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कलीसिया के लिए परामर्श

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    “तुम अपने नहीं है”

    निस्सन्देह हमारा विश्वास है कि मसीह शीघ्र आ रहा है.यह कोई किस्सा कहानी की बात नहीं है:यह एक वास्तविकता है.जब वह आयेगा तो वह हमको पापों से शुद्ध न करेगा,हमारे चरित्र में से दोषों को दूर न करेगा अथवा हमारे स्वभाव व प्रकृति की निर्बलताओं से हमें चंगा न करेगा.यदि यथार्थत:हमारे लिये ये कार्य जाय तो ये सब उस समय से पूर्व होने चाहिये. ककेप 273.1

    जब प्रभु आयेगा उस समय जो पवित्र है वे पवित्र ही रहेंगे.जिन्होंने अपनी देह और आत्मा को पवित्र,शुद्ध तथा आदर के साथ रखा है उस समय अमरत्व का अंतिम देन प्राप्त करेंगे.परन्तु जो अन्यायी, अपवित्र तथा मलीन हैं वे सदैव उसी प्रकार रहेंगे.उस समय उनकी त्रुटियों को पृथक करने और उनके चरित्र को पवित्र बनाने के लिये कोई कार्य नहीं किया जायगा.इन सब को इन्हीं घड़ियों में जब दया का द्वारा खुला है पूरा हो जाना चाहिये.अभी यह कार्य हमारे लिये पूर्ण हो जाना चाहिये.ककेप 273.2

    हम ऐसे संसार में रहते हैं जो चरित्र की धार्मिकता और पवित्रता और अनुग्रह की ओर उन्नति करने का विरोध करना है.जिधर भी नजर डालिये भ्रष्टता, अपवित्रता,कुरुपता और पाप दिखाई देते हैं.और अमरत्व को प्राप्त करने से क्या वह काम पूर्व है जो हमें करना चाहिये?इसका उत्तर है कि हमारे शरीर पवित्र,हमारी आत्माएं शुद्ध रखी जाये ताकि हम इन अंतिम दिनों में अपने इर्द-गिर्द बढ़ती हुई भ्रष्टता के बीच निष्कलंक खड़े रह सके.ककेप 273.3

    ’क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारी देह पवित्रआत्मा का मन्दिर है;जो तुम में बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है,और तुम अपने नहीं हो क्योंकि दाम देकर मोल लिए गए हो, इस लिए अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो.’’(1कुरिन्थियों 6:19,20)ककेप 273.4

    हम अपने नहीं हैं.मंहगे दाम देकर अर्थात् परमेश्वर के पुत्र के दु:ख उठाने और मृत्यु द्वारा मोल लिये गये हैं.यदि हम इसे समझ सकें और पूर्णत:अनुभव कर सकें तो हम अपने ऊपर भारी जिम्मेदारी महसूस करेंगे और अपना स्वास्थ्य बहुत अच्छा बनाकर रखेंगे ताकि हम परमेश्वर की यथोचित रुप में सेवा कर सकें.परन्तु जब हम ऐसा काम करते हैं जिसमें हमारी जीवन शक्ति क्षीण होतो,शरीरिक बल घट जाता तथा मानसिक शक्ति धुंधली हो जाती है उस समय हम परमेश्वर के विरुद्ध पाप कर रहे हैं.ऐसा करने में हम अपनी देह और आत्मा में उसकी महिमा प्रगट नहीं कर रहे हैं परन्तु उसकी दृष्टि में अपराध कर रहे हैं.ककेप 273.5