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कलीसिया के लिए परामर्श

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    आज्ञाकारिता व्यक्तिगत कर्तव्य है

    मानव के रचियता ने हमारे देहों की जीवित कल को सुव्यवस्थित किया है.प्रत्येक अंग अद्भुत रीति तथा बुद्धिमानी से रचा गया है.और परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की है कि इस मानव कल को स्वस्थगति में रखंगा यदि मानव कार्यकर्ता उसके नियमों का पालन करे और उसके साथ सहयोग करें.मानव कल को नियंत्रण में रखने वाले प्रत्येक नियम की भी उत्पत्ति,चरित्र तथा महत्ता परमेश्वर के वचन की भांति ईश्वरीय समझनी चाहिये.प्रत्येक लापरवाही असावधानी का कार्य,परमेश्वर के अद्भुत यंत्र का दुरुपयोग,उसकी व्यवस्था का उल्लंघन करना है जब कि मानव देह के अन्दर उसके निर्दिष्ट नियमों को अवहेलना की जाती है.हम प्राकृतिक जगत में परमेश्वर के कार्य (लीक) देखकर अचरज करते हैं परन्तु मानव देह सबसे विचित्र व अद्भुत हैं.ककेप 273.6

    चूंकि प्रकृति के नियम हैं तो साधारणत:हमारा कर्तव्य है कि इन नियमों को सावधानी पूर्वक अध्ययन करें.हमारे देहों के प्रति उन नियमों की जो मांगे हैं उनका हमें अध्ययन करना चाहिये और उनके अनुकूल चलना चाहिए.इन बातों की ओर से अज्ञान रहना पाप है. ककेप 274.1

    जब स्त्री पुरुषों का सचमुच में हृदय परिवर्तन होता है तो वे जीवन के नियमों का शुद्ध अंत:करण से पालन करेंगे जिन्हें परमेश्वर ने उनके व्यक्तित्व में स्थापित किया है.इस प्रकार वे शारीरिक, मानसिक तथा नैतिक दुर्बलता से दूर रहेंगे.इन नियमों का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य होना चाहिये. हमें स्वयं उल्लंघन किये गए नियम के फलस्वरुप दुखों को भोगना पड़ेगा, हमें अपनी आदतों व व्यवहारों के लिये परमेश्वर को जबाव देना होगा.अत:हमें यह प्रश्न नहीं पूछना है कि ‘’जमाना क्या कहेगा?’’किन्तु मसीही होने का दावा करते हुये यह पूछे,’’मैं परमेश्वर के दिये हुये देह के संग कैसा व्यवहार करुं? क्या मैं अपनी देह की जो पवित्र आत्मा के रहने का मंदिर है रक्षा करते हुये अपनी शारीरिक तथा आत्मिक उन्नति के हितार्थ कार्य करुं अथवा स्वयं को सांसारिक रीति रिवाज की वेदी पर निछावर कर दूं?’‘ककेप 274.2