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कलीसिया के लिए परामर्श

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    अध्याय 48 - सफाई का महत्व

    उत्तम स्वास्थ्य के लिये उत्तम रक्त होना जरुरी है क्योंकि रक्त ही जीवन की धारा है.उस से क्षीण भाग का सुधार और देह का पोषण होता है. जब उसको उचित खाद्य प्रदार्थ प्राप्त होते हैं जब स्वच्छ वायु के सम्पर्क द्वारा वह शुद्ध तथा जीवित किया जाता है तब वह देह के अंग अंग को जीवन और शक्ति प्रदान करता है.रक्त का दौरा जितना ठीक होगा उतनी ही सुगमता से यह कार्य सम्पन्न होगा.ककेप 276.1

    रक्त परिभ्रमण को नियमित बनाने के लिये जल का प्रयोग सबसे सरल और अति संतोषजनक तरीका है.ठंडा स्नान एक सर्वोत्म बल वर्द्धक औषधि है. गरम स्नान रोम छिद्रों को खोल देता है यूं मलिनता का निष्कासन करने में सहायता देता है.गरम तथा ठंडा स्नान दोनों स्नायुओं को शान्त करते तथा रक्त के दौरे को समानता में लाते हैं.ककेप 276.2

    व्यायाम रक्त के दौरान को उत्तेजित करता तथा समानता में लाता है परन्तु आलस्य में रक्त स्वतंत्रता से दौरा नहीं करता जीवन और स्वास्थ्य के लिये जिन परिवर्तनों की अत्यन्त आवश्यकता है वे नहीं हो पाते.त्वचा भी निष्क्रिम हो जाती है.यदि रक्त का दौरा फूर्ती के साथ व्यायाम करने द्वारा उत्तेजित न किया जाय, और त्वचा स्वस्थ अवस्था में न रखी जाय और फेफड़ों को स्वच्छ,ताजी हवा प्रचुर मात्रा में न प्राप्त हो तो देह की मलिनताओं का निष्कासन नहीं होता.ककेप 276.3

    फेफड़ों को जहां तक सम्भव हो काफी स्वतंत्रता मिलनी चाहिये.उनकी कार्यक्षमता स्वतंत्र कार्यशीलता से बढ़ती है;और यदि वे संकुचित हो जाये तो वह शक्ति घट जाती है.अत:इस प्रकार की आदतों के परिणाम बुरे होते हैं जो आम तौर पर पाये जाते हैं विशेषकर बैठे रहने के व्यवसाओं में अब झुककर बैठकर काम करना पड़ता है.इस स्थिति में गहरी सांस लेना असम्भव है.कृत्रिम श्वासक्रिया की आदत पड़ जाती है और फेफड़ों के फैलने की शक्ति नष्ट हो जाती है.ककेप 276.4

    इस प्रकार प्राणवायु कीअपर्याप्त सामग्री प्राप्त होती है.रक्त मंदगति से बहता है.व्यर्थ विषैला पदार्थ जिसको फेफड़ो से निकल जाना चाहिये उसी में रह जाता हैं और रक्त अशुद्ध बन जाता है.केवल फेफड़े ही नहीं किन्तु आमाशय यकृत तथा मस्तिष्क भी प्रभावित हो जाते है.त्वचा पीली पड़ जाती है,पाचनशक्ति शिथिल हो जाती है और हृदय गति मंद,मस्तिष्क धुंधला पड़ जाता है; विचार शक्ति में गड़बड़ी आ जाती है;आत्मा में अंधकार छा जाता है; निदान समस्त संस्थान धीमा और निष्क्रिय हो जाता है, विचित्र रुप से रोग का ग्रहणशील हो जाता है.ककेप 276.5

    फेफड़े निरंतर अशुद्ध प्रदार्थ को फेंकते रहते हैं अत: उनको निरंतर ताजी हवा की सामग्री मिलनी चाहिये.अशुद्ध वायु में (आक्सीजन)प्राण वायु की सामग्री नहीं पाई जाती,इस लिये रक्त मस्तिष्क तथा अन्य अंगों को बिना बल प्राप्त किये पहुंचता है.इस लिये पूर्ण रुप से हवा पहुंचाने की आवश्यकता होती हैं.बंद तथा कम हवादार कमरों में जहां वायु जो स्थिर और विषाकत है रहने से समस्त देह निर्बल हो जाती है.विचित्र रुप से वह सर्दी, जुकाम के प्रभाव का ग्रहणशील हो जाता है और थोड़ी बहुत खुली में चलना रोग को प्रोत्साहन मिलता है.जब स्त्रियां घर ही घर में बंद रहती हैं मतो वे पीले वर्ण की और निर्बल हो जाती है.वे बार-बार उसी गंदी हवा को सांस में लेती रहती हैं और वह फेफड़ों और रोमछिद्रों द्वारा फेंकी हुई विषैले पदार्थ से लद जाती है.इस प्रकार अशुद्ध वस्तु फिर रक्त में पहुंचाई जाती है.ककेप 276.6

