित्र में वह विश्राम,शांति तथा सुख पाया जायगा जिसे उन्होंने रोजना अपनी संकटों और भारों को यीशु के चरणों में रखकर प्राप्त किया है.वे प्रदर्शन करेंगे कि कर्तव्य पालन और आज्ञापालन के पथ में संतुष्टता और आनंद प्राप्त होता है.ऐसे विद्यार्थियों को उनके सहपाठियों पर ऐसा अमिट प्रभाव पड़ेगा जो समस्त स्कूल पर विद्यामान होगा.ककेप 270.3

    जो इस विश्वस्त सेना में शामिल हैं वे हर प्रकार की अविश्वस्तता,विरोध तथा अवहेलना को निरुत्साह करके,कानून तथा नियमों की पाबन्दी करने में शिक्षकों तथा प्राध्यापकों की कोशिशों को ताजा और बलवन्त करेंगे.ककेप 270.4

    उनका प्रभाव बचानेवाला प्रभाव होगा,उनके काम परमेश्वर के महान दिन में नष्ट न होंगे परन्तु भावी जगत तक उनके संग हो लेंगे और उनके इस जीवन का प्रभाव युगानुयुग तक रहेगा.ककेप 270.5

    स्कूल में एक ही उत्साही सदाचारी विश्वसनीय युवक एक अनमोल खजाना है. स्वर्गीय दूत उनको प्रेम दृष्टि से देखते हैं.उसका प्यारा त्राणकर्ता उससे प्रेम रखता है और स्वर्गीय बही में धार्मिकता के प्रत्येक कार्य का,प्रत्येक प्रतिरोध किये गये प्रलोभन का,प्रत्येक परास्त कौ हुई बुराई का उल्लेख किया जाएगा.इस प्रकार वह आने वाले समय के लिये मजबूत नींव डाल रहा है जिससे वह अनन्त जीवन का भागी हो सके.ककेप 270.6

    मसीही जवानों के ऊपर हमारी इन संस्थाओं का सरंक्षण तथा चिरस्थायीत्व निर्भर है जिन्हें परमेश्वर ने अपने काम को फैलाने के लिये स्थापित किया है,वह गम्भीर दायित्व हमारे समय के युवकों के ऊपर है जो कार्यमंच पर आ रहे हों.इतिहास में कोई ऐसा समय नहीं था जब ऐसे महत्वपूर्ण परिणामों का किसी एक पीढ़ी के ऊपर आमश्र रहा हो जैसे अब की;तब कितना जरुरी है कि युवक उस भारी काम ठेके योग्य बनें जिससे परमेश्वर उन्हे साधन स्वरुप प्रयोग कर सके.सृजनहार का उनके ऊपर सर्वश्रेष्ठ अधिकार है.ककेप 271.1

    परमेश्वर ही है जिसने उन्हें जीवन और प्रत्येक शारीरिक व मानसिक देन दिया है.उसने उन्हें बुद्धिमानी के साथ समुन्नत करने के लिये योग्यताएं प्रदान की हैं ताकि उनको वह काम सौंपा जा सके जो अनंतता के समान चिरस्थायी रहेगा.अपनी महान दिनों के बदले में वह उनकी ओर से मानसिक और नैतिक शक्तियों को उचित उन्नत तथा अभ्यास की मांग करता .उसने उन्हें ये शक्तियां केवल उनके मन बहलाव के लिये अथवा उसकी इच्छा के प्रतिकूल प्रयोग में लाने के लिये नहीं दी हैं, परन्तु इस लिये दी हैं.कि वे उनको संसार में सत्य और पवित्रता के ज्ञान को बढ़ाने में प्रयोग करें.परमेश्वर अपनी निरंतर कृपाओं तथा असीम दयाओं के बदले उनसे धन्यवाद, आराधना और प्रेम की मांग करता है.वह न्याय पूर्वक अपनी व्यवस्थाओं और सारे बुद्धिमानी से बनाये गये नियमों की आज्ञाकारिता चाहता है जिनसे युवकों की शैतान की युक्तियों से रोकथाम और रखवाली होगी और उनकी शांति मार्ग की और अग्रसरी की जायगी.ककेप 271.2

    यदि युवक यह देख सकें कि हमारी पाठशालाओं के नियमों की पाबन्दी करने में वे केवल वह कार्य कर रहे हैं जिनसे समाज में उनकी स्थिति समुलत होगी,चरित्र का उत्थान होगा, बुद्धि समृद्ध होगी और उनके सुख को बढ़ायेगी तो वे उचित् और दुरुस्त कानून का विरोध न करेंगे,न वे इन शालाओं के विरुद्ध पक्षपात व संदेह पैदा करने में मार्ग नहीं लेंगे.हमारे युवकों में पौरुषत्व और विश्वस्तता की भावना होनी चाहिये कि वे अपने ऊपर की मांगों को पूरी कर सकें,इससे सफलता निश्चित रुप में होगी.संसार में इस युग में बहुत से जवानों का असभ्य और लापरवाह चरित्र हृदयविदारक है.अधिकतर इस बात का श्रेय माता-पिता के ऊपर है.परमेश्वर के भय के बिना कोई यथार्थत:सुखी नहीं रह सकता.ककेप 271.3