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कलीसिया के लिए परामर्श

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    अधिक रोग व बिमारी का कारण

    मांस कभी भी उत्तम भोजन पदार्थ नहीं रहा;परन्तु उसका उपयोग अब दुगना आपत्तिजनक है क्योंकि पशुओं में रोग वेग से बढ़ता जा रहा है.यदि लोग उन जीते पशुओं को देख सकते और जान सकते कि किस किस्म का मांस वे खाते हैं तो वे उसे घृणा कर कभी न छते.लोग बराबर ऐसा मांस खाते हैं जो क्षय रोग तथा कैन्सर के कीटाणुओं से भरा रहता है.इस प्रकार क्षय रोग, कैन्सर तथा अन्य घातक रोग मनुष्यों को लग जाते हैं. मांस खाने से रोग लग जाने की सम्भावना दस गुना बढ़ जाती है.ककेप 287.4

    पशु रोग ग्रस्त होते हैं और उनके मांस खाने से हम रोग कीटाणु अपनी ऊतियों और रक्त में बो देते हैं.और जब मलेरिया ग्रस्त वायुमंडल में छोड़ दिये जाते हैं तब इनको अच्छी तरह से महसूस कर सकते हैं और उस समय भी जब सर्वव्यापी और छूत रोग के बीच घिर जाते हैं तो देह ऐसी अवस्था में नहीं होता कि रोग का प्रतिरोध कर सके.ककेप 287.5

    जो प्रकाश परमेश्वर ने मुझे दिया है उसके अनुसार कैन्सर तथा रसौल का रोग अधिकतर मृतक जानवरों का मांस खाने से होता है.ककेप 287.6

    अनेक जगहों में मछलियां गंदी चीजों के खाने से होती दृषित हो जाती हैं कि उनके खाने से रोग पैदा हो जाते हैं.यदि विशेषकर उन स्थानों में होता है जहां मछलियां को सम्पर्क बड़े बड़े शहरों की गंदी नालियों से होता है.जो मछलियां इन गंदी नालियों में के पदार्थ को खाती हैं, हो सकता है, कि वे दूर के पानियों में पहुंच जाये और वही स्वच्छ तथा ताजा पानी में पकड़ी.यों जब भोजन के रुप में ये खाई जाती हैं तो ये उन में जो खतरे से अनभिज्ञ हैं बीमारी तथा मृत्यु पैदा कर डालती हैं.ककेप 287.7

    मांसाहार के प्रभाव का हो सकता है कि तुरन्त पता न लगे परन्तु यह कोई प्रमाण नहीं है कि वह हानिकारक नहीं है.बहुत कम लोगों को यकीन कराया जा सकता है कि मांस खाने के कारण ही उनका रक्त दूषित हुआ है तथा सारी मुसीबत आई है.बहुत से लोग उन बीमारियों से मर जाते हैं जो पूर्णत:मांस खाने से उत्पन्न होती हैं और वे दूसरों की तरह असली कारण का पता भी नहीं कर सकते.ककेप 287.8

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