    अनेक लोग रोग ग्रस्सित रहते हैं क्योंकि वे रात के समय अपने कमरों में शुद्ध हवा आने नहीं देते .आकाश की स्वतंत्र शुद्ध वायु हमारे लिये एक बहुमूल्य देन है.ककेप 277.1

    शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिये सफाई प्रखर वस्तु है.त्वचा के द्वारा मलिनता देह से बाहर फेंकी जाती है. लाखो रोमछिद्र शीघ्रता से बंद हो जाते हैं यदि वे बार-बार स्नान द्वारा साफ न रखे जाय और वह मैला प्रदार्थ जिस त्वचा में से निकल जाना चाहिये निष्कासन करने वाली इन्द्रियों के लिये एक अतिरिक्त भार बन जाता है.ककेप 277.2

    बहुत से लोगों को प्रात:व सायं ठंडे पानी से अथवा गुनगुने पानी के स्नान से लाभ होता हैं.सर्दी लगने की सम्भावना को बढ़ाने के बजाय,यदि उचित रीति से स्नान किया जाय, तो वह जुकाम को रोकता है क्योंकि उससे रक्त का दौरा बढ़ता है और रक्त त्वचा के ऊपरी भाग पर लाया जाता है और उसका संचार सरल और नियमानुकूल हो जाता है.मस्तिष्क और देह दोनों एकसा बलवान हो जाते हैं.मांसपेशियां अधिक लचकदार और बुद्धि तीव्र हो जाती है.स्नान से स्नायु कोमल हो जाती है.स्नान से आतों, आमाशय, यकृत को स्वास्थ और बल प्राप्त होता है, और पाचनशक्ति में वृद्धि होती है.ककेप 277.3

    यह भी आवश्यकता है कि कपड़े साफ रखे जायं.पहिनने के वस्त्र उस व्यर्थ प्रदार्थ को जो छिद्र द्वारा निकलता है शोषण करते हैं;यदि वे बार-बार बदले व साफ न किये जाये तो मलिनता फिर देह में शोषण हो जायगी.हर प्रकार की अशुद्धता रोग पैदा करती है.मृत्यु पैदा करने वाले कृमि अंधेरे छूटे हुए स्नान में, सडे हुये मल, सीलन और फफूदी में अधिकता से उत्पन्न होते हैं. घर के सामने सड़ी मली सब्जी अथवा गिरी हुई पक्तियों के ढेर न रहने देना चाहिए ऐसा न हो कि वे सड़गल कर वायु को दुषित करें. घर के होते में कोइ मैली व सड़ने वाली वस्तु नहीं रहने देना चाहिये. ककेप 277.4

    घरेलू जीवन के हर पहलू में पूर्ण सफाई प्रचुर मात्रा में सूर्य प्रकाश स्वच्छता की सतर्कता ये सब घर के निवासियों की खुशी, पुष्टि और रोग मुक्त के लिये महत्वपूर्ण हैं.ककेप 277.5

    छोटे बालकों को सिखलाइये कि परमेश्वर उनको मैले बदन तथा फटे वस्त्र में देखने से प्रसन्न नहीं होता.जब पहनने के कपड़े स्वच्छ व निर्मल हों तो विचार भी शुद्ध और मधुर होते हैं. विशेषकर प्रत्येक वस्त्र जिसका सम्पर्क त्वचा से होता है स्वच्छ रखना उचित है.ककेप 277.6

    सत्य अपने कोमल चरण अशुद्धता तथा मलिनता के मार्ग में कदापि न रखेगा.जो इस्राएलियों के बारे में इतना सावधान था कि वे सफाई की आदत डालें वह आज अपने लोगों के घरों में किसी प्रकार की गंदगी आज्ञा न देगा. परमेश्वर हर प्रकार की गंदगी को घृणा की दृष्टि से देखता है. घर के अन्दर मैले, लापरवाही से छोड़े हुये कोने आत्मा में भी वैसे अशुद्ध,प्रभाव पैदा करेंगे, स्वर्ग शुद्ध व पवित्र है और जो लोग परमेश्वर के नगर के फाटकों से प्रवेश करेंगे उन्हें भी आन्तरिक और बाहरी पवित्रता का वस्त्र धारण करना चाहिये.ककेप 278.1

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